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Friday, 31 July 2020

आस्था, मंदिर और कर्तव्य।


🙏मर्यादा पुरषोत्तम भगवान राम के मंदिर निर्माण को लेकर हमारे समाज में तमाम तरह की चर्चाएं जोरों पर है। जितने लोग उतनी बातें। कोई मंदिर निर्माण की जगह पर अस्पताल की बात करता तो कोई विद्यालय तो कोई काॅलेज की बात करता है। तो कोई मंदिर निर्माण में होने वाले खर्चे को फजूल बता रहा है। सभी की बातें अपने अपने सोच के अनुसार कुछ हद तक ठीक है परन्तु इस पर और गहराई से चर्चा करने और समझने की जरूरत है। इसके प्रभाव व महत्व व असर ताकत को भी जानने व समझने की जरूरत है।

आज इसी पर अपने हृदय की बात को आप सभी से साझा कर रहा हूँ :-

⚘मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान राम की जय हो⚘
भगवान राम के जीवन का महत्व सिर्फ आस्था से ही नहीं है उनके जीवन आदर्श से है, उनके जीवन मूल्यों से है।

            आज हमारे देश में जो आस्तिक हैं वो सनातनी संस्कृति को तो मानते हैं पर जो नास्तिक हैं वो नहीं मानते फिर भी उनके मन पर अपनी संस्कृति का थोड़ा बहुत असर प्रभाव सकारात्मक है वो बस एक सकारात्मक संगत से समय पर ही बदलता है। इस प्रकार से कहले तो सभी कहीं न कहीं अपनी सनातनी संस्कृति व संस्कार से प्रभावित हैं, न करते हों, न मानते हों फिर भी उनका झुकाव किसी न किसी प्रकार अपने वैदिक कल्चर व संस्कृति के प्रति है। आज इसका अपना एक अलग विज्ञान है जिसे वैज्ञानिक भी स्वीकारते हैं।
            गलत व बेईमान व्यक्ति के साथ भी जब गलत होता है तो वह विचलित हो जाता और वह तब कुछ पल के लिए ही मगर सत्य व सही का पक्षधर हो जाता है। जिससे यह स्पष्ट है कि हर इंसान सत्य, सच्चाई व अच्छाई का पक्षधर है।
            इंसान का अस्तित्व व व्यक्तित्व उच्चकोटि का है और वह अपने संस्कृति अपने संस्कार से जुड़ा हुआ रहता है तो स्वाभाविक है ऐसा व्यक्तित्व अपने घर परिवार में सद्चरित्र और संस्कारी होगा। तब ऐसे व्यक्तित्व पर सहज नही होता किसी के द्वारा अंगूली उठाना। इंसान के अंदर अगर कर्तव्यनिष्ठा का ऐसा ओज है तो समाज में भी उसका अलग प्रभाव होता है और उसकी ओज उसकी कीर्ति संसार में प्रकाशमान होती है।  यह सब सनातनी संस्कृति, संस्कार और अटूट निष्ठा से ही संभव है।

मंदिर निर्माण की मुश्किल आज सहज:-

          अब बात मंदिर निर्माण की करते हैं। श्री राम मंदिर हमारे हिन्दू समाज की सबसे बड़ी महत्वाकांक्षी व प्रतिष्ठित आस्था से जुड़ा हुआ 500 सौ साल पुराना विवादित प्रकरण था। जिसका सुखद अंत सम्पूर्ण मानवता को गौरवान्वित किया है।  हिन्दू व मुस्लिम दोनों सम्प्रदाय के लिए सुखद अहसास रहा है क्योंकि अत्यन्त ही सहजता से इसका निराकरण हुआ। जिसका मजबूत व सकारात्मक पहलू यह है कि दुश्मन देशों के लिए करारी शिकस्त देने का काम किया परन्तु अपने देश के चंद नकारात्मक शक्तियों के लिए यह फैसला जरूर कष्टप्रद रहा है। आज अपनी आस्था अपनी ताकत अपने अस्तित्व के स्तंभ की बहुत बड़ी जीत है। आज विश्व समाजिक पटल पर हमारी छवि हमारी ताकत व हमारी शक्ति लहरा रही है।

आस्था की ताकत व महत्व :-

       जहाँ आस्था होती वहीं विश्वास होता है और विश्वास ही इंसान को ताकतवर बनाता है और उसे उसके गन्तव्य तक लेकर जाता है। विश्वास व भरोसा ऐसा कारक है जो इंसान से असंभव कार्य भी करवा देता है। विश्वास व भरोसा से लवरेज इंसान से सामना करना आम सोच वाले इंसान के बस की बात नहीं होती। 
           आस्था की जीत नकारात्मक शक्तियों का पतन से है उनके मनोबल का ह्रास से है। देश के सशक्त नेतृत्व की शुरू से यही मंशा रही और उसमें वह बखूबी कामयाब रही। जिसको लेकर सत्ता के गलियारे में आते ही एक के बाद एक सशक्त निर्णय लिया और मूर्त रूप देता चला गया। नामुमकिन कार्य भी सहजता से मुमकिन होना नकारात्मक शक्तियों को तोड़ता गया। जिससे खुल कर विरोध करने का साहस व मनोबल पनपने से पहले ही दब गया और कार्य की सफलता सुनिश्चित होता गया।
          सशक्त नीति! सशक्त विचार! सशक्त फैसला! हमारी आस्था! हमारे संस्कार और उनसे हमारा जुड़ाव नकारात्मक शक्तियों के लिए घातक हथियार है, नकारात्मक शक्तियों के लिए व दुश्मन के लिए राफेल से कम नहीं है।
          हम मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारा या गिर्जाघर अपने आत्मबल, आत्मशक्ति, आत्मसंतोष के लिए जाते हैं और ईश्वर की आराधना व प्रार्थना व मनन करके हम ईश्वर को अपने समीप महसुस कर अच्छा अनुभव करते हैं और यह संतोष हो जाता कि हमने अपने परमपिता परमेश्वर से अपने मन की बात कर दिया है। मन में एक विश्वास पनप जाता है कि अब वे हमारी बात को पूरा करेंगे और वहाँ से एक नई ऊर्जा व नई शक्ति लेकर निकलते हैं। 
           विचार करें और स्वयं से प्रश्न करें क्या मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारा और गिर्जाघर के लिए इंसान के दिल में आस्था का कोई मोल नहीं है? जवाब में पाएंगे कि "यह सोचना गलत होगा"। जहाँ जाने मात्र से अपने अंदर के तमाम विकारों से मन हटने लगता है सकारात्मकता का संचरण होने लगता है। अब सोच कर बताएं क्या इतना महत्वपूर्ण जगह इंसान के लिए जरूरी नहीं। नकारात्मक सोच रखने वाले इसका मोल नहीं समझ पाएंगे बल्कि ऐसी सोच वाले प्रतिकुल परिस्थितियों में विचलित होकर ईश्वर को भी गलत व झूठा ठहरा देते हैं।

धर्म स्थल इंसान के मनःस्थिति का पावर बैंक :-

          परमपिता परमेश्वर के दरबार में कदम रखने से वहाँ शीश झुकाने से अपने मन की बात करने मात्र से एक नई ऊर्जा व नई शक्ति और मनःस्थिति में असाधारण बदलाव होता है तो ऐसी जगह इंसान के लिए बिलकुल ही पवित्र व अतुलनीय है। और वहीं से स्वस्थ मानवता का उदय होता है। अब आप बताएं क्या जीवन के लिए धार्मिक स्थान प्रासंगिक नहीं है?
           हमारे सोच के अनुसार इंसान के जीवन में विद्यालय व चिकित्सा का महत्व तो है ही उसका भी विस्तार होना चाहिए परन्तु अपने धार्मिक स्थान का विशेष महत्व देने की इसकी ताकत को पहचानने व समझने की जरूरत है। जीवन की शिक्षा दिक्षा के साथ साथ धर्म कर्म व उनके प्रति आस्था भी बहुत जरूरी व आवश्यक है। आज शिक्षा स्तर उनके तौर तरीके हमें हमारे संस्कार व संस्कृति से दूर कर रहा है इसमें खास तौर पर परिवर्तन की जरूरत है।
           इंसान की ताकत अपने जड़ों से जुड़ कर रहने से है। उसका आदर व सम्मान करने से है। जिस प्रकार तना से अलग होते ही पत्ते व फल, फूल का वजूद समाप्त हो जाता है। उसी प्रकार हम अपनी संस्कृति व संस्कार से दूर होकर अपने अस्तित्व व वजूद दोनों का नाश कर रहें हैं। देश के मुल्लापरस्त चंद नेताओं ने भारत की संस्कृति से खेलवाड़ कर फेर बदल कर यहाँ के जनमानस को तोड़ने का काम किया है।

उलाहना से बचें, स्वागत करें! सम्मान करें! गर्व करें :-

       जब भारत का हर इंसान अपनी संस्कृति अपने तौर तरीके को अमल में लाएंगा उसे अपनाएगा उस पर समर्पण भाव रखेगा तभी दूसरे लोग आदर व सम्मान करेगा और अनर्गल करने व बोलने का साहस नहीं करेगा। 
      💀आज बहुत दुख होता है जब हमारे कुछ नासमझ हिन्दू भाई यह कहते हैं मंदिर की क्या जरूरत है? फजूल खर्च है? जिससे हमारा वजूद है जिससे हमारी पहचान है उसी के खिलाफ बोल रहे हैं। क्या उम्मीद करोगे धर्म के अन्य ठेकेदारों से जो धर्म व आस्था के प्रति कट्टर हैं, मन से सोचो....? हम क्या मैसेज दे रहे हैं....?  हमारे संस्कृति का क्या होगा....? हमारा भविष्य पर क्या असर होगा.....?

हमें अपनी संस्कृति व महानता व छवि के लिए अपनी सोच बदलना होगा :-

☛दूसरों के मानसिक पटल पर अपनी सशक्त छवि बनाने के लिए हमें अपना और अपने समाज का सम्मान करना होगा।
☛अपने धर्म अपने संस्कृति को अपनाना होगा उसका प्रचार प्रसार व मान बढ़ाना होगा।
☛हमारी आस्था विश्वास व भरोसा के प्रतिक को सहेजना होगा उनको समाज में प्रतिष्ठित करना होगा।
☛हमारे आस्था के प्रतिक हमारे ईष्टदेवों पर बनने वाले हास्य व्यंग की नौटंकी पर कड़ाई से रोक लगाना होगा।
☛इंसान की पहचान अपनी संस्कृति! उसकी ताकत अपनी संस्कृति! जुड़े रहें! बने रहें! मजबूत रहें।
☛"खूद का करो सम्मान तभी लोग देंगे सम्मान" की नीति को अमल में लाना होगा।
☛हमारी मजबूती हमें एकजूट व संगठित होकर रहने में है।

मंदिर निर्माण से मानव को होने वाली उत्कृष्ट उपलब्धि यानि लाभ :-

श्री राम मंदिर का निर्माण कार्य सम्पूर्ण मानवाता के लिए उसके आस्था व विश्वास हमारे संस्कार व सनातन संस्कृति को अपार बल मिलेगा। अब यह कहना गलत न होगा कि अयोध्या दुनिया का सबसे बड़ा इण्टरनेशनल धार्मिक औद्योगिक केन्द्र होगा। अयोध्या में हर तरह के नव रोजगार का सृजन होगा। पर्यटन उद्योग को बढ़ावा मिलेगा, देश विदेश से पर्यटकों का जमावड़ा होगा। आज हिन्दु समाज की जो महत्वपूर्ण उपलब्धि या लाभ हुआ है उसको शब्दों मे वर्णित करना काफी विस्तार में ले चलना होगा बस यही कहना है कि आज आस्था के साथ साथ अर्थ का एक अनोखा स्तम्भ तैयार होने जा रहा है। स्वर्णिम इतिहास का सहभागी बनने के लिए धन्य हूँ। आप सभी को हृदय से बधाई।

धन्यवाद! आभार :-

         भव्य श्री राम मंदिर के निर्माण के लिए इस महान व पुनित कार्य के लिए हमारी तरफ उन सभी महान शख्सियत को हृदय से धन्यवाद देता हूँ जिनकी वजह से यह शुभ घड़ी पूरे संसार को नसीब हो रहा है। हम गौरवान्वित हैं कि हमें सहभागिता का अवसर मिला! हम धन्य हुए हैं!
सभी को आभार! हार्दिक शुभकामना।
जय श्री राम 🙏
♨♨
✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)



Thursday, 30 July 2020

जिन्दगी जी लेंगे....



जिन्दगी जी लेंगे...
♨♨
जिन्दगी जीने का नाम जी लेंगे,
करम  तेरा   हर  दुख  पी  लेंगे।

जिन्दगी की  बात  समझ आई,
हर कोई  अपनों से  मात खाई।

जुल्मो सितम  जिन्दगी से करते,
तुमसे  हमदर्दी  रखते  तो  कैसे।

मोहब्बत तो  जिन्दगी  से करते,
जिन्दगी  ही अपनी  तकदीर है।

साथ  जीने  की  हैं कसमें  खाई,
सुख   दुख   दर्द   साथ  निभाई।

बेवजह   दर्द   उसको   पहुँचाई,
दर्द   मुझको   कैसे  न हो भाई।

जिन्दगी  तुमको  है बहुत प्यारी,
फिर  मेरे  पर  क्यों  है  मनाही।

वास्ता  तुम  तो कुछ नहीं रखते,
जाने क्यों  दुश्वारियां  लिए रहते।

ताकत तो अपने  खून में समाई,
खून से  खून की है सारी लड़ाई।

जिन्दगी  जीने  का नाम जी लेंगे,
करम  तेरा   हर   दुख  पी  लेंगे।
♨♨

पंक्ति का भाव :-

☛बड़ी अजीब बिडम्बना अपने समाज की हो गई है। अब परिवार को लेते हैं। परिवार में बड़ा है तो बड़े होने के लिए ललायित है आदर मिलता रहे इसकी अकांक्षा है, जरूरी भी है होना भी चाहिए। अगर छोटा है तो छोटा ही बना रहना चाहता है अपनों बड़ों से चाहे कोई मतलब न भी हो परन्तु फिर भी कुछ न कुछ अकांक्षा परिवार के नाते तो बना ही रहता है। इससे नकारा भी नहीं जा सकता।
☛यदि हम बड़े हैं तो अपने छोटों से बड़े वाले आदर की उम्मीद तो करते हैं परन्तु उनके साथ बड़कपन वाले बात या कार्य बिलकुल नहीं करते जिससे बड़कपन वाले सारे वजूद एक समय अंतराल के बाद समाप्त हो जाता कितना भी कर्तव्यनिष्ट छोटा क्यों न हो।
☛यदि हम छोटे हैं तो बड़ों से भी कुछ उम्मीदे रखते हैं परिवार के नाते, साथ रहने के नाते भले ही आपसी तालमेल में विशेष ताल्लुकात न हो परन्तु मान सम्मान का जो हक है उसमें तरलता समरसता होनी ही चाहिए।
☛बड़े हों या छोटे हों उनका कार्य इस प्रकार का कत्तई न हो खासतौर पर यदि दोनों एक ही साथ एक ही घर में हों तब वे परिवार में उपेक्षित महसूस न करें। क्योंकि उपेक्षा से कटूता पनपती है जो आगे चल कर दोनों के लिए, उनके सुख चैन में, रहन सहन में बाधक होती है। आपसी सामंजस्य बिगड़ जाता परिवारिक वातावरण खराब हो जाता।
☛इस बढ़ती दुराव का असर न चाहते हुए भी तेजी से आगे बढ़ती है और एक दूसरे के अपनों को भी दुराव के चपेट में लेती है और धीरे धीरे हर किसी से हर किसी के बीच मनमुटाव बढ़ने लग जाता फलतः दूरी बढ़ती चली जाती।
☛ऐसी प्रतिकूल स्थिति अपने ही खून में ज्यादा पनपती है।
☛ कहीं भी शेयर करने से पहले दुविधा को आपस में दूर करें।
 ☛बचाव का एक ही रास्ता है और वह है समझदारी।
☛कमियों से एक दूसरे को अवगत कराएं।
☛कोई फैसला अकेले की सोच पर न लें।
♨♨
✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)

Tuesday, 28 July 2020

काल करे सो आज कर....

काल करे सो आज कर....
♨♨
☛अगर कोई इंसान के द्वारा घर, परिवार या समाज के लिए सार्थक व सकारात्मक कार्य के श्री गणेश करने का प्रयोजन हो तो सभी को एक राय व एक मत से कार्य को मूर्त रूप देने के लिए एक साथ सकारात्मक रूख़ अख़्तियार करते हुए बिना किसी किन्तु परन्तु के निश्चित अवधि में शीघ्रताशीघ्र शुरूवात कर देना चाहिए।
☛घर, परिवार या समाज के कार्य आरम्भ के पूर्व कार्य की सार्थकता के बावजूद अकारण ही किसी सदस्य द्वारा किन्तु परन्तु लगाना या टाल मटोल करना कार्य की सफलता व असफलता पर विचार करने लग जाना कार्य से जुड़े क्रियाशील व्यक्तित्व के मन की स्थिति पर जाने अंजाने प्रभाव डालती है जिससे कार्य के श्री गणेश के समय पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है परिणामस्वरूप कार्य के प्रति जो उत्साह व उत्सुकता होती है वह थोड़ी ढ़िली पड़ने लग जाती है तब आप महसूस करेंगे की कार्य में देरी हुई और आगे चलकर इसका ख़ामियाजा भी भुगतना पड़ता है। तब यह अहसास होता कि कास उस वक कार्य का आरम्भ हो गया होता। तब इंसान के पास सिर्फ अफसोस के अलावा हाथ कुछ नहीं लगता।
☛आजकल के युवा हर बात हर काम को बहुत हल्के लेते हैं कार्य के शुरूआत के उपरान्त कुछ ऐसी समस्या उत्पन्न होती है जिसके बारे आपने तमाम अध्ययन के बावजूद कार्य योजित करने के दरमयान भी दिमाग में नहीं आती है और न ही सोचा रहता। इस प्रकार कार्य के निष्पादन में अचानक आई समस्या कार्य के समयावधि को बढ़ा देती जिस कारण इंसान उससे होने वाली क्षति और कार्य निष्पादन का समय कम होने के कारण कभी कभी इंसान को विवशता व मजबुरी में अपने कार्य/प्रोजेक्ट को बंद करना पड़ जाता है जिस वजह से उसे काफी मानसिक व आर्थिक क्षति उठानी पड़ जाती है।
☛तब इंसान को यह ज्ञान होता है कि घर परिवार व समाज या जीवन से जुड़ी तमाम कार्य जो हमें ही करना और करना अवश्यंभावी है तो उससे दूरी न बनाते हुए टाल मटोल की आदत को नकारते हुए समय रहते उसमें लग जाना चाहिए। जीवन में कभी कल नहीं खतम होता हर एक दिन के बाद कल आ खड़ा होता है। इसलिए आज का आज कर लेना लाभप्रद होता। समय से किया गया हर कार्य हमेशा सुखदायी व फलदायी होता है।
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कबीर जी की अमृत वाणी:- 
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब। 
पल  में  प्रलय होएगी,  बहुरि  करेगा  कब ॥
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अर्थ :- कबीर दास जी समय की महत्ता बताते हुए कहते हैं कि जो कल करना है उसे आज करो और और जो आज करना है उसे अभी करो , कुछ ही समय में जीवन ख़त्म हो जायेगा फिर तुम क्या कर पाओगे !!
❤❤
अब  पछताए  क्या होत है,
जब चिड़ियाँ चुग गई खेत।
♨♨
✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)




Monday, 27 July 2020

प्यार भी कश्मकश...

प्यार भी कश्मकश...
🍁🍁
मुझ  से  तुम  प्यार  करते हो,
क्यों  साथ मेरे नहीं आते हो।
कुछ  तो  मन  में  तेरे दुविधा,
पर  कहने  से  डरते क्यों हो।
            प्यार का मतलब क्या समझें,
            पास  होकर  क्यों  दूर लगते।
            ऐसे   तो   तुम  जी सकते हो,
            अपना  जीना  मुश्किल होते।
बेरूखी   तड़पाती  दिल  को,
रूसवाई  खतम  तो कर लो।
मन  मुटाव क्यों  खींचा तानी,
अब तो अपने  हल  कर  लो।
            दुख  दुविधा में दम घूटता है,
            महसूस तुमको नहीं होता है।
            मुश्किलों  में जीने से अच्छा,
            सुखी जीवन सहज होता है।
वाकई  प्यार  अगर  करते हो,
कश्मकश  में  क्यों  रहते  हो।
सांसों  की  डोर जब न चटके,
दुखी  जीवन  क्यों  करते हो।
            प्यार में गर कश्मकश होती,
            खुशहाल जीवन नहीं होती।
            तोड़ देते मन दुविधा अपना,
            खुशगवार  जीवन तो होती।
🍁🍁
✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"

Sunday, 26 July 2020

वीर_सपूतों_को_नमन....

वीर_सपूतों_को_नमन....
♨♨
कार्गिल विजय दिवस की
तेरे  कारण  ही बधाई  है।
सीमा  पर  वीर  सपूतों ने
अपनी   जान   गवाई   है।
याद  है  उनकी  कुरबानी
नहीं  किसी  ने  भुलाई है।
तुझ  से ही जीवन अपना
सुख चैन की सांसे पाई है।
शब्द  नहीं  गुणगान करूँ
तेरे सम्मान में आज करूँ।
तेरी  जननी  व  पत्नी को
आज विनम्र प्रणाम करूँ।
हम दूसरों को बधाई दे रहे
उन्होंने  प्रियवर  खोया  है।
देश  ऋणी  आज  तेरा  है
किन शब्दों में धन्यवाद दूँ।
हृदय वंदन  है  वीर सपूतों
शत शत विनम्र नमन करूँ।
~~
कार्गिल विजय दिवस की
हार्दिक शुभकामना........
~~
अमर वीर सपूतों को विनम्र श्रद्धांजलि⚘
♨♨

✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)

Saturday, 25 July 2020

करम की लेखनी न मिटे..


करम की लेखनी न मिटे..
♨♨
हे विश्व नियन्ता शिवाकान्त
पालनहारी हे अवघड़दानी
महादेव शिव शंकर शम्भू
कैलासपति हे त्रिपुरारी
हे केदारनाथ हे जटाधारी
तेरी महिमा जग में न्यारी।

संग सती के धरती पर एक दिन
भ्रमण पर निकले त्रिशूलधारी
देखी माता ने एक दुखियारा
गठरी टाँगे बढ़ा जा रहा 
रोटी की आस लिए अभागा।

देख उसकी दीन दशा 
मन ही मन व्याकूल हुई माता
पीड़ा उसकी सह न पाईं
दीनानाथ सोमनाथ बर्फानी
सर्वेश्वर से गुहार लगाई।

हे प्राणनाथ महादानी
शिवदानी ओमकारेश्वर 
निलेश्वर गणपति कुछ करो
निर्धन असहाय अभागे का
कर दो तुम कल्याण प्रभु।

मंगलेश्वर अर्धनारीश्वर 
नटराजन त्रिकालदर्शी
सुन कर माता की बातें
मुस्कराए बोले हे देवी
भोग रहा कर्मों का फल।
करम में इसके जो लिखा।
इसको टाला नहीं जा सकता।

सुन नागार्जुन देवा की बातें 
माता विषधर से रूष्ट हुई
लेकर अनुमति सर्वेश्वर से
स्वर्ण मुद्राओं की पोटली
देने की ठान चल पड़ी
दुखियारे के राह पर।

जिस पथ से जाए दुखियारा
उस पथ पोटली रख दिया
पास आएगा उठालेगा
अपना दुख मिटालेगा
खुशी की अभिलाषा लिए
दूर से माता देख रही थीं।

पोटली के कुछ दूर पहले ही
निर्धन का ध्यान ऐसा भटका
कैसे नेत्रहीन जीवन जीते
वैसे चल कर देखें तो जरा
बंद कर ली अपनी आँखे
उसने चलना शुरू किया।

माता की खुशियाँ धरी वहीं
अभागा आगे बढ़ चला।
देख करम की लेखनी
चकित हुई दुखी माता।

रुद्रनाथ भीमशंकर 
प्रलेयन्कार रामेश्वर
चंद्रमोली डमरूधारी 
चंद्रधारी के चरणों में
नतमस्तक हुई सती माता।

लिखा करम  में  जो विधाता,
टाल कोई न पाएगा।
अपने करम को ध्यान रखना,
होनी कौन मिटाएगा।
♨♨
✒..... धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)


Friday, 24 July 2020

जगत श्रेष्ठ प्राणी हैं साहब...


जगत श्रेष्ठ प्राणी हैं साहब
♨♨
जगत श्रेष्ठ प्राणी हैं साहब
ज्ञान दे दो परवाह नहीं
जान दे दो परवाह नहीं
ईमान दे दो परवाह नहीं
कुर्बानी दे दो परवाह नहीं
जगत श्रेष्ठ प्राणी हैं साहब
अराम चाहिए काम नहीं
सब हो पर मेहनत नहीं
बेकार रहलें  दुख नहीं
सकारात्मक  मन  नहीं
जगत श्रेष्ठ प्राणी हैं साहब
~~
जगत श्रेष्ठ प्राणी हैं साहब
काम न करने पर दुख
काम  करने पर  दुख
कुछ अच्छा तो  दुख
कुछ बुरा तो दुखे  दुख
जगत श्रेष्ठ प्राणी हैं साहब
कुछ दे दिया इसका दुख
कुछ न दिया दुखे दुख
कुछ सोच लिया दुख
न सोचा  तो दुखे दुख
जगत श्रेष्ठ प्राणी हैं साहब
~~
जगत श्रेष्ठ प्राणी हैं साहब
गजब इनकी अभिलाषा
पार कोई नहीं पाएगा
बने में माथे पर साधे
न बने तो धरती पटके
जगत श्रेष्ठ प्राणी हैं साहब
इनके फेर में नहीं आना
विवेक खूद अपनाना
संतुष्ट होना मुश्किल है
कर्म सदा नित करना है
जगत श्रेष्ठ प्राणी हैं साहब
♨♨
  
✒......धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)



Thursday, 23 July 2020

मन की सोच...

मन की सोच...
♨♨
मन की  सोच अज़ीब बहुत है
जाने क्या क्या सोचा  करती।

मन  ही   हमें  तो  पहचाने  है
गलत सही सब कुछ जाने  है।

खुशी में आतुर प्रसार है करती
दुख   में  अपने  ढुंढ़ा   करती।

शिकवा और शिकायत  रटती
इनसे उनसे  पकड़ बतियाती।

जाने  कैसी  मन  की  प्रकृति!
शिकायत उगल पाए निवृत्ति।

तारीफ पे  ठीठकने  की वृत्ति
मन  जुबान सीलबंद  प्रवृत्ति।

बाल  की  ख़ाल  झट निकाले
कैची  इनकी  ज़ुबान संभाले।

बूरा   भला   से  मेल  न  राखें
मनई   कऽ   सम्मान न  जानें।

ऐसी  फितरत   सभी  की  है
कम   किसी   में   ज्यादा  है।

बुद्धि  में नकारात्मकता होती
खुशी  से पहले दुख पर रोती।

रे मन अब चल शांत होजा तु
कब  तक कितना सोचेगा तु।

सबके खुशी का इतना  सोचे
जरूरी नहीं  सब खुश रहें रे।

खुश  होते  वृद्धाश्रम  न होता
खून अपना आश्रम न  लाता।

मन  ही   हमें  तो  पहचाने  है
गलत सही सब कुछ जाने  है।

मन की  सोच अज़ीब बहुत है
जाने  क्या क्या सोचा  करती।
♨♨
कविता का भाव:-
☛एक कहावत है:-"मन के हारे हार है, मन के जीते जीत" जो पूर्णता सत्य व सही भी है।
☛मन की गति मन का फैलाव मन का प्रसार अलौकिक व अकल्पनीय है। अदृश्य मन को पकड़ना रोकना व स्थिर करना उतना ही मुश्किल है जितना सदृश्य में परछाई को पकड़ना व रोकना।
☛मन की सोच कल्पना से भी परे है कब क्या सोच लेगा और कहाँ भ्रमण कर आएगा जिसकी कल्पना करना मुश्किल है। अक्सर मन की जो प्रकृति है वह सकारात्मकता से थोड़ा दूर ही रहती है।
☛मन पर सबसे पहले नकारात्मकता प्रभावी होती है अगर इंसान विवेक शून्य है तो समझलो पतन का मार्ग प्रशस्त होगी। यदि इंसान विवेक शून्य नहीं है विवेकी व समझदार है तो सकारात्मकता को तवज्जो देगा और उत्थान की ओर अग्रसर होगा।
☛इंसान के मन को समझने और जानने का सहज व सरल तरीका उसके आदत, व्यवहार, क्रियाकलाप, रहन सहन, बात चित व संस्कार से किया जा सकता है।
☛इंसान का अपने जीवन में सुखी व दुखी होने व रहने का एकमात्र कारण उसकी मनःस्थिति व मन की सोच पर ही निर्भर करती है और उसके इस कार्य में उसके बुद्धि व विवेक का महत्वपूर्ण योगदान है।
☛हर इंसान का मन सही गलत को बखूबी जानता है उसका का मन बहुत ही सहजता से गलत और सही को इस प्रकार से अलग करता है जैसे सारस दूध से पानी अलग करता है। 
☛बस इंसान का बुद्धि विवेक कुछ न कुछ लोलुपता व अभिमान व अकड़ वश पहचानने से अलग करने से रोक देता और मुश्किलों को बढ़ावा देता। तत्पश्चात घर परिवार व समाज में अनेक प्रकार की बुराईयों का जनम होता है।
☛जीवन में खुशियाँ हो!
☛सोच सकारात्मक हो!
☛बुद्धि विवेक प्रखर हो!
♨♨

✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)

Wednesday, 22 July 2020

जरूरत नहीं इंसान से इंसान की।

जरूरत नहीं इंसान से इंसान की।
~~
खतम हो गई जरूरत  इंसान  से इंसान की।
किससे उम्मीद करे इंसान प्रेम सदभाव की।

याद हैं वो  दिन रिश्ते में गज़ब  मिठास थी।
क्या दौर  क्या दिन अभाव था पर प्यार थी।

क्यों न हो  इंसान की जरूरत ही इंसान थी।
दुख रहे या सुख रिश्ते  सिद्दत से सरीख थी।

खूब याद है कटोरी में  शक्कर  पड़ोस  की।
छोटी  बड़ी  जरूरत  एक  दूसरे इंसान की।

संबंध में खटास न हो  शालीन बने रहते थे।
आपस की जरूरत थी  प्यार  से जी रहे थे।

खतम हो गई  जरूरत  इंसान से इंसान की!
सर्वनाश हो आधुनिक मोबाईल समाज की।

जरूरत  घर  की  आपस  में पूरी होती थी।
घर  की  फरमाईश एक फोन पुरी कर रही।

रही सही कसर आनलाईन शाॅपिंग कर रही।
खतम हो गई जरूरत  इंसान  से इंसान की।

अब  न  स्वार्थ  रहा  और  न  वो  प्यार रहा।
अब न वो इंसान  रहा  और  न समाज रहा।

खतम हो गई जरूरत  इंसान  से इंसान की।
किससे उम्मीद करे इंसान प्रेम सदभाव की।
♨♨

कविता का भाव:-
☛याद करता हूँ जब अपने बचपन की हर इंसान हर किसी से जुड़ा हुआ रहता था। जब घरों में कोई शादी विवाह का अवसर होता था तब पड़ोस से काफी सहयोग हुआ करता था। यहाँ तक कि मेहमानों के सुख सुविधा के लिए काफी मदद लिया व किया जाता था। घरों में कोई वस्तु उपलब्ध नहीं रहती थी तो पूर्ति के लिए एक पड़ोसी दूसरे पड़ोसी की मदद सहर्ष बड़े चाव करता था।
☛परन्तु आज का परिवेश पूरी तरह से बदल गया है। आज कोई भी इंसान किसी भी इंसान पर आश्रित या निर्भर नहीं है। या यूँ कह लीजिए इंसान अपने घरों के अधिकांश मामलों में पूर्णतया आत्मनिर्भर है। आधुनिक युग में संसाधन इतना पर्याप्त हो गया है कि पल भर में हर कार्य हर जरूरत पूरी हो जा रही है। 
☛यही कारण है कि इंसान के पास अब कोई बहाना ही नहीं रहा कि वह किसी बहाने पड़ोस में जाए। दूरियाँ बढ़ने लगी है। इंसान के पूराने जीतने मनोरंजन के संसाधन थे सभी समाप्त हो गए। नये दौर में मनोरंजन के सारे संसाधन आज उसके हाथ में हो गए हैं।
☛आज के इस आधुनिक युग में किसी से कुछ पूछने के लिए भी जाना नहीं होता उसके लिए हर हाथ गुगल आ गया है एक क्लिक पर सारी जानकारियाँ कुछ सेकेंड में उपलब्ध हो जा रही है और कोई भी समान आर्डर से घर आ जा रहा है। यह भी वजह है इंसान दूर होता चला जा रहा है।
☛इंसान के जीवन से जुड़ी हर कार्य उसके अपने सोच के अनुसार तमाम भाड़े के संसाधनों के द्वारा पूरे होते जा रहे हैं। सह भागी बनने या बनाने की जरूरत ही नहीं पड़ रही है। जाहिर सी बात है अब हर इंसान को उसके पड़ोस व अपनों की जरूरत ही नहीं रह गयी है।
☛शायद यही वजह है कि इंसान के जेहन में पड़ोस व अपनों के प्रति वो प्रेम, प्यार व स्नेह नहीं रहा। आज हर इंसान पूरी तरह से स्वतंत्र व आजाद है। आज अहसान व दबाव जैसी कोई बात नहीं रह गयी है।
☛उपरोक्त के बावजूद इंसान अगर के परिवेश में तनिक भी सहानुभूति अगर दिल में दूसरों के लिए रखता है तो वह बहुत बड़ी बात है और आज के दौर में ऐसा व्यक्तित्व फिर महान होगा।
♨♨
✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)






Tuesday, 21 July 2020

कोरोना तेरे काल में...

कोरोना तेरे काल में...
♨♨
क्या से क्या हो गया!
कोरोना तेरे काल में...

पहले हम मिलते थे
मरीज से बड़े प्यार से
डर रहा इंसान, इंसान से
हैं दूर आज जग में सभी
इस कोरोना काल में।

मिलते ही खबर कोरोना
इंसान   दूर   हो   रहा!
संवेदना भी दूर इंसान से
क्या से क्या हो गया
कोरोना काल में।

सीने में सहानुभूति
अपने दफ़न हो रही
मानवता दुख में है!
दुखी संसार हो रही
कोरोना काल में।

मिलते ही खबर कोरोना
इंसान   दूर   हो   रहा!
नजदिकियाँ कम थी ही
स्तर और भी गिर रही
कोरोना काल में।

हे बलवीर संकट मोचक
संकट से अब उबार दो
संहार करो दुष्टिनी का
मानवता को संभालो!
कोरोना काल में।

क्या से क्या हो गया!
कोरोना तेरे काल में...
♨♨
✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)

Monday, 20 July 2020

कवि मन वृद्धाश्रम में...

कवि मन वृद्धाश्रम में...
♨♨
क्यों इतना तु सोचे रे मनवा 
मत इतना तु सोच रे..........

फंसा हुआ अपने माया में!
मता पिता हैं  बृद्धाश्रम में!
उनकी काया से ही बने हैं!
वो अनाथ क्यों आश्रम में।

क्यों इतना तु सोचे रे मनवा 
मत इतना तु सोच रे..........

ऐसी पीड़ा  अपने ही देते! 
गैरों  से  रख  कर  प्रित रे।
जन्म दिए पाले और पोषे!
उनके दर्द का नहीं मोल रे।

क्यों इतना तु सोचे रे मनवा 
मत इतना तु सोच रे..........

माता पिता के प्रित को जाने!
कलप न पाए बुढ़ापा मन रे।
उनकी छाया तुझको बढ़ाए!
चल समझले उनकी प्रित रे।

क्यों इतना तु सोचे रे मनवा 
मत इतना तु सोच रे..........

हे मन चल अब शांत हो जा!
जरूरी नहीं सब खुश रखें!
खुश होते वृद्धाश्रम न होता!
खून अपना ही उसे बसाया।

क्यों इतना तु सोचे रे मनवा 
मत इतना तु सोच रे..........
♨♨
✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)

Sunday, 19 July 2020

गीत (प्यार के खातिर...)

~~गीत~~
♨♨
अपनी खुशियों के लिए
हम दो कदम साथ चलें!
चलो हम प्यार के खातिर
दो कदम साथ चलें!....

जीवन में कभी गम न हो
मन को स्वच्छ बना लेंगे।
खुशियाँ हों जिन्दगी में
दो कदम साथ चलें।...

अपनी खुशियों के लिए
हम दो कदम साथ चलें!.....

कड़वाहट और नफ़रत
मन के करीब न लाएंगे।
लम्हें रूसवाईयों के भूल
दो कदम साथ चलें।...

अपनी खुशियों के लिए
हम दो कदम साथ चलें!....

जिन्दगी के शेष कितने दिन
न तुम जानो न हम जाने!
जितने दिन हों साथ रहले
दो कदम साथ चलें।....

अपनी खुशियों के लिए
हम दो कदम साथ चलें!...

अमर अपना जहाँ होगा
दिलों को सब याद करें।
होगा अपना मिसाल यहाँ
दो कदम साथ चलें।...

अपनी खुशियों के लिए
हम दो कदम साथ चलें!...

अपनी खुशियों के लिए
हम दो कदम साथ चलें!
चलो हम प्यार के खातिर
दो कदम साथ चलें!....
♨♨

✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)



Saturday, 18 July 2020

गीत (जाने क्यूँ नफ़रत कर...)

गीत
♨♨
जाने क्यूँ नफ़रत कर हमने,
खूद को  क्षति  पहुँचायी है।
क्या  करूँ  पगले  मन का,
कटुता  खूद  ही  बढ़ायी है।

जल  भुन नफ़रत में हमने,
पीड़ा   जिसे  पहुँचायी  है।
जानबूझ के इस पीड़ा को,
अपने भी गले  फंसायी है।

प्रेम ही प्यार की  जननी है,
क्रोध से  कटुता  बढ़ती  है।
प्यार बाटे हैं  प्यार  मिले है,
नफ़रत से नफ़रत बढ़ती है।

कुदरत ने मानव को दिया है,
पंचतत्व अमृत वरदान यहाँ।
नहीं सोचता अपने मान की,
कर्तव्य सदा  करता ही रहा।

हवा जल का रूख़ है बहना,
रोक   भला   कैसे   पाएगा।
रोकने की सोचेगा जिस दिन,
खूद ही  वजूद मिट जाएगा।

कुदरत ने हर एक इंसा को,
जीवन  एक  समान  दिया।
इंसान  ने भेद  भाव करके,
कुदरत को झूठा बना दिया।

भोग रहा  आज हर इंसान,
कुदरत से खेलवाड़ किया।
कोरोना  रूपी  वायरस से,
खूद ही जान  फंसा डाला।

कोयला   लोहा   पिघलाता,
पर खूद साबुत नहीं बचता।
यहीं   कहानी  गढ़  रहा  है,
हर  एक  इंसा  आज  यहां।

स्वभाव इंसा का प्रेम भाव है,
नफ़रत का कोई स्थान नहीं।
प्रेम भाव को जब जब रोका,
खूद  नफ़रत  के  बलि चढ़ा।

जाने क्यूँ  नफ़रत कर हमने,
खूद  को  क्षति  पहुँचायी है।
का करूँ इस पागल मन का,
कटुता  खूद  ही  बढ़ायी  है।
♨♨
✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)



Friday, 17 July 2020

गज़ल

गज़ल
♨♨
मस्त रहती ऐसे ही कवियों की जिन्दगी!
कोई गमगीन तो कोई पढ़ खुश हो गया।

दर्द दिल को मिला गीत गज़ल बन गया!
राह मुश्किल हुई  संग  कविता बन गयी।

जहाँ कमियाँ दिखी उनमें सुधार हो गया।
जहाँ अच्छाईयाँ दिखी वो प्रसार हो गया।

मस्त रहती ऐसे ही कवियों की जिन्दगी!
हर मन हो कवि मातेश्वरी कृपा कर यही।

आरजू बस यही अज्ञानता धरा पर न हो!
माँ आशीष दे यही  श्वर अभिमानी न हो।

मानवता की राह में सत गुनगुनाता रहे!
दिल जगाता रहें सत कारवां बढ़ाता रहे।

मस्त रहती ऐसे ही कवियों की जिन्दगी!
कोई गमगीन तो कोई पढ़ खुश हो गया।
♨♨
✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)


Thursday, 16 July 2020

गज़ल (कैसे पैमाना बनाएं...)

गज़ल
♨♨
कैसे पैमाना बनाएं  हम जीने के लिए!
हर पल में वो पैमाना ही बदल देते हैं।।

तेरी मानक पर जीएंगे कसम ले ली है!
राहें मुश्किल है फिर भी गले लगाएंगे।।

धैर्य का स्वामी हूँ धीरज बनाए रखा हूँ!
वो भी दिन होगा हर पैमाना मेरा होगा।।

कैसे पैमाना बनाएं हम जीने के लिए!
हर पल में वो पैमाना ही बदल देते हैं।।

जाने क्यों हर घड़ी आजमाते हो तुम!
थोड़ी है जिन्दगी क्यों इतराते हो तुम।।

दर्द दिल को हुआ  गुनगुनाता  लेता हूँ!
गीत गज़लों से दिल को बहला लेता हूँ।।

कैसे पैमाना बनाएं हम जीने के लिए!
हर पल में वो पैमाना ही बदल देते हैं।।

फिक्र अपनी करो  तुम मेरे साथिया!
है यही  आरज़ू  खुश  रहे  तुम  सदा।।
♨♨

✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)

Wednesday, 15 July 2020

वृद्ध पिता सार्थक तथ्य....


वृद्ध पिता सार्थक तथ्य.... 
हर रिश्तों में ईश्वर बसते  माता पिता  या दीगर कोई
इन रूपों में साथ हैं अपने  जिसकी हमें पहचान नहीं।
♨♨  ।।सोशल मीडिया फेसबुक वाल से संकलित।। (Copy)
☛एक पुत्र अपने वृद्ध पिता को रात्रिभोज के लिये एक अच्छे रेस्टोरेंट में लेकर गया। खाने के दौरान वृद्ध पिता ने कई बार भोजन अपने कपड़ों पर गिराया। रेस्टोरेंट में बैठे दूसरे खाना खा रहे लोग वृद्ध को घृणा की नजरों से देख रहे थे लेकिन उसका पुत्र शांत था। 
☛खाने के बाद पुत्र बिना किसी शर्म के वृद्ध को वॉशरूम ले गया। उनके कपड़े साफ़ किये, चेहरा साफ़ किया, बालों में कंघी की, चश्मा पहनाया, और फिर बाहर लाया। सभी लोग खामोशी से उन्हें ही देख रहे थे। 
☛फ़िर उसने बिल का भुगतान किया और वृद्ध के साथ बाहर जाने लगा। तभी डिनर कर रहे एक अन्य वृद्ध ने उसे आवाज दी, और पूछा - क्या तुम्हें नहीं लगता कि यहाँ अपने पीछे तुम कुछ छोड़ कर जा रहे हो? 
☛उसने जवाब दिया - नहीं सर, मैं कुछ भी छोड़कर नहीं जा रहा।  
☛वृद्ध ने कहा - बेटे, तुम यहाँ प्रत्येक पुत्र के लिए एक शिक्षा, सबक और प्रत्येक पिता के लिए उम्मीद छोड़कर जा रहे हो।  
☛आमतौर पर हम लोग अपने बुजुर्ग माता-पिता को अपने साथ बाहर ले जाना पसंद नहीं करते,
और कहते हैं - क्या करोगे, आपसे चला तो जाता नहीं, ठीक से खाया भी नहीं जाता, आप तो घर पर ही रहो, वही अच्छा होगा।
☛लेकिन क्या आप भूल गये कि जब आप छोटे थे, और आपके माता पिता आपको अपनी गोद में उठाकर ले जाया करते थे। आप जब ठीक से खा नहीं पाते थे तो माँ आपको अपने हाथ से खाना खिलाती थी, और खाना गिर जाने पर डाँट नही प्यार जताती थी।
☛फिर वही माँ बाप बुढ़ापे में बोझ क्यों लगने लगते हैं? 
☛माँ-बाप भगवान का रूप होते हैं। उनकी सेवा कीजिये, और प्यार दीजिये क्योंकि एक दिन आप भी बूढ़े होंगे।
जीवन की सार्थकता माता पिता की सच्ची सेवा!
सर्वदा आदर व सम्मान करें!
☛पोस्ट अच्छी लगे तो शेयर करना मत भूलिएगा, आपका एक शेयर काफी लोगों को बदल सकता है।
~~
हृदय से धन्यवाद! आभार!
♨♨
।।सोशल मीडिया फेसबुक वाल से संकलित।। 




Tuesday, 14 July 2020

गज़ल

गज़ल
♨♨
मन में  खटकने  लगे हैं बात दूर हो जाएं!
छोड़ कर तकरार पास हों खुशी आ जाए।

पास  होकर हों  ख़ामोश सजा हो  जाएं।
फितरत तेरी कुछ ऐसी दूर कोई हो जाए।
बेवजह शिकवा करो  कोई चूप हो जाए।
मेरी सुकून को तुम क्यों तड़पा के जाए।
मन में खटकने लगे हैं बात दूर हो जाएं।

जानना चाहा जब भी तेरी रूसवाई को!
हर जवाब तेरा  क्यों  ख़ामोश  हो जाए।
बेपनाह प्यार तुम गैर से जता के आए!
मुझसे लहजा नफ़रत भरे क्यों हो जाए।
मन में खटकने लगे हैं बात दूर हो जाएं!

दुख है मुझको बेवजह  रूसवा हो जाएं!
हमने सपने में न सोचा  बेवफा हो जाएं।
नफ़रत ही तेरी ऐसी है ख़ामोश हो जाएं।
जिद्द है तेरी या कमी अपनी ढूंढ़ न पाएं।
मन में खटकने लगे हैं बात दूर हो जाएं!

गलत हम नहीं गलती वो भी न मान पाएं!
ऐसे तकरार से तो दोनो का बुरा हो जाए।
दिल को तड़पा के  वो हासिल  क्या पाएं।
खून अपना ही जलेगा  सुकून चला जाए।
मन में खटके न कोई बात पास आ जाएं।

मन में खटके न कोई बात सुकून हो जाएं!
छोड़ कर तकरार पास हों खुशी आ जाए।
♨♨
✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)

Sunday, 12 July 2020

नींद में बड़बड़ाना....

नींद में बड़बड़ाना....

☛नींद में खर्राटे लेना एक बिमारी है परन्तु बड़बड़ाना व चिल्लाना कुदरती व्यवस्था है जो इंसान के अंदर पनप रहे विकार को नींद की सुषुप्तावस्था अचेतन में नष्ट करवाती है। जो इंसान के स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से हितकारी भी है क्योंकि इस प्रक्रिया के बाद दूसरे पल इंसान विकार मुक्त हो जाता है। नींद में चिल्लाना बड़बड़ाना एकमात्र उसका ही अवगुण नहीं है उसके पीछे वो भी कारक हैं जो उसके अपने हैं। इसको समझने की जरूरत है और कारणों को जानने की जरूरत है। 

☛हर समस्या का निराकरण है बस इंसान को अपनी जिम्मेदारियों व कर्तव्य निर्वहन का ज्ञान हो। जीवन में हर चीज का एक दायरा है उसका भी सहज ज्ञान हो। इंसान और उससे जुड़ी उसकी कार्यशैली व उसकी अपनी क्षमता या उसका स्वयं का आचरण व व्यवहार व संस्कार पर स्वयं का नियंत्रण हो।

☛जब किसी के द्वारा किसी इंसान का कोई भी हक व अधिकार उसकी आदत व व्यवहार व उसके संस्कार से छेड़छाड़ किया जाता है या उसकी स्वतंत्रता में, उसकी आजादी में बाधक बनता है, जब अवरोध उत्पन्न होता है जिससे व्यक्ति की मनोदशा खराब होने लगती है।

☛यदि व्यक्ति उसका विरोध प्रतिरोध कर ले जाता है तो वह लगभग सामान्य रहता परन्तु यदि विरोध प्रतिरोध नहीं कर पाता तो वह व्यक्ति हमेशा उसी बात व उसी प्रकरण को लेकर अपने आप से अपने अंतर्मन से द्वंद करने लग जाता और इसी जद्दो जहद में वह हर वक्त रहता है।

☛यही जद्दोहद उस व्यक्ति का तब देखने को मिलता है जब वह अचेतन अवस्था यानि नींद में होता है। ऐसे व्यक्तित्व के लिए कुदरत की यह बिलकुल नायाब व्यवस्था है कि जो नींद की सुषुप्ता अवस्था स्वप्न के रूप में सक्रिय होता है और इंसान अपने चेतन आवेग आवेश की तरह ही अपने स्वप्न में इस प्रकार व्यवहार करता और पूरजोर विरोध व प्रतिरोध करता।

☛परिणास्वरूप ऐसा इंसान नींद में ही अपनी पूरी ताकत से ऐसे कारकों का जिसका वह चेतन में विरोध व प्रतिरोध नहीं कर पाया था, विरोध करता है; स्वभाविक है कि वह नींद में चिल्लाएगा ही तथा उन कारकों पर अपने आदतानुसार उसी लहजे में गाली भी देता और कभी कभी घातक हमला भी कर जाता है। ऐसा हो जाने से इंसान फिर दूसरे दिन अपने को सहज पाता है।

☛यह समस्या ऐसे इंसान पर ज्यादा असर करती है जो परिवारिक व समाजिक दायित्वों की जिम्मेदारियों को समझता है और अपने मान सम्मान व मर्यादानुसार निभाने की चेष्टा करता है परन्तु परिवार के अन्य नासमझ अविवेकी सोच के सामने ऐसा व्यक्तित्व जब अपने को असहाय व विवश पाता है तो वह अनावश्यक विवाद से बचने के लिए तत्काल विरोध प्रतिरोध के बजाय अपना स्वभाविक मन मस्तिष्क से द्वन्द करने लग जाता और खामोश अन्तर्द्वन्द मानस पटल में चलता रहता।

☛तब इसका रिएक्शन इंसान की सुषुप्तावस्था नींद के अचेतन में देखने को बखूबी मिलता। इस घटनाक्रम को कोई समझ नहीं पाता। अगर आप कुछ जानने की चेष्टा करें तो पाएंगे कि वह व्यक्ति उसके ऊपर भड़क रहा था जिससे उसको निराशा हाथ लगी थी; उसके भावनाओं को ठेस पहुँची थी; जिस कारण उसके अंतर्मन में द्वंद चल रहा था और वह उलझन में था।

☛परिवार के हर सदस्य का या परिवार से जुड़े अन्य का यह नैतिक कर्तव्य व दायित्व है कि वह हर सदस्य चाहे वह छोटा हो या बड़ा हो या बुजुर्ग हो या घर में आने जाने वाले नौकर चाकर हो सबको मन से सुने, उनको सम्मान दें, उनके भावनाओं का कद्र करें, उनकी बातों पर तत्काल विरोध न करे, विरोध के लिए समय व सुन्दर व सलीके पर ध्यान दें, आदर सूचक शब्दों का इश्तेमाल करें। ऐसा करने से घर में सुख सम्पत्ति व सुकून होगा।

☛इसीलिए हमारे अपने बड़े बुजुर्ग सदा ही यही कहते थे कि हमेशा इंसान को अच्छा सोचना व करना चाहिए बेवजह किसी का दिल नहीं दुखाना चाहिए। किसी भी समस्या का निदान आपस में मिल बैठ कर बुद्धि व विवेक से करना करना चाहिए। यह भी कहते थे कि सोने से पहले ईश्वर का नाम ले अच्छे चरित्र को याद करें। बुजुर्गों की पुरानी बातें पुराने तथ्य आज अक्षरसः सत्य व सही है।

☛आज कोई भी इंसान उपरोक्त किसी भी बातों का कोई महत्व व तवज्जों नहीं देता। इतनी किसी इंसान की सोच ही नहीं है। तभी तो हमारे समाज में इंसान खूद की लापरवाहियों व नादानियों से तमाम तरह की समस्याओं व अवसाद से ग्रसित है। परिवार में विघटन हो जाता। आपसी तालमेल नफ़रत व घृणा की भेंट चढ़ जाता है।

☛जब किसी इंसान का अपने परिवार में ही उसका कोई वजूद नहीं रह जाता है तब ऐसे इंसान का दिमाग असंतुलित होने लग जाता, सोचने समझने की क्षमता का ह्रास होने लगता है, बुद्धि विवेक भ्रष्ट होने लग चला जाता है। अमन चैन परिवार का बिगड़ने लग जाता है। अब ऐसे परिवारिक परिवेश से क्या उम्मीद किया जा सकता? परिवार को क्या मिल सकता है? समाज को क्या मिल सकता? हमारा भविष्य कैसा होगा? बताने की जरूरत नहीं।

☛इस संसार में आज तक मानव को जो भी ज्ञान व उपदेश मिला उसमें बस एक बात पर ज्यादा ही फोकस किया गया वह है "प्रेम, प्यार व मोहब्बत" क्योकि यही वह कारक है जिससे घर परिवार व संसार सुन्दर बन सकता है और दूसरा तरीके का गंभीर परिणाम आज पूरी मानवता कोरोना के रूप में देख रहा झेल रहा है।
नोट:- यह लेख सिर्फ एकमात्र नींद में बड़बड़ाने व चिल्लाने जैसी समस्या के लिए ही नहीं है; इंसान व उसके जीवन से जुड़ी हर बात हर समस्या का समाधान उपरोक्त कथन व विचार से संभव है।
कहते हैं :-
ख़ुशी से बीते हर दिन, हर रात सुहानी हो!
कदम तेरे जिधर पड़े, फूलों की बारिश हो।
~~
हर समस्या के कारक भी हम सभी ही है!!
~~
हर समस्या का निराकरण सबके स्वयं के प्रयास से है!!
~~
बस अपनी कमियों की पहचान हो!!
~~
एक सुन्दर अहसास हो!!
~~
प्यार व मिठास हो!!
~~
♨♨
~~
✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)


Saturday, 11 July 2020

तुझ पर क्या गीत लिखूँ...

~गीत~
तुझ पर क्या गीत लिखूँ.....
🍁🍁
तुझ पर  क्या गीत लिखूँ
    मन में अनोखे शब्द नहीं...
                   तुम  मेरी जीवन संगिनी
                   प्रेरणा  मेरे  जीवन  की
                   ममता  मेरे  लाडलों की
                   खुशियाँ  मेरे आंगन की
तुझ पर क्या गीत लिखूँ
     मन में अनोखे शब्द नहीं...
                   सुख दुख मेरे साथ चली
                   तुझ  सा  कोई मित नहीं
                   वचनों  की रीत निभाऊँ
                   शायद सत्कर्म कर पाऊँ
तुझ पर  क्या गीत लिखूँ
    मन में अनोखे शब्द नहीं...
                   कामना यही रब से करूँ
                   मंजिल  तक  साथ  चलूँ
                   खुशियाँ आईं घर आंगन
                   तुम आई जो, मेरे जीवन
तुझ पर  क्या गीत लिखूँ
   मन में अनोखे शब्द नहीं...
🍁🌹🍁
✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"

Friday, 10 July 2020

हम भी जो कवि बन जाऊँ..

हम भी जो कवि बन जाऊँ..
♨♨
हम भी जो कवि बन जाऊँ!
इसी सोंच में डूबा हुआ हूँ।
शब्दकोश बढ़ाने लग गया
वकील हूँ  कवि है बनना।
गीत गज़ल का ज्ञान नहीं 
लिखने का परवान चढ़ी।
प्रेम मोहब्बत यहाँ है खूब
ईर्श्या द्वेश नही कोई शेष।
~~
हम भी जो कवि बन जाऊँ
जुबां से सबके गुनगुनाऊँ।
वाह वाही की आस लगाऊँ
खुशियों का संदेश फैलाऊँ।
मानव कमियां व अच्छाईयां
अपनी रचना  से  गिनवाऊँ।
गीत  गज़ल और कविता से
मन हर्षित सबका कर जाऊँ।
~~
हम  भी जो  कवि बन जाऊँ
शब्दों की अठखेलियां कराऊँ।
इधर ऊठा कर उधर जोड़ता
तुकबंदी  को  जोड़ा करता।
मुश्किल  बहुत है इसमें भाई
मन भावना की खूब लड़ाई।
लिखता जो कुछ उसे पढ़ाता
मतलब   पुछता   जोरू   से।
~~
रोल जोरू का बहुत है भारी
पास  मुझे जो  वो  कर देती
पटल पर रचना पसार देता।
वकील का तमगा भी प्यारा है
साहित्य सेवा में कदम उठा है।
उम्मीद व इसी आशा में बढ़ता
हम भी जो कवि बन जाऊँ.....
♨♨
~~
✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)

Thursday, 9 July 2020

गीत (कितना भी प्यार लूटाता)

~~गीत~~
♨♨
कितना भी प्यार लूटाता 
तुझे कुछ नहीं भाता..........
हाड़ मास की काया
जाने क्यूँ अकड़ता।
प्रेम प्यार संग रहता
तेरा क्या चला जाता।

कितना भी प्यार लूटाता 
तुझे कुछ नहीं भाता..........
हर वक्त उफान में रहता
तुझे क्या हो जाता।
ईश्वर की धुनी रमाता
फिर क्यूँ नहीं समझता।

कितना भी प्यार लूटाता 
तुझे कुछ नहीं भाता.........
प्यार मैं तुझसे करता
तुम नफ़रत क्यूँ करता।
दो दिन की जिन्दगी को
गमगीन क्यूँ करता।

कितना भी प्यार लूटाता 
तुझे कुछ नहीं भाता..........
फाएदे का मेरा सौदा
क्यूँ घाटे में है जीता।
तंग कभी नहीं करता
तुम्हें क्या हो जाता।

कितना भी प्यार लूटाता 
तुझे कुछ नहीं भाता..........
♨♨
~~
✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)

Tuesday, 7 July 2020

जीवन की सच्चाई

जीवन की सच्चाई!
♨♨
जीवन  की सच्चाई
कभी याद न आयी
अकेला   ही  आया
जाएगा     अकेला।

जीवन   मरण  बस
यही  सिलसिला  है
जनम  मिल गया है 
मरण    है   बाकी।
~~
जनम से   मरण के
समय   अंतराल  में
कर्तव्य      दायित्व
जिम्मेदारी निभाना।

अन्तिम  पड़ाव  के
राही    सभी     हैं।
कोई  कम तो कोई
संग ज्यादा चलेगा।
~~
विपदा  जब  आया
जीवन   पर   छाया
सच्चाई  जीवन का
तभी   याद   आया।

असल में जीवन का
यही   लेखा  जोखा
मंजर    खुशी    का
आशियां  खुशी का।
~~
तुम्हें  याद  न आयी
हमें  याद  न  आयी
आया  कोरोना  तब
नानी   याद  आयी।
~~
जीवन  की  सच्चाई
तभी    याद    आई।
♨♨
✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"

Monday, 6 July 2020

प्यार का वजूद नहीं..(गीत)

~~ गीत ~~
♨♨
तेरी नफ़रत से यही सीख मिली!
प्यार का अपने कोई वजूद नहीं।

जिन्दगी में हम प्यार से ही मिले!
प्यार से ही  दुनियां  को सजाये।

साथ  रहने  की थी कसमें खाई!
कसमें तोड़ी है वादें भी भुला दी।

अपने प्यार पर  गुरूर करते थे!
तुमने प्यार की वजूद मिटा दी।

तेरी नफ़रत से यही सीख मिली!
प्यार का अपने कोई वजूद नहीं।

उन लम्हों की  क्यूँ  याद न आई!
तकरार  में  भी  प्यार  देखी थी।

क्यूँ  नफ़रत पर  विश्वास जमाई!
प्यार मोहब्बत तुम बिसराई हो।

प्यार ही  ईश्वर  प्यार  ईबादत है!
नफ़रत को  क्यूँ  गले  लगाई हो।

तेरी नफ़रत से यही सीख मिली!
प्यार का अपने कोई वजूद नहीं।
♨♨
कविता का भाव:-
✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव(हृदय वंदन)


Sunday, 5 July 2020

सेल्फी की दरकार...


रसूखदार सेल्फी.....
🍁🍁
रसूख़दार  सेल्फी की दरकार,
मन  को  भाती बहुत सरकार।
रसूखदार कोई गर दिख जाए,
चढ़े  फिर  सेल्फी  का बुखार।
मन  को  भाती बहुत सरकार..
        रसूख़दार  सेल्फी  की दरकार,
        मन  को  भाती बहुत सरकार।
नेता  खिलाड़ी  हीरो  हीरोईन,
सेल्फी अगर इनके संग साथ।
डीपी  तुरंत अपने बदल जाए,
कद भाव  रौनक  बढ़  जाए।
मन  को  भाती बहुत सरकार..
        रसूख़दार  सेल्फी  की दरकार,
        मन  को  भाती बहुत सरकार।
रसूख़दार  संग होती भी भीड़,
घुसे  हम  गर्दन उचकाए वीर।
मन  मा  गजब ही रहता उमंग,
किस्सा अजब गजब मन धीर।
मन  को  भाती, बात गम्भीर..
        रसूख़दार  सेल्फी  की दरकार,
        मन  को  भाती बहुत सरकार।
🍁🍁☛....#हृदयवंदन
✒...धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"

Friday, 3 July 2020

कुतुबुद्दीन ऐबक और शुभ्रक....

कुतुबुद्दीन ऐबक के मौत का कारण बना "शुभ्रक" की शौर्य गाथा।
♨♨
।।सोशल मीडिया फेसबुक वाल से संकलित।।
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☛कुतुबुद्दीन ऐबक घोड़े से गिर कर मरा सब जानते हैं, लेकिन गिर कर मरा कैसे? क्या हुआ उसके साथ? यह किसी को पता नहीं है?
☛कुतुबुद्दीन ऐबक की मौत का कारण "शुभ्रक" के शौर्य गाथा को हम सोशल मीडिया एकाउण्ट से प्राप्त कर आप सभी के समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं।
☛परम पराक्रमी महान योद्धा वीर महाराणा प्रताप जी का घोड़ा "चेतक" सबको याद होगा परन्तु "शुभ्रक" भी एक ऐसा ही वीर व स्वामी भक्त घोड़ा था जिसके बारे में किसी को पता नहीं। "शुभ्रक" गुमनामी का शिकार हो गया। "शुभ्रक" उदयपुर के "राजकुंवर कर्णसिंह" का महान स्वामी भक्त घोड़ा था। "शुभ्रक" की शौर्य गाथा अविष्मरणीय व काबिले तारीफ है।
☛कुतुबुद्दीन ऐबक ने राजपूताना में जम कर कहर बरपाया, और उदयपुर के 'राजकुंवर कर्णसिंह' को बंदी बनाकर लाहौर ले गया। कुंवर का "शुभ्रक" नामक एक स्वामिभक्त घोड़ा था।जो कुतुबुद्दीन को पसंद आ गया और वो उसे भी साथ ले गया।
☛एक दिन कैद से भागने के प्रयास में कुँवर सा को सजा-ए-मौत सुनाई गई और सजा देने के लिए "जन्नत बाग" में लाया गया। जहाँ यह तय हुआ कि "राजकुंवर" का सिर काटकर उससे 'पोलो' खेला जाएगा।
☛कुतुबुद्दीन ऐबक ख़ुद राजकुंवर सा के ही घोड़े "शुभ्रक" पर सवार होकर अपनी खिलाड़ी टोली के साथ "जन्नत बाग" में आया। ''शुभ्रक'' ने जैसे ही कैदी अवस्था में "राजकुंवर" को देखा, उसकी आंखों से आंसू टपकने लगे। 
☛जैसे ही सिर कलम करने के लिए "राजकुंवर" सा की जंजीरों को खोला गया तो "शुभ्रक" से रहा नहीं गया उसने उछलकर कुतुबुद्दीन को घोड़े से गिरा दिया और उसकी छाती पर अपने मजबूत पैरों से कई वार किए। जिससे कुतुबुद्दीन ऐबक के प्राण पखेरू उड़ गए।
☛इस्लामिक सैनिक अचंभित होकर देखते रह गए। मौके का फायदा उठाकर "राजकुंवर" सैनिकों से छूटे और ''शुभ्रक'' पर सवार हो गए। 
☛"शुभ्रक" ने हवा से बाजी लगा दी। लाहौर से उदयपुर बिना रुके दौडा और उदयपुर में महल के सामने आकर ही रुका "राजकुंवर" घोड़े से उतरे और अपने प्रिय घोड़े "शुभ्रक" को पुचकारने के लिए हाथ बढ़ाया। तो पाया कि वह तो प्रतिमा बना खडा था उसमें प्राण नहीं बचे थे।
☛सिर पर हाथ रखते ही "शुभ्रक'' का निष्प्राण शरीर लुढक गया।
☛भारत के इतिहास में यह तथ्य कहीं नहीं पढ़ाया जाता।
☛क्योंकि वामपंथी और मुल्लापरस्त लेखक अपने नाजायज बाप की ऐसी दुर्गति वाली मौत बताने से हिचकिचाते हैं! 
☛जबकि फारसी की कई प्राचीन पुस्तकों में कुतुबुद्दीन ऐबक की मौत इसी तरह लिखी बताई गई है।
💖
स्वामीभक्त "शुभ्रक" को हृदय से नमन है।
"धरती है वीरों की कण कण में भगवान हैं बसते"
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।।सोशल मीडिया फेसबुक वाल से संकलित।।
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Thursday, 2 July 2020

जीवन अपना था ही कब

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जीवन अपना था ही कब
जो अपने लिए जिए।
जीवन में महत्व का
कुछ  रहा ही कब
अपने लिए जिए।
~~
बचपन में खेलकूद 
शरारत के लिए जिए।
आई जवानी संबंध रखे
सबकी सेवा में दिन गुजारे
माता पिता भाई बहन रिश्ते
नाते पास पड़ोस खूब निभाए
पढ़ाई लिखाई सब राम कराए
प्रभू चला रहे अपना जीवन
जीवन अपना था ही कब
जो अपने लिए जिए।
~~
विवाह हुआ
अपना भी परिवार हुआ
बच्चों व पत्नी से संसार हुआ
जिम्मेदारियों का अहसास हुआ
उनकी खुशियां  उनके अरमान
पूरण  करता  उनके  फरमान
आज भी सबकुछ वैसा ही है
थोड़ा सीमित अब है दायरा
नहीं कोई मलाल!
खुश भी हूँ आज।
जीवन अपना  था  ही  कब
जो    अपने    लिए    जिए।
♨♨
✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव(हृदय वंदन)






Wednesday, 1 July 2020

दाम्पत्य खुशहाल बने....

दाम्पत्य खुशहाल बने....
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एक नसीहत बतौर अधिवक्ता करता हूँ:-
☛आशा व रमेश की कहानी है जो बिखराव व बर्बादी के मुहाने पर खड़ी है।
☛जीवन तकरार में! दाम्पत्य खतरे में! बच्चों का भविष्य अंधकार में! मौका है अब तो समझो अपना भविष्य संभाल लो जीवन का जाने क्या भरोसा। आशा व रमेश एक हो जाए दाम्पत्य खुशहाल हो जाए बच्चों का भविष्य सुन्दर बन जाए कामना यही करता हूँ:-
☛शादी को अट्ठारह साल बीते। तीन बच्चे उम्र 16, 14 व 11 साल के हो गए। दाम्पत्य जीवन के कुछ समय बाद से ही जीवन पति संग नफ़रत में ही बीता रहे हैं। आज आशा कहती है हम साथ नहीं रहेंगे वजह का पूछो माकूल जवाब नहीं सच्चाई साफ नहीं है।
☛बस एक जवाब हम बर्बाद करके रहेंगे। निर्बुद्धि किसे बर्बाद करेगी खुद को! पति को! या फिर बच्चों को फिर पूछो किसे बर्बाद करेगी?
☛माना कि कुछ बुराई पति में थी पर तुझसे तो भी कहीं न कहीं प्रेम तो था सुन्दर सुन्दर तीन बच्चों का आगम विचार करो कैसे हुआ। उस क्षणों को याद करो एक दूसरे के लिए पूरा जीवन सशरीर जब समर्पित कर दिया अंजान भी थे विश्वास व भरोसा आई कैसे तनिक तो पुनः विचार करो।
☛आज जान गई पहचान गई तुम स्वभाव व आदतों को तबसे नफ़रत कर रही हो जीवन का वो स्वर्णिम सुख अब वापस नहीं होगा जो चला गया। रमेश झूकने को तैयार है अपनी गलत आदतें नशा वगैरह छोड़ दिया है। फिर उसको अपनाओ बच्चों का जीवन संवारों तुम।
☛रमेश की गलत आदतें क्या हुई तुमने अपनी अच्छाई प्यार मोहब्बत व स्नेह भी त्याग दिया रौद्र रूप धारण कर सुधारने पर लग गई 15 वर्ष गुजर गए सुधारने के चक्कर में गृहस्थी अपनी उजाड़ गयी।
☛रमेश को न समझा न प्यार व स्नेह दिया नफ़रत भरी बोली भाषा दिया। परिणाम आज सामने है एक घर में हैं मगर पति पत्नी नहीं हैं; बच्चे ननिहाल में तीन मुकदमे रमेश पर कर आशा आज अभिमान में है।
☛एक दूसरे की गिना कर पुरानी कमियाँ सोचो क्या पाओगी तुम। अपने कमियों के चक्कर में बच्चों का जीवन नर्क कर रही हो। सोचो क्या दे रहे हो क्या सीखा रहे हो तुम अपने भविष्य को क्रोध व नफ़रत का शिक्षा व संस्कार दे रहे हो?
☛बहुत जी लिए अपना जीवन अपने सुख से सदा ही प्रेम किए। बहुत हो चुका अपना सुख और अपना जीवन। भूला कर अपनी सारी अदावतें अपने में न रहो अकड़ कर। अकड़ से सिवाय बर्बादी के तुमको कुछ भी हासिल नहीं होगा। अभी समय है अपना भविष्य संभाल लो संतानों की सोचो कच्ची माटी है उन्हें सजाओ उन्हें संवारों जीवन का उद्देश्य बनाओ।
☛माना कि आदत बुरी रही पति की अपनी नफ़रत व क्रोध से कैसे सुलझाओगी। आग से आग बन टकराओगी अग्नि में घी तुम डालोगी। विनाश तो फिर अपना ही होगा उसको कैसे टालोगी। पति पत्नि के रगड़ा झगड़ा में बच्चों का गुनाह क्या याद करो।
☛अपने जिद्द के आगे सही गलत को भूल रही हो मर्यादाओं को तोड़ रही हो परिवार का झगड़ा पति पत्नी का झगड़ा अबतक समाप्त हो गया रहता; मगर मन में रगड़ा हो नफ़रत हो तो उसका अंत प्राण पखेरू के साथ ही होता। इसको न कोई थाना न कोई पुलिस और न ही कोई कोर्ट सुलझा सकती है।
☛ऐसे विवाद को एकमात्र पति व पत्नी ही आपसी समझदारी व भविष्य की सोच को दृष्टिगत रखकर प्रेम परस्पर, मोहब्बत व क्षमा भाव से स्वयं ही सुलझा सकते हैं। और कोई भी दूसरा विकल्प विनाशकारी है जो पिछले 15 साल से चल रहा है।
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नीचा गिराना नीचा दिखाना खुद को ही बरबाद करे
कोयला लोहे को पिघलाता  खुद को भी राख करे।

अपना है अपने से जुड़ा है दर्द उसे करे दर्द तुझे करे
कोशिश करो भुला दो  बीती बात अपने से दूर करें।

सुखी जीवन होगा  अकड़ को दूर भगा कर करें
विवाद  खतम हो जाता पहल मोहब्बत से करें।

विनम्र हुए झूक गए  खुशियों की गागर अपनी भरे
ईश्वर हमें खुशियों से नवाजा  उसका सम्मान करें।

रिश्ता सुलझ जाए सुखमय हो जाए!
सलिका  प्यार  का  अपनाना  होगा।
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✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)

ससुराल मायका बहू बेटी...

ससुराल मायका बहू बेटी... 🍁🍁   ससुराल मायका बहू बेटी! दोनों जहान आबाद करती। मायके से ट्यूशन गर लिया, दुखों का जाल बिछा लेती। जहां कभ...