हम भी जो कवि बन जाऊँ..
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हम भी जो कवि बन जाऊँ!
इसी सोंच में डूबा हुआ हूँ।
शब्दकोश बढ़ाने लग गया
वकील हूँ कवि है बनना।
गीत गज़ल का ज्ञान नहीं
लिखने का परवान चढ़ी।
प्रेम मोहब्बत यहाँ है खूब
ईर्श्या द्वेश नही कोई शेष।
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हम भी जो कवि बन जाऊँ
जुबां से सबके गुनगुनाऊँ।
वाह वाही की आस लगाऊँ
खुशियों का संदेश फैलाऊँ।
मानव कमियां व अच्छाईयां
अपनी रचना से गिनवाऊँ।
गीत गज़ल और कविता से
मन हर्षित सबका कर जाऊँ।
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हम भी जो कवि बन जाऊँ
शब्दों की अठखेलियां कराऊँ।
इधर ऊठा कर उधर जोड़ता
तुकबंदी को जोड़ा करता।
मुश्किल बहुत है इसमें भाई
मन भावना की खूब लड़ाई।
लिखता जो कुछ उसे पढ़ाता
मतलब पुछता जोरू से।
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रोल जोरू का बहुत है भारी
पास मुझे जो वो कर देती
पटल पर रचना पसार देता।
वकील का तमगा भी प्यारा है
साहित्य सेवा में कदम उठा है।
उम्मीद व इसी आशा में बढ़ता
हम भी जो कवि बन जाऊँ.....
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✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)
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