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Saturday, 25 April 2020

जीएं भी तो कैसे ?

।।जीएं भी तो कैसे।।
👀
कोई तो बताए हम जीएं भी तो कैसे!
दुश्मन अदृश्य है लड़े भी तो कैसे।

दुखों का अपना अलग ही सबब है।
रोए मानवता देख मंजर को अब है।

दुनिया फंसी है कोरोना के जद में!
चली जा रही है बर्बादी के कब्र में।

कोई तो बताए जीएं भी तो कैसे!
दुश्मन अदृश्य है लड़े भी तो कैसे।

बेबस इंसान है मुश्किल घड़ी है!
घर में पड़ा है मौत बाहर खड़ी है।

गरीबों की हालत दुखों से भरें हैं!
बाहर भी मौत है तो घर में मरे है।

कोई तो बताए जीएं भी तो कैसे!
दुश्मन अदृश्य है लड़े भी तो कैसे।

मौत की आहट दस्तख दे रही है!
आगे बढ़ रही है जद में ले रही है।

तबाही के मंजर को रोके तो कैसे!
हुकूमत की चाह ने खुद ही गढ़ी है।

कोई तो बताए जीएं भी तो कैसे!
दुश्मन अदृश्य है लड़े भी तो कैसे।
❣❣

कविता का भाव :-
☆☆कोरोना की वैश्विक महामारी काल में पूरा संसार आज लाचार, हैरान व बेबस होकर जीवन जीने को मजबूर हो गया है। 
☆☆कोरोना जैसी महमारी अदृश्य होने के कारण बेबस इंसान कुछ कर नहीं पा रहा है। आज चारों तरफ लाचारी बेबसी का आलम है।
☆☆मानवता क्रूर से क्रूरतम यातना व वेदना झेल रहा। जो गरीब हैं, मजदूर हैं, अयोग्य असहाय हैं घर में भूख से मर रहें हैं पेट के लिए अगर बाहर निकलने की सोचे तो बाहर कोरोना हाथ पसारे खड़ा है दोनों स्थितियों में मरना अयोग्य व बेसहारों को ही है।
☆☆पूरे विश्व में कोरोना प्रकोप मौत के आकड़े बढ़ा रहा तथा मानवता को अपने जद में लिए जा रहा है। कितनों का परिवार तबाह हो गया तो कितनो का रोजगार भी समाप्त हो गया। स्थिति अनुकूल बने तब तो इंसान कुछ कर सके।
☆☆इसकी भयावता का ग्राफ दिन प्रतिदिन  बढ़ती ही जा रही। आज पूरा विश्व श्रेष्ठता की चाहत के कारण काल का शिकार बन रहा है।
💥
✒......धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)

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