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Wednesday, 22 July 2020

जरूरत नहीं इंसान से इंसान की।

जरूरत नहीं इंसान से इंसान की।
~~
खतम हो गई जरूरत  इंसान  से इंसान की।
किससे उम्मीद करे इंसान प्रेम सदभाव की।

याद हैं वो  दिन रिश्ते में गज़ब  मिठास थी।
क्या दौर  क्या दिन अभाव था पर प्यार थी।

क्यों न हो  इंसान की जरूरत ही इंसान थी।
दुख रहे या सुख रिश्ते  सिद्दत से सरीख थी।

खूब याद है कटोरी में  शक्कर  पड़ोस  की।
छोटी  बड़ी  जरूरत  एक  दूसरे इंसान की।

संबंध में खटास न हो  शालीन बने रहते थे।
आपस की जरूरत थी  प्यार  से जी रहे थे।

खतम हो गई  जरूरत  इंसान से इंसान की!
सर्वनाश हो आधुनिक मोबाईल समाज की।

जरूरत  घर  की  आपस  में पूरी होती थी।
घर  की  फरमाईश एक फोन पुरी कर रही।

रही सही कसर आनलाईन शाॅपिंग कर रही।
खतम हो गई जरूरत  इंसान  से इंसान की।

अब  न  स्वार्थ  रहा  और  न  वो  प्यार रहा।
अब न वो इंसान  रहा  और  न समाज रहा।

खतम हो गई जरूरत  इंसान  से इंसान की।
किससे उम्मीद करे इंसान प्रेम सदभाव की।
♨♨

कविता का भाव:-
☛याद करता हूँ जब अपने बचपन की हर इंसान हर किसी से जुड़ा हुआ रहता था। जब घरों में कोई शादी विवाह का अवसर होता था तब पड़ोस से काफी सहयोग हुआ करता था। यहाँ तक कि मेहमानों के सुख सुविधा के लिए काफी मदद लिया व किया जाता था। घरों में कोई वस्तु उपलब्ध नहीं रहती थी तो पूर्ति के लिए एक पड़ोसी दूसरे पड़ोसी की मदद सहर्ष बड़े चाव करता था।
☛परन्तु आज का परिवेश पूरी तरह से बदल गया है। आज कोई भी इंसान किसी भी इंसान पर आश्रित या निर्भर नहीं है। या यूँ कह लीजिए इंसान अपने घरों के अधिकांश मामलों में पूर्णतया आत्मनिर्भर है। आधुनिक युग में संसाधन इतना पर्याप्त हो गया है कि पल भर में हर कार्य हर जरूरत पूरी हो जा रही है। 
☛यही कारण है कि इंसान के पास अब कोई बहाना ही नहीं रहा कि वह किसी बहाने पड़ोस में जाए। दूरियाँ बढ़ने लगी है। इंसान के पूराने जीतने मनोरंजन के संसाधन थे सभी समाप्त हो गए। नये दौर में मनोरंजन के सारे संसाधन आज उसके हाथ में हो गए हैं।
☛आज के इस आधुनिक युग में किसी से कुछ पूछने के लिए भी जाना नहीं होता उसके लिए हर हाथ गुगल आ गया है एक क्लिक पर सारी जानकारियाँ कुछ सेकेंड में उपलब्ध हो जा रही है और कोई भी समान आर्डर से घर आ जा रहा है। यह भी वजह है इंसान दूर होता चला जा रहा है।
☛इंसान के जीवन से जुड़ी हर कार्य उसके अपने सोच के अनुसार तमाम भाड़े के संसाधनों के द्वारा पूरे होते जा रहे हैं। सह भागी बनने या बनाने की जरूरत ही नहीं पड़ रही है। जाहिर सी बात है अब हर इंसान को उसके पड़ोस व अपनों की जरूरत ही नहीं रह गयी है।
☛शायद यही वजह है कि इंसान के जेहन में पड़ोस व अपनों के प्रति वो प्रेम, प्यार व स्नेह नहीं रहा। आज हर इंसान पूरी तरह से स्वतंत्र व आजाद है। आज अहसान व दबाव जैसी कोई बात नहीं रह गयी है।
☛उपरोक्त के बावजूद इंसान अगर के परिवेश में तनिक भी सहानुभूति अगर दिल में दूसरों के लिए रखता है तो वह बहुत बड़ी बात है और आज के दौर में ऐसा व्यक्तित्व फिर महान होगा।
♨♨
✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)






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