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Thursday, 23 July 2020

मन की सोच...

मन की सोच...
♨♨
मन की  सोच अज़ीब बहुत है
जाने क्या क्या सोचा  करती।

मन  ही   हमें  तो  पहचाने  है
गलत सही सब कुछ जाने  है।

खुशी में आतुर प्रसार है करती
दुख   में  अपने  ढुंढ़ा   करती।

शिकवा और शिकायत  रटती
इनसे उनसे  पकड़ बतियाती।

जाने  कैसी  मन  की  प्रकृति!
शिकायत उगल पाए निवृत्ति।

तारीफ पे  ठीठकने  की वृत्ति
मन  जुबान सीलबंद  प्रवृत्ति।

बाल  की  ख़ाल  झट निकाले
कैची  इनकी  ज़ुबान संभाले।

बूरा   भला   से  मेल  न  राखें
मनई   कऽ   सम्मान न  जानें।

ऐसी  फितरत   सभी  की  है
कम   किसी   में   ज्यादा  है।

बुद्धि  में नकारात्मकता होती
खुशी  से पहले दुख पर रोती।

रे मन अब चल शांत होजा तु
कब  तक कितना सोचेगा तु।

सबके खुशी का इतना  सोचे
जरूरी नहीं  सब खुश रहें रे।

खुश  होते  वृद्धाश्रम  न होता
खून अपना आश्रम न  लाता।

मन  ही   हमें  तो  पहचाने  है
गलत सही सब कुछ जाने  है।

मन की  सोच अज़ीब बहुत है
जाने  क्या क्या सोचा  करती।
♨♨
कविता का भाव:-
☛एक कहावत है:-"मन के हारे हार है, मन के जीते जीत" जो पूर्णता सत्य व सही भी है।
☛मन की गति मन का फैलाव मन का प्रसार अलौकिक व अकल्पनीय है। अदृश्य मन को पकड़ना रोकना व स्थिर करना उतना ही मुश्किल है जितना सदृश्य में परछाई को पकड़ना व रोकना।
☛मन की सोच कल्पना से भी परे है कब क्या सोच लेगा और कहाँ भ्रमण कर आएगा जिसकी कल्पना करना मुश्किल है। अक्सर मन की जो प्रकृति है वह सकारात्मकता से थोड़ा दूर ही रहती है।
☛मन पर सबसे पहले नकारात्मकता प्रभावी होती है अगर इंसान विवेक शून्य है तो समझलो पतन का मार्ग प्रशस्त होगी। यदि इंसान विवेक शून्य नहीं है विवेकी व समझदार है तो सकारात्मकता को तवज्जो देगा और उत्थान की ओर अग्रसर होगा।
☛इंसान के मन को समझने और जानने का सहज व सरल तरीका उसके आदत, व्यवहार, क्रियाकलाप, रहन सहन, बात चित व संस्कार से किया जा सकता है।
☛इंसान का अपने जीवन में सुखी व दुखी होने व रहने का एकमात्र कारण उसकी मनःस्थिति व मन की सोच पर ही निर्भर करती है और उसके इस कार्य में उसके बुद्धि व विवेक का महत्वपूर्ण योगदान है।
☛हर इंसान का मन सही गलत को बखूबी जानता है उसका का मन बहुत ही सहजता से गलत और सही को इस प्रकार से अलग करता है जैसे सारस दूध से पानी अलग करता है। 
☛बस इंसान का बुद्धि विवेक कुछ न कुछ लोलुपता व अभिमान व अकड़ वश पहचानने से अलग करने से रोक देता और मुश्किलों को बढ़ावा देता। तत्पश्चात घर परिवार व समाज में अनेक प्रकार की बुराईयों का जनम होता है।
☛जीवन में खुशियाँ हो!
☛सोच सकारात्मक हो!
☛बुद्धि विवेक प्रखर हो!
♨♨

✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)

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