करम की लेखनी न मिटे..
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हे विश्व नियन्ता शिवाकान्त
पालनहारी हे अवघड़दानी
महादेव शिव शंकर शम्भू
कैलासपति हे त्रिपुरारी
हे केदारनाथ हे जटाधारी
तेरी महिमा जग में न्यारी।
संग सती के धरती पर एक दिन
भ्रमण पर निकले त्रिशूलधारी
देखी माता ने एक दुखियारा
गठरी टाँगे बढ़ा जा रहा
रोटी की आस लिए अभागा।
देख उसकी दीन दशा
मन ही मन व्याकूल हुई माता
पीड़ा उसकी सह न पाईं
दीनानाथ सोमनाथ बर्फानी
सर्वेश्वर से गुहार लगाई।
हे प्राणनाथ महादानी
शिवदानी ओमकारेश्वर
निलेश्वर गणपति कुछ करो
निर्धन असहाय अभागे का
कर दो तुम कल्याण प्रभु।
मंगलेश्वर अर्धनारीश्वर
नटराजन त्रिकालदर्शी
सुन कर माता की बातें
मुस्कराए बोले हे देवी
भोग रहा कर्मों का फल।
करम में इसके जो लिखा।
इसको टाला नहीं जा सकता।
सुन नागार्जुन देवा की बातें
माता विषधर से रूष्ट हुई
लेकर अनुमति सर्वेश्वर से
स्वर्ण मुद्राओं की पोटली
देने की ठान चल पड़ी
दुखियारे के राह पर।
जिस पथ से जाए दुखियारा
उस पथ पोटली रख दिया
पास आएगा उठालेगा
अपना दुख मिटालेगा
खुशी की अभिलाषा लिए
दूर से माता देख रही थीं।
पोटली के कुछ दूर पहले ही
निर्धन का ध्यान ऐसा भटका
कैसे नेत्रहीन जीवन जीते
वैसे चल कर देखें तो जरा
बंद कर ली अपनी आँखे
उसने चलना शुरू किया।
माता की खुशियाँ धरी वहीं
अभागा आगे बढ़ चला।
देख करम की लेखनी
चकित हुई दुखी माता।
रुद्रनाथ भीमशंकर
प्रलेयन्कार रामेश्वर
चंद्रमोली डमरूधारी
चंद्रधारी के चरणों में
नतमस्तक हुई सती माता।
लिखा करम में जो विधाता,
टाल कोई न पाएगा।
अपने करम को ध्यान रखना,
होनी कौन मिटाएगा।
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✒..... धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)
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