कुतुबुद्दीन ऐबक के मौत का कारण बना "शुभ्रक" की शौर्य गाथा।
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।।सोशल मीडिया फेसबुक वाल से संकलित।।
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☛कुतुबुद्दीन ऐबक घोड़े से गिर कर मरा सब जानते हैं, लेकिन गिर कर मरा कैसे? क्या हुआ उसके साथ? यह किसी को पता नहीं है?
☛कुतुबुद्दीन ऐबक की मौत का कारण "शुभ्रक" के शौर्य गाथा को हम सोशल मीडिया एकाउण्ट से प्राप्त कर आप सभी के समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं।
☛परम पराक्रमी महान योद्धा वीर महाराणा प्रताप जी का घोड़ा "चेतक" सबको याद होगा परन्तु "शुभ्रक" भी एक ऐसा ही वीर व स्वामी भक्त घोड़ा था जिसके बारे में किसी को पता नहीं। "शुभ्रक" गुमनामी का शिकार हो गया। "शुभ्रक" उदयपुर के "राजकुंवर कर्णसिंह" का महान स्वामी भक्त घोड़ा था। "शुभ्रक" की शौर्य गाथा अविष्मरणीय व काबिले तारीफ है।
☛कुतुबुद्दीन ऐबक ने राजपूताना में जम कर कहर बरपाया, और उदयपुर के 'राजकुंवर कर्णसिंह' को बंदी बनाकर लाहौर ले गया। कुंवर का "शुभ्रक" नामक एक स्वामिभक्त घोड़ा था।जो कुतुबुद्दीन को पसंद आ गया और वो उसे भी साथ ले गया।
☛एक दिन कैद से भागने के प्रयास में कुँवर सा को सजा-ए-मौत सुनाई गई और सजा देने के लिए "जन्नत बाग" में लाया गया। जहाँ यह तय हुआ कि "राजकुंवर" का सिर काटकर उससे 'पोलो' खेला जाएगा।
☛कुतुबुद्दीन ऐबक ख़ुद राजकुंवर सा के ही घोड़े "शुभ्रक" पर सवार होकर अपनी खिलाड़ी टोली के साथ "जन्नत बाग" में आया। ''शुभ्रक'' ने जैसे ही कैदी अवस्था में "राजकुंवर" को देखा, उसकी आंखों से आंसू टपकने लगे।
☛जैसे ही सिर कलम करने के लिए "राजकुंवर" सा की जंजीरों को खोला गया तो "शुभ्रक" से रहा नहीं गया उसने उछलकर कुतुबुद्दीन को घोड़े से गिरा दिया और उसकी छाती पर अपने मजबूत पैरों से कई वार किए। जिससे कुतुबुद्दीन ऐबक के प्राण पखेरू उड़ गए।
☛इस्लामिक सैनिक अचंभित होकर देखते रह गए। मौके का फायदा उठाकर "राजकुंवर" सैनिकों से छूटे और ''शुभ्रक'' पर सवार हो गए।
☛"शुभ्रक" ने हवा से बाजी लगा दी। लाहौर से उदयपुर बिना रुके दौडा और उदयपुर में महल के सामने आकर ही रुका "राजकुंवर" घोड़े से उतरे और अपने प्रिय घोड़े "शुभ्रक" को पुचकारने के लिए हाथ बढ़ाया। तो पाया कि वह तो प्रतिमा बना खडा था उसमें प्राण नहीं बचे थे।
☛सिर पर हाथ रखते ही "शुभ्रक'' का निष्प्राण शरीर लुढक गया।
☛भारत के इतिहास में यह तथ्य कहीं नहीं पढ़ाया जाता।
☛क्योंकि वामपंथी और मुल्लापरस्त लेखक अपने नाजायज बाप की ऐसी दुर्गति वाली मौत बताने से हिचकिचाते हैं!
☛जबकि फारसी की कई प्राचीन पुस्तकों में कुतुबुद्दीन ऐबक की मौत इसी तरह लिखी बताई गई है।
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स्वामीभक्त "शुभ्रक" को हृदय से नमन है।
"धरती है वीरों की कण कण में भगवान हैं बसते"
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