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Wednesday, 1 July 2020

दाम्पत्य खुशहाल बने....

दाम्पत्य खुशहाल बने....
♨♨
एक नसीहत बतौर अधिवक्ता करता हूँ:-
☛आशा व रमेश की कहानी है जो बिखराव व बर्बादी के मुहाने पर खड़ी है।
☛जीवन तकरार में! दाम्पत्य खतरे में! बच्चों का भविष्य अंधकार में! मौका है अब तो समझो अपना भविष्य संभाल लो जीवन का जाने क्या भरोसा। आशा व रमेश एक हो जाए दाम्पत्य खुशहाल हो जाए बच्चों का भविष्य सुन्दर बन जाए कामना यही करता हूँ:-
☛शादी को अट्ठारह साल बीते। तीन बच्चे उम्र 16, 14 व 11 साल के हो गए। दाम्पत्य जीवन के कुछ समय बाद से ही जीवन पति संग नफ़रत में ही बीता रहे हैं। आज आशा कहती है हम साथ नहीं रहेंगे वजह का पूछो माकूल जवाब नहीं सच्चाई साफ नहीं है।
☛बस एक जवाब हम बर्बाद करके रहेंगे। निर्बुद्धि किसे बर्बाद करेगी खुद को! पति को! या फिर बच्चों को फिर पूछो किसे बर्बाद करेगी?
☛माना कि कुछ बुराई पति में थी पर तुझसे तो भी कहीं न कहीं प्रेम तो था सुन्दर सुन्दर तीन बच्चों का आगम विचार करो कैसे हुआ। उस क्षणों को याद करो एक दूसरे के लिए पूरा जीवन सशरीर जब समर्पित कर दिया अंजान भी थे विश्वास व भरोसा आई कैसे तनिक तो पुनः विचार करो।
☛आज जान गई पहचान गई तुम स्वभाव व आदतों को तबसे नफ़रत कर रही हो जीवन का वो स्वर्णिम सुख अब वापस नहीं होगा जो चला गया। रमेश झूकने को तैयार है अपनी गलत आदतें नशा वगैरह छोड़ दिया है। फिर उसको अपनाओ बच्चों का जीवन संवारों तुम।
☛रमेश की गलत आदतें क्या हुई तुमने अपनी अच्छाई प्यार मोहब्बत व स्नेह भी त्याग दिया रौद्र रूप धारण कर सुधारने पर लग गई 15 वर्ष गुजर गए सुधारने के चक्कर में गृहस्थी अपनी उजाड़ गयी।
☛रमेश को न समझा न प्यार व स्नेह दिया नफ़रत भरी बोली भाषा दिया। परिणाम आज सामने है एक घर में हैं मगर पति पत्नी नहीं हैं; बच्चे ननिहाल में तीन मुकदमे रमेश पर कर आशा आज अभिमान में है।
☛एक दूसरे की गिना कर पुरानी कमियाँ सोचो क्या पाओगी तुम। अपने कमियों के चक्कर में बच्चों का जीवन नर्क कर रही हो। सोचो क्या दे रहे हो क्या सीखा रहे हो तुम अपने भविष्य को क्रोध व नफ़रत का शिक्षा व संस्कार दे रहे हो?
☛बहुत जी लिए अपना जीवन अपने सुख से सदा ही प्रेम किए। बहुत हो चुका अपना सुख और अपना जीवन। भूला कर अपनी सारी अदावतें अपने में न रहो अकड़ कर। अकड़ से सिवाय बर्बादी के तुमको कुछ भी हासिल नहीं होगा। अभी समय है अपना भविष्य संभाल लो संतानों की सोचो कच्ची माटी है उन्हें सजाओ उन्हें संवारों जीवन का उद्देश्य बनाओ।
☛माना कि आदत बुरी रही पति की अपनी नफ़रत व क्रोध से कैसे सुलझाओगी। आग से आग बन टकराओगी अग्नि में घी तुम डालोगी। विनाश तो फिर अपना ही होगा उसको कैसे टालोगी। पति पत्नि के रगड़ा झगड़ा में बच्चों का गुनाह क्या याद करो।
☛अपने जिद्द के आगे सही गलत को भूल रही हो मर्यादाओं को तोड़ रही हो परिवार का झगड़ा पति पत्नी का झगड़ा अबतक समाप्त हो गया रहता; मगर मन में रगड़ा हो नफ़रत हो तो उसका अंत प्राण पखेरू के साथ ही होता। इसको न कोई थाना न कोई पुलिस और न ही कोई कोर्ट सुलझा सकती है।
☛ऐसे विवाद को एकमात्र पति व पत्नी ही आपसी समझदारी व भविष्य की सोच को दृष्टिगत रखकर प्रेम परस्पर, मोहब्बत व क्षमा भाव से स्वयं ही सुलझा सकते हैं। और कोई भी दूसरा विकल्प विनाशकारी है जो पिछले 15 साल से चल रहा है।
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नीचा गिराना नीचा दिखाना खुद को ही बरबाद करे
कोयला लोहे को पिघलाता  खुद को भी राख करे।

अपना है अपने से जुड़ा है दर्द उसे करे दर्द तुझे करे
कोशिश करो भुला दो  बीती बात अपने से दूर करें।

सुखी जीवन होगा  अकड़ को दूर भगा कर करें
विवाद  खतम हो जाता पहल मोहब्बत से करें।

विनम्र हुए झूक गए  खुशियों की गागर अपनी भरे
ईश्वर हमें खुशियों से नवाजा  उसका सम्मान करें।

रिश्ता सुलझ जाए सुखमय हो जाए!
सलिका  प्यार  का  अपनाना  होगा।
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✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)

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