गज़ल
♨♨
मन में खटकने लगे हैं बात दूर हो जाएं!
छोड़ कर तकरार पास हों खुशी आ जाए।
पास होकर हों ख़ामोश सजा हो जाएं।
फितरत तेरी कुछ ऐसी दूर कोई हो जाए।
बेवजह शिकवा करो कोई चूप हो जाए।
मेरी सुकून को तुम क्यों तड़पा के जाए।
मन में खटकने लगे हैं बात दूर हो जाएं।
जानना चाहा जब भी तेरी रूसवाई को!
हर जवाब तेरा क्यों ख़ामोश हो जाए।
बेपनाह प्यार तुम गैर से जता के आए!
मुझसे लहजा नफ़रत भरे क्यों हो जाए।
मन में खटकने लगे हैं बात दूर हो जाएं!
दुख है मुझको बेवजह रूसवा हो जाएं!
हमने सपने में न सोचा बेवफा हो जाएं।
नफ़रत ही तेरी ऐसी है ख़ामोश हो जाएं।
जिद्द है तेरी या कमी अपनी ढूंढ़ न पाएं।
मन में खटकने लगे हैं बात दूर हो जाएं!
गलत हम नहीं गलती वो भी न मान पाएं!
ऐसे तकरार से तो दोनो का बुरा हो जाए।
दिल को तड़पा के वो हासिल क्या पाएं।
खून अपना ही जलेगा सुकून चला जाए।
मन में खटके न कोई बात पास आ जाएं।
मन में खटके न कोई बात सुकून हो जाएं!
छोड़ कर तकरार पास हों खुशी आ जाए।
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✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)
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