जिन्दगी जी लेंगे...
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जिन्दगी जीने का नाम जी लेंगे,
करम तेरा हर दुख पी लेंगे।
जिन्दगी की बात समझ आई,
हर कोई अपनों से मात खाई।
जुल्मो सितम जिन्दगी से करते,
तुमसे हमदर्दी रखते तो कैसे।
मोहब्बत तो जिन्दगी से करते,
जिन्दगी ही अपनी तकदीर है।
साथ जीने की हैं कसमें खाई,
सुख दुख दर्द साथ निभाई।
बेवजह दर्द उसको पहुँचाई,
दर्द मुझको कैसे न हो भाई।
जिन्दगी तुमको है बहुत प्यारी,
फिर मेरे पर क्यों है मनाही।
वास्ता तुम तो कुछ नहीं रखते,
जाने क्यों दुश्वारियां लिए रहते।
ताकत तो अपने खून में समाई,
खून से खून की है सारी लड़ाई।
जिन्दगी जीने का नाम जी लेंगे,
करम तेरा हर दुख पी लेंगे।
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पंक्ति का भाव :-
☛बड़ी अजीब बिडम्बना अपने समाज की हो गई है। अब परिवार को लेते हैं। परिवार में बड़ा है तो बड़े होने के लिए ललायित है आदर मिलता रहे इसकी अकांक्षा है, जरूरी भी है होना भी चाहिए। अगर छोटा है तो छोटा ही बना रहना चाहता है अपनों बड़ों से चाहे कोई मतलब न भी हो परन्तु फिर भी कुछ न कुछ अकांक्षा परिवार के नाते तो बना ही रहता है। इससे नकारा भी नहीं जा सकता।
☛यदि हम बड़े हैं तो अपने छोटों से बड़े वाले आदर की उम्मीद तो करते हैं परन्तु उनके साथ बड़कपन वाले बात या कार्य बिलकुल नहीं करते जिससे बड़कपन वाले सारे वजूद एक समय अंतराल के बाद समाप्त हो जाता कितना भी कर्तव्यनिष्ट छोटा क्यों न हो।
☛यदि हम छोटे हैं तो बड़ों से भी कुछ उम्मीदे रखते हैं परिवार के नाते, साथ रहने के नाते भले ही आपसी तालमेल में विशेष ताल्लुकात न हो परन्तु मान सम्मान का जो हक है उसमें तरलता समरसता होनी ही चाहिए।
☛बड़े हों या छोटे हों उनका कार्य इस प्रकार का कत्तई न हो खासतौर पर यदि दोनों एक ही साथ एक ही घर में हों तब वे परिवार में उपेक्षित महसूस न करें। क्योंकि उपेक्षा से कटूता पनपती है जो आगे चल कर दोनों के लिए, उनके सुख चैन में, रहन सहन में बाधक होती है। आपसी सामंजस्य बिगड़ जाता परिवारिक वातावरण खराब हो जाता।
☛इस बढ़ती दुराव का असर न चाहते हुए भी तेजी से आगे बढ़ती है और एक दूसरे के अपनों को भी दुराव के चपेट में लेती है और धीरे धीरे हर किसी से हर किसी के बीच मनमुटाव बढ़ने लग जाता फलतः दूरी बढ़ती चली जाती।
☛ऐसी प्रतिकूल स्थिति अपने ही खून में ज्यादा पनपती है।
☛ कहीं भी शेयर करने से पहले दुविधा को आपस में दूर करें।
☛बचाव का एक ही रास्ता है और वह है समझदारी।
☛कमियों से एक दूसरे को अवगत कराएं।
☛कोई फैसला अकेले की सोच पर न लें।
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✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)
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