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Sunday, 30 August 2020

ग़ज़ल (शराब व शबाब)

~~ग़ज़ल~~

(शराब व शबाब)
🍁🍁
लुढ़क गए ज़नाब बेअदबी से पीके,
अदब  से तुम लेना थोड़ा धीरे धीरे।

शराब  व  शबाब  हुस्न -ए-महताब,
बेअदबी से पेश न इनसे तुम आना।

अनाड़ी थे वो  पी गए झट गटक के,
मज़ा  को  खराब  बनाए  गटक के।

अहिस्ता अहिस्ता समय लेके पीना,
मज़े में नज़ाकत से मज़ा लेते पीना।

बेअदबी से पेश न इनसे तुम आना।
अनाड़ी थे वो पी गए झट गटक के।

लुढ़क गए ज़नाब बेअदबी से पीके,
अदब से  तुम लेना थोड़ा धीरे धीरे।
🍁🍁
✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)

Saturday, 29 August 2020

पति पत्नी का प्यारा रिश्ता...

पति पत्नी का प्यारा रिश्ता...

🍁🍁
पति  पत्नी  का  प्यारा  रिश्ता,
सब  रिश्तों  से  न्यारा  रिश्ता।

जिसे  रिश्ते  का कदर नहीं हो,
सबसे  अभागा   है   इंसा  वो।

इसके  जैसा  नहीं कोई  रिश्ता,
चाहे   जन्मा   हो   वो  हमारा।

माना   और  भी  रिश्ता  प्यारा,
अनोखा   है   सबसे  है  न्यारा।

सुख  दुख के हैं  जीवन साथी,
कोई और नहीं समझने वाला।

कुदरत के घर  जोड़ियां बनती,
समय पर बनते  जीवन साथी।

पति  पत्नी  का  प्यारा  रिश्ता,
सब  रिश्तों  से  न्यारा  रिश्ता।
🍁🍁
✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)



Friday, 28 August 2020

हे वागेश्वरी शारदे माँ...

हे वागेश्वरी शारदे माँ...

🍁🍁
हे वीणा  वागेश्वरी माता!
वर दे! वर दे! शारदे माँ...
वीणावादिनि  वर दे  माँ!
माँ  अम्बे  परमेश्वरी  माँ।

ज्ञान जगत में ज्योर्तिमय हो,
ज्ञान पुंज  निर्झर हो माँ...
वर दे! वर दे! शारदे माँ,
वीणावादिनि  वर दे माँ।

बुद्धि विवेक धार दे माँ!
मन हृदय हर्षित हो माँ...
वर दे! वर दे! शारदे माँ!
वीणावादिनि  वर  दे माँ।

तु जननी है बालक तेरा,
कंठ मधुर श्वर भर दे माँ...
वर दे! वर दे! शारदे माँ!
वीणावादिनि  वर दे माँ।

मधुर प्रेम की निर्झर धारा,
हर मन पुलकित हो माता...
वर दे! वर दे! शारदे माँ!
वीणावादिनि  वर दे माँ।

हे वागेश्वरी शारदे माँ....
वीणावादिनि  वर दे माँ।
वर दे! वर दे! शारदे माँ!
तुझे नमन है हे माता...
🍁🍁
✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)



Thursday, 27 August 2020

राधे राधे श्री भगवान....

राधे राधे श्री भगवान

🍁🍁
राधे राधे जपा करो,
नटखट नागर कृष्ण गोपाल
मोहन मुरली राधेश्याम
हे केशव हे दयानिधान
जग के पालक श्री भगवान
कृपासिंधू राधे घनश्याम
सुबह सबेरे हर क्षण राम
राधे राधे जपा करो....
~~
पाप कर्म से कलपती माते
प्रभू अवतार धरा पर आते,
दुष्टों का संहार हैं करते,
हर्षित करते जग माता को।
राधे राधे जपा करो,
गिरधारी हे कृष्णमुरारी
मोहनमुरली बाँकेबिहारी
सुबह सबेरे हर क्षण राम
राधे राधे जपा करो....
~~
संकट में है आज संसार 
कृपा करो हे कृपानिधान
मानवता का कष्ट हरो।
जगत का कल्याण करो
राधे राधे जपा करो,
श्री हरि वासूदेव हे नन्दलाल
देवकी नन्दन श्री भगवान
सुबह सबेरे हर क्षण राम
राधे राधे जपा करो....
नटखट नागर कृष्ण गोपाल
राधे राधे जपा करो....
🍁🍁
✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)


Wednesday, 26 August 2020

कटुता की न सोचो...


कटुता की न सोचो...
🍁🍁
जीवन में कटुता की न सोचो,
इसका   नहीं   भरोसा   यार।
दो पल की खुशियों में जी लो,
मन  से  रार  बिसरा  के यार।

खुशी खुशी  जीवन  जीने  से,
कर्म   साकार  खूद  के  होते।
तेरा  मेरा   कुछ  नहीं  अपना,
जीवन बस  एक  रैन  बसेरा।

जब तक  सासों का चलना है,
तब तक  इंसा  दंभ  भरता है।
काल कवलित सब  हो जाता,
अमरता अपना कर्म दिलाता।

कर्म  प्रेम  से   तु  करता  चल,
प्रेम  की  धारा तु  बनता चल।
पाप  पूण्य  का  ध्यान रखना,
स्वार्थ सिद्धि में  लगे न रहना।

दौलत की  लालसा में  जीना,
तिनका  एक  साथ  न जाना।

जीवन में कटुता की न सोचो,
इसका   नहीं   भरोसा   यार।
दो पल की खुशियों में जी लो,
मन  से  रार  बिसरा  के यार।
🍁🍁
✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)

Tuesday, 25 August 2020

डोर टूटे बंधन की...


डोर टूटे बंधन की...
🍁🍁
ऐसी  गलती  मत  करना,
डोर  टूटे  बंधन  की....
दिल में बसने वाले अपने,
दूर दिलों से हो जाएं....2

छोटी सी गलती गर होता
राहें सबकी  रूक  जाता।
फर्ज  अगर  चाहो  करना,
हर्ज दिल को होने लगता।
ऐसी  गलती  मत  करना,
डोर  टूटे  बंधन  की....2

प्रेम प्यार की निर्मल धारा,
दिल में सदा ही बहता रहे।
अपने दिलों से दूर हो कर
दर्द दिल को होने लगता।
ऐसी  गलती  मत  करना,
डोर  टूटे  बंधन  की....2

गुल बनना गुलजार करना,
शूल नहीं गुनहगार बनना।
काँटों की राह चलना पड़े,
विवश  कभी नहीं करना।
ऐसी  गलती  मत  करना,
डोर  टूटे  बंधन  की....2

रिश्ता  सुखमय बना रहे,
प्यार  मोहब्बत जवां रहे।
धड़कते दिल की पहचान,
जिंदादिल  सब  बना रहे।
ऐसी  गलती  मत  करना,
डोर  टूटे  बंधन  की....2

शिकवा  का  दौर  नहीं है,
अब तो सीधा  फैसला है।
गलत सही का ध्यान कहां,
जब खूद ही जज बनना है।
ऐसी  गलती  मत  करना,
डोर  टूटे  बंधन  की....2
🍁🍁
✒......धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"

पंक्तियों का भाव :-
☛जाने अंजाने में इंसान आपसी संबंधों में ऐसी हरकत या ऐसी गलती कर जाता हैं कि वह हमेशा के लिए यहाँ तक की जीवन पर्यन्त तक के लिए गलत कार्य व आचरण नासूर की तरह हो जाता है। इंसान चाह कर भी उसे ठीक नहीं कर पाता है।
☛घर परिवार से लेकर समाज तक जो भी रिश्ते नाते हैं उसके जीवन्तता का उसकी खुशियों का एक मात्र आधार प्रेम प्यार से ही है परन्तु इंसान कभी कभी अपने निज स्वार्थ में अपने चंद स्वार्थ में अपनों का उपेक्षा व अनादर कर जाते हैं जिससे आपस में वैमनुष्यता, मनमुटाव व कटुता उत्पन्न हो जाती है। 
☛ऐसा करने वाला इंसान अपने द्वारा किए गए गलत कार्य तथा उससे उत्पन्न होने वाले परिणाम के बारे में दो स्थितियों में ही नहीं सोचता; पहला अगर सोचता तो ऐसा करता नहीं और दूसरा या फिर वह उस शख्स से कोई वास्ता रखना नहीं चाहता और संभवतः वह दूरी बना रहा हो।
☛घर परिवार में किसी एक के द्वारा भी कोई गलती किसी भी प्रकार से की जाती है तो इसका प्रभाव परिवार के हर एक सदस्य पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सभी पर होता है और सभी के सामान्य व्यवहार में सामंजस्य बैठाने के बाद भी बात विचार में दुर्बलता आ जाती है यानि उनके कदम स्थिर हो जाते हैं।
☛परिवार में किसी भी सदस्य का एक गलत कदम के फलस्वरूप संबंधों की डोर कमजोर पड़ने लग जाती है रिश्ते में कितनी भी प्रगाड़ता हो अंततः टूट ही जाता है।
☛यह भी कटू सत्य है कि इंसान जब अपनों के द्वारा चोट खाता है तो सबसे ज्यादा तकलीफ व असहनीय दर्द होता है।
☛आपके साथ रहने वाला हर इंसान आपके स्वभाव से वाकिफ होता वह सदैव सामंजस्य बैठाता है; महज विश्वास व धैर्य रखने की जरूरत है।
☛हर उस संबंध को जो जन्म से जुड़ी हो उसमें खासतौर पर अत्यधिक सजग रहना चाहिए।
☛हर एक फैसला व कार्य काफी सूझबुझ से व समझदारी के साथ होनी चाहिए।
☛बात व्यवहार में सरलता रखें किसी को कुछ भी कहने सुनने का मौका न दें।
🍁🍁
✒......धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"





Monday, 24 August 2020

मुस्कुराते रहना....

मुस्कुराते रहना....

🍁🍁
मुस्कुराते   हंसते  रहना,
तभी  भला  तेरा  होगा।
क्रोध  से  आवेश से तो,
सिर्फ बुरा अपना होगा।

मुस्कुराता हंसता चेहरा,
सुन्दर  जब मगन होगा।
घर  परिवार  सुखी तेरा,
दुख नहीं  जीवन होगा।

हंसी  खुशी  से  रहने से,
सफल होगा काज तेरा।
मंजिलों  की  राहें  फिर,
सरल सुखी सहज होगा।

झूठे वायदे झूठी कसमें
इनसे  दूर   हुए  न  तुम,
बुझा बुझा दुखी जीवन,
दर्द   भरा   तेरा   होगा।

मुस्कुराते   हंसते  रहना,
तभी  भला  तेरा  होगा।
🍁🍁
✒......धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)



Sunday, 23 August 2020

कर्म प्रेम से तु करता चल....

कर्म प्रेम से तु करता चल....

~~
कर्म   प्रेम  से   तु  करता  चल,
प्रेम  की  धारा तु  बनता  चल।

अपनी सोच का अपनी समस्या,
ईलाज नहीं कोई औषध करता।

लिखा करम में जो  है विधाता,
पार  न  कोई  उनसे  है  पाता।

घटे  जो  घटना   वही  घटाता,
पागल  इंसा  सोच  कर  रोता।

समय काल  हर  एक  इंसा का,
समय से आना समय से जाना।

सच्चाई   को   जो  तुम  जानो,
मन अशांत कर  दुखी न होता।

जो  अपने  बस में  नहीं  होता,
फिर काहे खूद  को उलझाना।

कर्म  प्रेम  से   तु  करता  चल,
प्रेम  की  धारा तु  बनता चल।
~~
✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)

Thursday, 20 August 2020

चलो सरकार गिराए.....

चलो   सरकार   गिराए.....!
🐍😂(व्यंग)😂🐍
बैठते कुर्सी पर जिसने,
नीति तुफानी अपनाए।
नोटबंदी का जख्म दिए,
लुटेरों का शटर गिराए।
रोते  प्यारे  लुटेरे  सारे,
चलो  सरकार  गिराए.....!
~~
टैक्स का बेढ़ागर्क किए,
जीएसटी  का  दर्द दिए।
लाग लपेट सभी कर रहे,
कैसे मटिया पलीद किए।
रोते  प्यारे बेईमान  सारे,
चलो  सरकार  गिराए.....!
~~
तीन तलाक पे ताला जड़े,
स्वाद मौलाना के बिगाड़े।
मान जनानियों का बढ़ाए,
ईज्जत की नीलामी रोके।
रोते  प्यारे  निर्बुद्धि  सारे,
चलो  सरकार  गिराए.....!
~~
370/35 ए रद्द कानून किए,
मंदिर  बनवा खेल बिगाड़े।
बंद  रार  हिन्दु मस्लिम के,
भ्रष्ट  नेता  बेरोजगार  हुए।
रोते   प्यारे   निकम्मे  सारे,
चलो  सरकार  गिराए.....!
~~
सात  साल  में  बेकार हुए,
रोजगारी  सत्तर  साल के।
तुफानी नीति के भेट चढ़े,
बची खुची कोरोना में डुबे।
रोते  प्यारे  हराम  खवईए,
चलो  सरकार  गिराए.....!
~~
अगल बगल बैठे हैं प्यारे,
बहुत परेशान मित्र हमारे।
अपनी  चिंता  में परेशां हैं,
राष्ट्र हित की  सोचे कैसे।
रोते  प्यारे बिलखते सारे,
चलो  सरकार  गिराए.....!
🐉😀🐍 
✒......धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"

Monday, 17 August 2020

रक्त संबंध में पड़ते दरार...



"लेख" कारण व निराकरण

♨♨
🏵इंसान के जीवन में वैसे तो हर रिश्ते की बहुत अहमियत है। हर रिश्ता खुबसूरत हो, एक सुखद व सुन्दर अहसास हो, खुलापन हो, ताजगी हो, चहकता हुआ हो, झिझक न हो, सुकून हो। परन्तु साफ व स्पष्ट शब्दों में कहें तो हर वह रिश्ता जहाँ रक्त संबंध का ताल्लुक होता है वह बहुत ही संवेदनशील व अजीबो गरीब होता है। इस रिश्तों को समझना और संजीदगी से व्यवहार करना बहुत ही मुश्किल तो है परन्तु इसको आपसी समझदारी व आपस की तालमेल से आपसी रक्त संबंध वाले रिश्तों को जीवन्त सरल व सहज बना सकते हैं।
🏵रक्त संबंध वाले रिश्तों को सहज व सरल बनाने के निमित्त कुछ विशेष पहलूओं को अपने इस लेख के द्वारा आप के समक्ष रखने का प्रयास कर रहा हूँ ;-
1- रक्त संबंध में माता पिता से शुरू होकर बेटा, बेटी, भाई बहन, पुत्र व पौत्र तक शामिल होते हैं। माता पिता व पुत्र के बीच का संबंध में थोड़ा ऊँच नीच मनमुटाव होता तो है परन्तु इस रिश्ते में सुकून का दायरा थोड़ा बड़ा होता है जिसमें यदा कदा कोई अपवाद मिलता है जो संबंध में जटिल स्थिति उत्पन्न कर देता है।

2- रक्त संबंध के अन्तर्गत आने वाले रिश्ते में भाई और बहन के स्थिति संबंध पर चर्चा करते हुए आगे बढ़ते हैं तो पाते हैं कि यह रिश्ता और उनके बीच के संबंध बहुत हद तक सकारात्मक सहज व सरल होते हैं। जाहिर है दिमागी तौर पर और रिश्तों से ज्यादा सुखकारी होता है। संभवतः इसका मुख्य कारण एक छत की नीचे न रहना यानि रिश्तों में दूरी का होना एक साथ कभी कभी या किसी अवसर पर होना फिर चले जाना। बेटियों व बहनों का पुश्तैनी जायदाद रुपया पैसा व सम्पदा से विशेष लेन देन व लगाव का न होना भी है।

3- रक्त संबंध के अन्तर्गत आने वाले रिश्ते में भाई भाई का ही रिश्ता सबसे जटिल व दिमागी तौर पर ऊलझाने वाला व दुखदाई होने का सबसे प्रमुख कारण है एक साथ एक छत के नीचे निवास करना है। जाहिर है अगर भाई भाई हैं तो छोटा बड़ा होगा अगर छोटे बड़े होंगे तो छोटे बड़े भावना की प्रबलता साथ में अपेक्षाएं व उपेक्षाएं, आदर व निरादर, हक व हिस्सा, संतोष व असंतोष; विश्वास व अविश्वास इत्यादि प्रमुख होता हैं।

🏵निराकरण के बिन्दुओं पर चर्चा रहीम दास जी के दोहे से करते हैं :-
~
रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाये!
टूटे से फिर  ना जुटे  जुटे गाॅठ  परि जाये ।
~~
1- भाईयों के बीच का रिश्ता खुबसूरत बनाने के लिए भाई भाई के रिश्तों को व उनके आचरण व व्यवहार को समझकर ही उसी के अनुरूप एक दूसरे को आचरण व व्यवहार करना चाहिए।
~~
2- परिवार के हर एक सुख दुख में परिवार के सदस्यों को भागीदार बनाने के लिए यत्न करना चाहिए।
~~
3- एक दूसरे की अवहेलना व उपेक्षा करने से बचना चाहिए।
~~
4- घर से बाहर होने पर या अन्य लोगों के बीच में होने पर भूल कर भी एक दूसरे को अपमानित व लज्जित न करें।
~~
5- हमेशा आपसी संबंध में मधुरता बनी रहे के निमित्त अपनी बोली व भाषा को मर्यादित व संयमित रखें।
~~
6- बिना तथ्य के आवेश व आवेग में आकर किसी के खिलाफ कुछ गलत कहने व फैसला करने से बचना चाहिए।
~~
7- अनेक बहाने खोजकर अकारण एक दूसरे के मान सम्मान व प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचाने से बचना चाहिए।
~~
8- अच्छा तब होता जब एक दूसरे की अच्छाईयों को अपने व उनके अपनों के बीच शेयर करें।
~~
9- दीगर किसी से भी अपनों की शिकायत व निन्दा करने बचें। आपको अंदाजा नहीं कि सुनने वाला बात को कैसा मोड़ देगा।
~~
10- सदैव संबंधों में सकारात्मक नजरिया बनाए रखें। नकारात्मकता से वैमनुष्यता बढ़ती है। नकारात्मक पूर्वाकलन से बचें।
~~
11- घर के छोटे छोटे विवाद को घर की चाहरदिवारी से बाहर जाने से रोकना चाहिए -
"क्योंकि बात की सच्चाई का आकलन सुनने वाला नहीं कर पाता और वह व्यक्ति सुनने मात्र से ही मन में विवाद का रंग रूप अवधारणा तैयार कर लेता है और उसी अवधारणा के अनुसार बातचित पर रिएक्ट करता जो मधुर संबंधों के लिए बहुत घातक होता है। यह कार्य इंसान को दूर तो करता ही है साथ ही आग में घी का भी काम करता है। रिश्ता कोई भी हो फिर समान्य व सहज ता उम्र नहीं हो सकता।"
~~
एक भूल जीवन भर का शूल,
बनें  रहे  गुल  क्यों करें भूल।
♨♨
✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)


Sunday, 16 August 2020

कुंवारा बाप...

कुंवारा बाप........
🍁🍁
कोई  कहता  कुंवारा   बाप,
गर्व  हमें  इस  पर होता था।
जन्मा  नहीं  पर   प्यारा था,
बेटी का बाप बना हुआ था।
                   गर्व  से  सीना  चौड़ा  होता,
                   जब  बेटी  माँ  कह बुलाती।
                   हंसी  में   नाते  संगी  साथी,
                   माँ बाबा कह पुकारा करते।
बात  कुंवारे  पन की सच्ची,
अनोखी  लगती थी अच्छी।
परवाह   कोई   नहीं  करता,
कुंवारा  बाप  बना  फिरता।
                  जन्म  से तीन वर्ष साथ रही,
                  कुंवारा  बाप  मसहूर  हुआ।
                  आज  बेटी  बेटी  की  माँ है,
                  यादें सब उसकी भी जवाँ हैं।
नहीं  बिसरती  वो सब बातें,
जीवन   की  अनोखी  यादें।
याद  पुरानी जेहन  में आते,
खुशी से मन खिल ही जाते।
🍁🍁
✒......धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"

Saturday, 15 August 2020

74 वां स्वतंत्रता दिवस बधाई..


स्वतंत्रता दिवस बधाई
🌷🌷💝🌷🌷
शान  तिरंगा   जान  तिरंगा।
है अपना अभिमान तिरंगा।।

प्रतिक साहस शौर्य वीरों का।
लहराता   आकाश   तिरंगा।।

तिरंगे  के  शान  के  खातिर।
वीर जवान कुर्बान देश का।।

लाडलों  की  कुर्बानी सहती।
माताओं को सलाम देश का।।

आजादी  के  अमर  शहीदों।
आज नमन सलाम देश का।।

शान  तिरंगा   जान  तिरंगा।
है अपना अभिमान तिरंगा।।

हिन्दू  मुस्लिम  सिख  ईसाई।
है सबका  अभिमान तिरंगा।।

सौगंध   हमें   तेरी  मिट्टी का।
माँ शान में जान न्योछावर है।।

मान  तिरंगा  सम्मान तिरंगा।
हिन्दूस्तान  की शान तिरंगा।।

जय  जय हिन्द! वंदेमातरम।
नमन   वंदन  तुम्हे  मातरम।।

🌷 जय  हिन्द  वंदेमातरम 🌷
♨♨
✒......धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)

Friday, 14 August 2020

माया का जाल......

 माया का जाल......

♨♨
सब कुछ है पर कुछ नहीं है
जो  है  सब  माया जाल है।

दुनिया तो एक रैना बसेरा
आया  जो  चला जाएगा।

जीवन  तो  आनी  जानी  है
तनिक भरोसा नहीं इसका है।

कहीं किसी के लिए उचित तो
कहीं  पर  अनुचित  होता  है।

कहीं किसी की अर्थी उठती
कहीं  पर  डोली  उठती  है।

कहीं गमी में कोई रोता तो
कहीं सुखी में कोई हंसता। 

मत इतना सोचो बन्धु तुम
जीवन ही नहीं है जब अपना।

कर्म की बोली ही मुँहबोली
बड़बोली  सबकी  बेकार है।

कर्म करे साकार करे जो
वही इंसान ही महान  है।

सब कुछ है पर कुछ नहीं है
जो  है  सब माया जाल है।
♨♨
पंक्ति का भाव :-

✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)

Thursday, 13 August 2020

ग़ज़ल


 ♨♨
कमी अपनी हो तो ज़माना भी बुरा लगता है।
जब कमी अपनी हर शख्स में नज़र आता है।।

हर  एक  शख्स  ज़माने  में  बुरा  नहीं  होता।
जाने  अंजाने  में उसको  तुमने शताया होगा।।

खूद के करतब का  मन ही तो  आईना होता।
पता चल जाता तुम्हें मन में झाँक लिया होता।।

एक तुमही हो जो हर बात पर ख़फा होते हो।
दूसरा  कोई  नहीं  हमसे  कभी  ख़फा  होता।।

गलत  खूद  करके  औरों  पर  दोष मढ़ते हो।
अच्छे भले इंसान से रूसवा  बेवजह होते हो।।

कमी अपनी हो तो ज़माना भी बुरा लगता है।
जब कमी अपनी हर शख्स में नज़र आता है।।

♨♨
✒......धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)




Wednesday, 12 August 2020

दीपक तले अंधेरा होता...

दीपक तले अंधेरा होता...

🍁🍁
दीपक   तले   अंधेरा   होता,
खुद प्रदीप्त के नहीं सोचता।
बिना स्वार्थ  करता उपकार,
दीपक का यह जीवन होता।

          बेमिसाल  कर्तव्य  है उसका,
          संदेश बलिदानी का उसका।
          जल जाता करता जग रोशन,
          देव तुल्य वंदन  करें उसका।

दीपक जैसे बहुत धरती पर,
देते खुशी जीवन त्याग कर।
पर  उपकारी उनका जीवन,
सेवा धर्म मकसद है अधार।

         हरियाली  धरती की निराली,
         फल फूल शुद्ध  जीवन देती।
         झरना  नदियाँ  कुआँ तलाब,
         जीवजगत के प्यास बुझाती।

त्याग के इनके कौन सोचता,
शोषण  खुब  इंसान  करता।
बिना  स्वार्थ  करते  उपकार,
पर उपकार में जीवन रहता।
🍁🍁
✒......धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"

कविता का भाव:-
☛अपना सर्वस्य जन कल्याण के निमित्त त्यागने वाला सच्चे अर्थों में अगर कोई है तो वो प्रकृति ही है। प्रकृत ने इस जीव जगत को हर कुछ उसके जीवन के लिए दिया है। इस जगत के जीव-जन्तु, पशु-पक्षी तो ठीक हैं प्रकृत के साथ हैं परन्तु जगत का श्रेष्ठ बुद्धिमान कहलाने वाला प्राणी ही लोभ लालसा में इसका अनुचित तौर पर दोहन कर रहा है। जिसका गंभीर परिणाम कोरोना त्रासदी के रूप में मानवता झेल रहा है।
☛इंसान को उपरोक्त पंक्तियों के द्वारा यही बताने का प्रयास कर रहा हूँ कि एक दीपक अनवरत अपने लौव से औरों को प्रकाशित करता है और उसकी स्वंय की गति सिर्फ नष्ट हो जाना है। जबकि उसका प्रकाश उसके स्वयं के लिए भी नहीं है। दीपका का जीवन मात्र पर उपकार के लिए ही होता।
☛हम बात करते हैं धरती पर मौजुद हर भरे पेड़ पौधों का नदियां, झरना व तलाब का जिनके जीवन का मकसद सिर्फ औरों को लाभान्वित करना इसको इस तरह से समझे तो ये सभी दाता की श्रेणी में आते हैं और जगत प्राणी याचक तब हममें और उनमें श्रेष्ठ व महान कौन? जवाब दाता। एक दाता का मान सम्मान व कद्र किसी तरह करनी चाहिए या होनी चाहिए बुद्धिमान व श्रेष्ठ मानव समाज को शायद बताने की जरूरत नहीं है।
☛कुदरत की उपरोक्त दी गई नियामत के बाद अगर प्राणी मात्र में दीपक जैसा कोई जीवन जीता है तो वो इस धरती के भगवान कहे जाने वाले देव तुल्य माता पिता होते हैं जो अपना सर्वस्य अपने संतान पर न्योछावर कर देता है।
☛परिवार, समाज व संसार की खुशहाली के लिए इंसान उनके इस मर्म ममता और उनके इस प्यार के बदले उनके संरक्षण के लिए अपने कर्तव्यों एवं दायित्वों को समझे और उसके निमित्त कार्य करें।
☛प्रकृति देव तुल्य है, देव तुल्यों का संरक्षण खूद का सुखद जीवन।
♨♨
✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)

Tuesday, 11 August 2020

पति पत्नी और रिश्ते...

♨♨ 
सब  रिश्तों  का  एक  ही मूल,
पति  पत्नी  से  न  होए  भूल।
बुद्धि  विवेक  प्यार   से  राखें,
सकल काज सब होई सुखारे।
~~
जगत  जीव सब  आदर  चाहे,
हर  एक  जीवन  प्यारा  प्यारे।
शब्द जुबाॅ  पर  मान  से  राखें,
खुशियों  से   घर  द्वार  संवारे।
~~
जीवन बस  एक बार मिला है,
रिश्ते  सब  एक बार मिला है।
हर  रिश्ते  को  जोड़े  विधाता,
कौन   होते  हम  तोड़े  नाता।
~~
सोच समझ  व  प्यार से जी लें,
बुद्धि  विवेक  से  नाता  जोड़ें।
संग  अपने  जो  सहेज  संवारे,
जाने   प्रभू   कब   मुँह  फेरलें।
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पंक्ति का भाव:-

☛पति पत्नी का रिश्ता जगत का सबसे पवित्र व पावन रिश्ता होता है। बेहतरीन ताल्लुकात आचार विचार व व्यवहार गृहस्थ जीवन की सबसे सुदृढ़ कड़ी है। पति पत्नी का रिश्ता और भी शोभायमान व सम्मानित तब होता जब आपसी तालमेल, भरोसा, विश्वास सुन्दर व खुशगवार रहता। परिवार के सदस्यों व नातेदारों के प्रति एक दूसरे का बेहतरीन समन्वय होता।
☛पति और पत्नी के आपसी तालमेल से एक सुखी परिवार की संरचना होती है। एक दूसरे के कार्य विशेष पर आपसी सहमति व स्वीकृति का विशेष महत्व होता है। यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि यह जरूरी नहीं पति और पत्नी के कार्य की सोच दूरदर्शी हो; परन्तु एक दूसरे के राय परामर्श से दूसरों के हित अनहित पर विचार विमर्श कर, समझ में न आने पर किसी दूसरे से जिसे आप योग्य व काबिल समझते हैं और उनसे उचित परामर्श व राय मशविरा से सही, उचित व योग्य फैसले पर जा सकते हैं।
☛इस प्रकार से उपरोक्त व उचित कार्य कर आप अपने बीच ही नहीं अपने के अपनों के बीच श्रेष्ठ व महान बन सकते हैं; परन्तु हमारे समाज में इस प्रकार की जीवन शैली व तौर तरीके का पूर्णतया अभाव हो गया है। अब ऐसी आदतें व ऐसी संस्कार देखने को नसीब नहीं होते।
☛पति पत्नी की जीवन शैली उनके तौर तरीके सुदृढ़, सशक्त व खुशगवार जीवन के स्तम्भ हैं। इसी से उनका सुखद घरौंदा है, उनकी सुखद जिन्दगी का छत यानि छाजन है। उनके जिन्दगी की छाजन समानान्तर रहे इसके लिए यह बहुत ही आवश्यक है कि दोनों का एक समान होना। जिन्दगी का छाजन संतुलित तभी रहेगा जब बतौर स्तंभ पति पत्नि का आचरण व व्यवहार में समानता हो। उसके लिए जरूरी है कि सही क्या है गलत क्या है? एक दूसरे को समय पर बताएं व समझाएं रहें।
☛पति और पत्नी के बीच कोई गलत कार्य व गलत व्यवहार कर रहा है तो उसे गलत व्यवहार व गलत आचरण करने से रोकें खामोश न रहें आपकी ख़ामोशी अपनों व औरों के साथ साथ खूद को भी जलील करवा देती है। खुशगवार माहौल के बीच कठोर दिवार खड़ी कर देती है। जिसे गिराना बड़ा मुश्किल होता।
☛अगर पति द्वारा कुछ गलत किया जा रहा हो तो पत्नी द्वारा बताया जाना या गलत करने से रोका जाना या यदि पत्नी द्वारा कुछ गलत हो रहा हो तो पति का दायित्व है कि वह उसे रोके तथा गलत होने के प्रभाव से अवगत कराए। जिससे जिन्दगी के छाजन का संतुलन बना रहेगा तथा उसके नीचे बसने वालों पर किसी प्रकार का संकट या भय नही होगा। जीवन सदा खुशगवार बना रहेगा।
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✒......धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)

Monday, 10 August 2020

चित मानव का..

चित मानव का..

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चित मानव  का  कैसा  होता,
त्याग अपनों  का  भूला देता।

औरों के एक  त्याग पर  कैसे,
खुशी  के आंसू  टपका  देता।

महिमा की फिर बात न पूछो,
जीवन  भर  गुणगान  करता।

अपने दुख चाहे जितना झेले,
उनका कभी  न  मान करता।

औरों के अहसान  को  समझे,
अपनों  का  क्यों  भूला  देता।

चित मानव  का  कैसा  होता,
प्यार  अपनों  का  भूला देता।
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पंक्ति का भाव:-

☛इंसान का चित उसका मन बड़ा विचित्र होता है। वह उस व्यक्ति या इंसान पर बहुत शीघ्रता से भावुक हो जाता है जो कभी उसके प्रतिकूल परिस्थितायों में या फिर मुसीबत में मददगार बन जाता है और कभी कभी स्थिति ऐसी भी उत्पन्न हो जाती कि इंसान के विह्वलता के कारण खुशी के आंसू भी टपकने लग जाता है।
☛फिर उबरने वाले इंसान के द्वारा उस व्यक्ति का महिमा उसका गुणगान करने से नहीं थकता। ऐसा होना भी चाहिए उसका आदर व सम्मान व गुणगान सहजता से प्रत्येक इंसान को करना भी चाहिए। इससे मानवता को सुदृढ़ बल व शक्ति मिलता है। जिससे हर उस संवेदनशील व्यक्ति को मानव हित में कार्य करने, मानवता की सेवा के लिए प्रेरणा स्रोत का कार्य करती है।
☛उपरोक्त तथ्यों पर दृष्टि डालने के उपरान्त यानि औरों के द्वारा अपने प्रति किए गए उक्त नेक कार्य पर उत्पन्न अपनी भावना प्यार खुशी का तुलनात्मक अध्ययन अब अपने परिजनों व अपनों के साथ करते हैं तो आप अपने हृदय पर हाथ रखकर बताए हम उनके साथ क्या कर रहे हैं?
☛तब आपका अंतःमन एकदम से विपरीत पाता तब आपको अहसास होगा कि हम उस इंसान की तनिक भी कद्र नहीं करते जो आपको बनाने के लिए संवारने के लिए अपना पूरा जीवन दाव पर लगा देता, कितने दुख दर्द झेला तमाम तरह की मुसीबतों का सामना किया। सबसे आश्चर्य जनक पहलू तो यह है कि इतना कुछ करने के बाद भी ख़ामोश रहता है।
☛वह इंसान जो जन्मदाता है जो हर प्रकार से श्रम, संघर्ष, त्याग, तपस्या व अपने जीवन का सर्वश खुशी खुशी न्योछावर कर देता है।
☛आज अपने इस समाज में कहीं कहीं देवतुल्य शख्सियत महत्वहीन होता जा रहा है। याद रहे जिस घर में इनके चेहरे पर खुशी नहीं आँखों में चमक नहीं वहाँ उस घर में कभी खुशहाली न होगी। 
☛जो अनमोल है! जो अतुलनीय है! जो श्रेष्ठ है! जो देव तुल्य है! आज वही इस समाज में कैसे तुच्छ व उपेक्षित जीवन जीने के लिए लाचार व विवश है।

कुछ उठते प्रश्न....

☛जन्मदाता का प्यार क्या प्यार नही?
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☛जन्मदाता  का  त्याग  क्या त्याग नहीं?
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☛जन्मदाता का संघर्ष उसमें तन्मयता बेमानी है?
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☛सहजता से कहने वाले भी हैं-"पने किया ही क्या?
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✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)

Sunday, 9 August 2020

परिंदे की स्वछंद उड़ान...

परिंदे की स्वछंद उड़ान....
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देख   परिंदा   कैसे  उड़ता,
बिन  बंदिस के आकाश में।
मानव  बस  फंसा  हुआ  है,
खूद  अपने   कारावास  में।

अपनी  सांसों में दम घूटता,
बेबस   लाचार   जहान  में।
हालत उसकी ऐसी  हो गई,
ईर्ष्या   स्वछंद   उड़ान   से।

प्रकृति प्रेम  में जीता परिंदा,
सुखी    तभी    संसार   में।
लोभ  लालच  में रचा बसा,
कुंठित  मानवता जहान में।

इंसा अपने सुख के खातिर,
औरों  को दुख दर्द दे जाय।
ऐसा  सुख  लेकर  के  क्या,
बेबस   जिन्दगी   हो  जाय।

देख  परिंदा  कैसे  उड़ रहा,
बिन  बंदिस के आकाश में।
मानव ही बस फंसा हुआ है,
खूद  अपने  कारावास   में।
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✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)

कविता का भाव:-

☛आज इस कोरोना वैश्विक महामारी काल में सम्पूर्ण मानवता डर भय व संकट में बेबस व लाचार जीवन जी रहा है। सम्पूर्ण मानवता के जीवन की स्वतंत्रता उसकी आजादी तार तार हो गई है। लोग अपने ख़ास से भी सिर्फ ऊपरी मन से अपने स्वार्थ के कारण मिल रहें हैं परन्तु सच्चाई यह है कि अन्तर्मन भयवश रोकता है।

☛आज जीव जगत में वैसे हलकान व परेशान तो सभी हैं परन्तु उनमें से सबसे ज्यादा हलकान व परेशान मानव समाज ही है। जिसके पिछे कारण यह समझता हूँ कि मानव ने ही सबसे ज्यादा प्रकृति का दोहन किया है। अपने सुख के लिए अपने ऐशो आराम के लिए किसी को भी दुख दर्द दे देता है तनिक भी अच्छे बुरे व सही गलत पर ध्यान नहीं और न ही मानवता व सभ्यता पर इसका क्या प्रभाव होगा विचार करता।

☛जीतने भी जगत जीव जन्तु हैं उनमें से अधिकाशंतः वो जो मानव पर आश्रित व आधारित नहीं हैं, वो मात्र प्रकृति स्नेह व प्रेम पर निर्भर हैं उनके ऊपर इस महामारी का तनिक भी असर नहीं है वो प्रकृति से जुड़े हैं और प्रकृति पर ही निर्भर है वो स्वच्छंद व आनन्दित होकर उड़ान भर रहे हैं। उनके अंदर लोभ लालच की कोई लालसा नहीं है आज वो स्वतंत्र व आजाद हैं।

☛इंसान अपने सुख के लिए अपने ऐशो आराम के लिए अपने प्रकृत व समाज में इतना अनर्गल कृत्य कर डाला है कि समाज में स्वच्छंद जीवन जीना मुश्किल हो गया है हर पल डर डर कर भय में जीवन जी रहा है। जीवन की अनमोल कड़ी हवा को भी स्वच्छंद होकर ग्रहण नहीं कर पा रहा है।

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✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)

Saturday, 8 August 2020

मैं राहों का फूल...

~ गीत ~
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मैं राहों का फूल हूँ
शूल समझ लिए क्यों तुमने।
राह बदल कर के तुमने
क्यों काँटो पर चल दिए।
मैं राहों का फूल हूँ
शूल समझ लिए क्यों तुमने।

राहें बदल कर 
काँटों पर चल कर
जख्म खूद को देकर तुम
क्यों भला मुझको तड़पाते,
क्यों काँटो पर चल दिए
जख्म खूद को देकर तुम।
मैं राह का फूल हूँ
शूल समझ लिए क्यों तुमने।

नन्ही सी थी आई जीवन में
जतन किए थे जिसका हमने
जाने क्यों भूला दिये,
तमाम लम्हें खुशी का तुम।
मैं राह का फूल हूँ
शूल समझ लिए क्यों तुमने।

कभी ऐसा न सोचा था
तमाम खुशी का वो लम्हा था।
उन लम्हों को भूला कर तुमने
बेहिसाब दर्द दे गए तुम।
मैं राह का फूल हूँ
शूल समझ लिए क्यों तुमने।
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✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)

Friday, 7 August 2020

दिल चाहे औरों से ज्यादा।

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दिल  चाहे  औरों  से ज्यादा!
प्यार  देना  उसे  नहीं आया।

दिल का हाल सुने दिलवाला!
नादान हैं  वो समझ न पाया।

गलत यदि जो तुम करते हो!
सही  की  चाहत मत करना।

मान करोगे सम्मान मिलेगा!
बोल जो सीधी तुम  रखना।

लाख बुराई  जो कोई करता!
बुरा  कभी   न  तुम  करना।

अगर अकड़ में तुम रहते हो!
उम्मीद नरम की मत रखना।

अपना  संस्कार हम भूल गये!
औरों  में  ढूंढ़े  संस्कार  यहाँ।

मान सम्मान का  भान नहीं!
अपना हित साधे हर इंसान।

सच्चाई  अच्छाई   मुश्किल!
गलत  फरेब  आसान  यहाँ।

दर्द कलम  की स्याही होती!
दर्द मिलते  ही  चल  पड़ती।

दिल  चाहे  औरों  से ज्यादा!
प्यार  देना  उसे  नहीं आया।

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पंक्ति का भाव :-

☛इंसान में स्वार्थ की प्रवृत्ति का अपना एक स्तर होता किसी में बहुत ज्यादा होता तो किसी में बहुत कम होता तो किसी में सामान्य होता है पर यह स्वभाव हर किसी में होता ही है। इस पर परम पूज्य कविवर तुलसीदास जी की एक चौपाई  है:- 
सुर नर मुनि  सब कै यह रीती।
स्वारथ लागि करहिं सब प्रीती।।
☛जीवन में सुखद पहलू का मुख्य सुत्रधार हर किसी के व्यवहार का समानान्तर होने से है यानि हर किसी से संबंध सहज, समान व समान निरन्तरता से है। साधारण भाषा में यह समझलें कि संबंधों का तालमेल सहज व सहने योग्य हो। कार्य व व्यवहार का तारतम्य एक दूसरे के प्रति न तो कम हो और न तो ज्यादा ही हो बल्कि समान्य हो सहज हो, अटपटा और असहज न हो।
 ☛हमारे कार्य व व्यवहार कुछ इस तरह का नाप तौल से होना चाहिए कि हमारी चाहत व नाचाहत हमारी इच्छा व अनिच्छा सामने वाले पर अधिरोपित न हो बल्कि एक दूसरे का ख्याल रख कर ही करें तो संभंवतः स्वार्थीपन का अहसास ही न हो और सब कुछ सहज व समान्य ही लगे।
☛इंसान के जीवन की सबसे सरल व सटिक मंत्र परम पूज्य कविवर तुलसीदास जी की चौपाई से स्पष्ट है:-
कर्म   प्रधान   विश्व   रचि   राखा ।
जो जस करहि सो तस फल चाखा।।
अर्थात -
जब हम अच्छे कर्म करते हैं तब उसका प्रतिफल भी अच्छा  मिलता है और जब हम कुछ गलत कर देते हैं तब प्रतिफल में हमें भी कष्ट मिलते हैं।
☛हमारे जीवन के सुख और दुख का सबसे बड़ा व मूल आधार हमारा आचार विचार व व्यवहार ही है।
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✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)

Thursday, 6 August 2020

वीर हनुमान लंका में...


  वीर हनुमान लंका में...
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रामदूत हैं अतुलित बलधामा।
अंजनी  पुत्र पवन सुत नामा।
राम   जपन   करते  बलवीरा,
सुमिरन  करें   सदा  रघुवीरा।

पवन वेग उड़ लंका को जाई,
मार  घूसा  लंकिनी  लुढ़काई।
माता सिया की  खोज  लगाई,
प्रभू  मुंदरी देह माँ पुत्र बताई।

माँ की कृपा लेई भूख मिटावा,
उपार  चोथ  वाटिका उजाड़ा।
अक्षय  को  परलोक  सिधारा,
अभिमानी  की   लंका  जारा।

रामदूत  जहं  जोर   दिखावा,
सियाराम  के   काज  सवारा।
भक्त  विभिषण  गले लगावा,
प्रभू  दर्शन संदेश  देई आवा।

रावण  भी जोउ  भय से हाँफे,
भूत पिशाच जो थर थर काँपे।
माँ निशानी लेई  वापस आना,
प्रभू चरणों  में  शीश  नवाना।

कुशल  क्षेम माँ  का  बतलाया,
संकट मोचक  नाम  कहलाया।
बाँधे  सेतू  प्रभू सेना  पहुँचाया,
युद्ध  विकराल भई जहं लंका।

लक्ष्मण   मूर्क्षित  भए  बलवंता,
सुषेन वैध घर समेत लेई आवा।
गिरी  उखाड़  संजीवनी  लाया,
लक्ष्मिन जी  के  प्राण  बचाया।

नागपाश से  मुक्ति  दिलावाया,
गरूणराज   साथ  लेई  आवा।
लंका फ़तह   सारथी बलवाना,
प्रभू सेवक  हैं  भक्त हनुमाना।

शीश   नवाते   तेरे   चरणों  में,
कष्ट  निवारो  हे  राम हनुमंता।
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✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)






Wednesday, 5 August 2020

दुनिया है साहब...

दुनिया है साहब...
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यही  दुनिया है  साहब
जीवन तो आनी जानी है
किसी के लिए उचित तो
किसी के लिए अनुचित
कहीं दुख होता, 
कहीं सुख होता।
कहीं अर्थी उठती, 
कहीं डोली उठती।
कहीं गमी  होती  तो
कहीं  सहनाई  बजती।
काहे   सोचे   तु   रे  बन्धु
जीवन भी अपना  ही नहीं।
कर्म की बोली ही मुँहबोली,
बाकी  बड़बोली  बेकार है।
कर्म  करे  साकार  करे,
वही बहुत ही महान है।
जय हिन्द! वंदेमातरम!
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✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)

Tuesday, 4 August 2020

कवि की सर्वभौमिकता..

कवि की सर्वभौमिकता..
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न पूछो कवि कहाँ कहाँ हैं!
जहाँ रवि नहीं वहाँ वहाँ है।

जन्म गाथा भी बतलाता
मृत्यु शैय्या पर लिख आता।
बचपन की किलकारियों में तो
वृद्धावस्था की पेचीदगी में,
लड़कपन बादशाहियत में तो
जवानी की रंगरेलियों में
न पूछो कवि कहाँ कहाँ हैं....2

न पूछो कवि कहाँ कहाँ हैं!
जहाँ रवि नहीं वहाँ वहाँ है।

रागिनियों के सौन्दर्य में तो
बागों की बहारों में
नदियों की कलकल धारा तो
पर्वत की श्रृखंलाओं में
कश्मीर की वादियों में तो
कन्याकुवांरी सागर तट पर
न पूछो कवि कहाँ कहाँ हैं....2
जहाँ रवि नहीं वहाँ वहाँ है।

मंदिर जाता मस्जिद में जाता
गुरूद्वारा गिर्जाघर हो आता
कंकड़ पत्थर सब पूज आता
ईश्वर एक अपने में पाता
श्रद्धा और विश्वास जगाता
नेकी का जग पाठ पढ़ाता।
न पूछो कवि कहाँ कहाँ हैं....2
जहाँ रवि नहीं वहाँ वहाँ है।

त्रेता में रामलला के हनुमान तो
द्वापर में कृष्णा के सुदामा में
कलयुग का वारा न्यारा
सतयुग का जीवन बतलाता
कालराज को सीख दे आता
धर्मराज को नीति बतलाता।
न पूछो कवि कहाँ कहाँ हैं....2
जहाँ रवि नहीं वहाँ वहाँ है।

माँ वागेश्वरी शिष्य परम है,
आशीष माँ का कवि वहाँ है।
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✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)






Monday, 3 August 2020

गज़ल


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नसीब  वालों  को  मिलते  हैं  वो,
दिल  से  ज्यादा अजीज  हैं  जो।

हम  भी   तेरे   ही  अजीज  रहते,
तुम  नाराज  नसीब  से  न  होते।

खुदा   जाने   दर्द   दिए   हमको,
चोट से  बेदम  कर दिए  हमको।

बीमार  दिल से पहले  से  ही था,
कसूर  क्या  था हृदय घात दिए।

 जी  में  आया  छोड़  दूँ ताल्लुक,

कम्बख्त  दिल   ने  रोक  लिया।

दिल के हाथों बेबस लाचार हुआ,
जाने  है  दो  घड़ी का साथ यहाँ।

जिन्दगी का कोई  ठिकाना नहीं,
जी  रहे  हम  रंज  तमाम  लिए।

पागल  है  उम्मीद  पर   कायम,
सुध  लेंगे  कभी  मेरे  दिल  का।

नसीब  वालों  को  मिलते  हैं  वो,
दिल  से  ज्यादा अजीज  हैं  जो।
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✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)





Sunday, 2 August 2020

चींटे का क्रोध...


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इंसान के क्रोध की कहानी तो आप सभी ने बहुत सुनी है पर आज हम अपने साथ घटित हकीकत कहानी सुनाता हूँ जिसमें एक चीटा है और हमारा शरारती दिमाग।
☛बात आज से लगभग 35 वर्ष पुरानी सच्ची घटना है जो आज साझा कर रहा हूँ। सुबह 8:00 बजे का समय था जनवरी का सर्द मौसम था। सुबह का समय और जनवरी का सर्द महीना बताने का कारण यह है कि आम तौर पर गर्मी में इंसान तो इंसान जानवर भी क्रोध व आवेश में रहते हैं। परन्तु सर्द मौसम में क्रोध व आवेश कम होता है फिर भी एक नन्हा सा चींटा किस प्रकार आक्रोशित होता चलिए सुनाते हैं :-
☛हम चारपाई पर लेटे लेटे धूप सेंक रहे थे कि एक चींटा चारपाई के बगल से जा रहा था। शरारती दिमाग ने उसके रास्ते को अवरूद्ध कर रोकने की सोची और एक दूब यानि तिनका उठाया और उसके मार्ग को अवरूद्ध करने लगा। पहली बार में चींटा अपना रास्ता बदल लिया, फिर उसके मार्ग को रोकने लगा तो फिर वह अपना मार्ग बदल लिया, फिर मैंने वही किया और फिर मार्ग को रोकने लगा, इस बार उसने थोड़ा ठीठक गया थोड़ा रूका जैसे लगा कि वह कुछ सोच रहा हो, उस तिनके के चारों तरफ परिक्रमा किया, फिर उसने अपना मार्ग बदल कर दूसरी तरफ चल दिया।
☛चींटे की हरकत देख कर अवाक रह गया इस बार उसने बहुत तेजी से भागना शुरू कर दिया। उसे कुछ दूर जाने दिया फिर हमने उसके सामने तिनके को लगा दिया। इस बार उसने तनिक भी समय नहीं लिया न रूका तिनके को अपने मुंह के कैचीनुमा दाॅत से काट दिया। फिर क्या था चींटे ने कई बार लगातार तिनके को काटते चला गया।
☛यह घटना क्रम चींटे का आवेश व क्रोध और उससे प्राप्त उत्तम संदेश आज 35 साल के बाद भी मस्तिष्क पटल पर आज भी विराजमान है।

सबक :-

☛इस घटना क्रम से यह सबक प्राप्त हुआ कि इंसान छोटा हो या बड़ा हो, कमजोर या मजबूत हो, इंसान हो या पशु हो जीव जगत का कोई भी प्राणी हो हर किसी की सहनशीलता की एक सीमा है। 
☛इंसान एक सीमा तक ही बात बर्दाश्त कर पाता है उसके बाद फिर वह अपने क्षमता व बुद्धि विवेक के अनुसार वार करने के लिए विवश व मजबूर हो जाता है।
☛इंसान को हमेशा अपने आचरण व व्यवहार को मर्यादित रखना चाहिए।
☛अपने बोली भाषा और कार्य का संतुलन बना कर रखना चाहिए।
☛अमर्यादित बोल व कार्य से अपने उपर सदैव संकट बना रहता है।
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✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)

Saturday, 1 August 2020

जागो विद्वान साथियों जागो..


जागो विद्वान साथियों जागो..
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बेड़ागर्क हो रहा आज देश का!
पढ़ा लिखा विद्वान ख़ामोश देश का।
बेवकूफ अज्ञानी ज्ञान बाट रहा!
विद्वान ज्ञानी सल्यूट मार रहा।
शिक्षा और ज्ञान का मतलब यही,
ज्ञानी बेवकूफों का दरबार सजाए।
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खामोशी ही बन रहा संताप देश का!
वजह यही गिरा रहा स्तर देश का।
खामोश होकर गद्दारों की मंशा को
उनके पनपने तुम बिलकुल न देना।
रोको बोध कराओ देश के मान का!
अज्ञानता में अंधे पैर काट रहे अपना।
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भेड़ियों का बढ़ता झुण्ड शेर भी मार जाएगा!
चलो उठो अलख जागाओ भूल सुधारो!
दायित्व समझो कर्तव्यों का अहसास करो!
आगे बढ़ो सामना करो जिम्मेदारी देश का!
सशक्त बने यह देश अपना दायित्व संभालो!
अपनी शक्ति अपना ताकत एकजुटता जानो।
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विनम्र आह्वान साथियों से है यही:-
☛लिख सकते हो तो लिखो!
☛पढ़ सकते हो तो पढ़ो!
☛बोल सकते हो तो बोलो!
☛समर्थन कर सकते हो तो करो!
☛जो कर सकते हो करो ख़ामोश न बैठो।
☛संकोच न करो निडर बनो!
☛निडरता की शक्ति व महत्व को समझो।
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अपनी निडरता! अपनी तत्परता से
देश होगा खुशहाल! देश बनेगा महान!
जागो विद्वान साथियों अब तो जागो!
देश अपना है! कमान संभालो! जागो।
जय हिन्द! जय भारत! वंदेमातरम।
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✒......धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)

ससुराल मायका बहू बेटी...

ससुराल मायका बहू बेटी... 🍁🍁   ससुराल मायका बहू बेटी! दोनों जहान आबाद करती। मायके से ट्यूशन गर लिया, दुखों का जाल बिछा लेती। जहां कभ...