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Monday, 17 August 2020

रक्त संबंध में पड़ते दरार...



"लेख" कारण व निराकरण

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🏵इंसान के जीवन में वैसे तो हर रिश्ते की बहुत अहमियत है। हर रिश्ता खुबसूरत हो, एक सुखद व सुन्दर अहसास हो, खुलापन हो, ताजगी हो, चहकता हुआ हो, झिझक न हो, सुकून हो। परन्तु साफ व स्पष्ट शब्दों में कहें तो हर वह रिश्ता जहाँ रक्त संबंध का ताल्लुक होता है वह बहुत ही संवेदनशील व अजीबो गरीब होता है। इस रिश्तों को समझना और संजीदगी से व्यवहार करना बहुत ही मुश्किल तो है परन्तु इसको आपसी समझदारी व आपस की तालमेल से आपसी रक्त संबंध वाले रिश्तों को जीवन्त सरल व सहज बना सकते हैं।
🏵रक्त संबंध वाले रिश्तों को सहज व सरल बनाने के निमित्त कुछ विशेष पहलूओं को अपने इस लेख के द्वारा आप के समक्ष रखने का प्रयास कर रहा हूँ ;-
1- रक्त संबंध में माता पिता से शुरू होकर बेटा, बेटी, भाई बहन, पुत्र व पौत्र तक शामिल होते हैं। माता पिता व पुत्र के बीच का संबंध में थोड़ा ऊँच नीच मनमुटाव होता तो है परन्तु इस रिश्ते में सुकून का दायरा थोड़ा बड़ा होता है जिसमें यदा कदा कोई अपवाद मिलता है जो संबंध में जटिल स्थिति उत्पन्न कर देता है।

2- रक्त संबंध के अन्तर्गत आने वाले रिश्ते में भाई और बहन के स्थिति संबंध पर चर्चा करते हुए आगे बढ़ते हैं तो पाते हैं कि यह रिश्ता और उनके बीच के संबंध बहुत हद तक सकारात्मक सहज व सरल होते हैं। जाहिर है दिमागी तौर पर और रिश्तों से ज्यादा सुखकारी होता है। संभवतः इसका मुख्य कारण एक छत की नीचे न रहना यानि रिश्तों में दूरी का होना एक साथ कभी कभी या किसी अवसर पर होना फिर चले जाना। बेटियों व बहनों का पुश्तैनी जायदाद रुपया पैसा व सम्पदा से विशेष लेन देन व लगाव का न होना भी है।

3- रक्त संबंध के अन्तर्गत आने वाले रिश्ते में भाई भाई का ही रिश्ता सबसे जटिल व दिमागी तौर पर ऊलझाने वाला व दुखदाई होने का सबसे प्रमुख कारण है एक साथ एक छत के नीचे निवास करना है। जाहिर है अगर भाई भाई हैं तो छोटा बड़ा होगा अगर छोटे बड़े होंगे तो छोटे बड़े भावना की प्रबलता साथ में अपेक्षाएं व उपेक्षाएं, आदर व निरादर, हक व हिस्सा, संतोष व असंतोष; विश्वास व अविश्वास इत्यादि प्रमुख होता हैं।

🏵निराकरण के बिन्दुओं पर चर्चा रहीम दास जी के दोहे से करते हैं :-
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रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाये!
टूटे से फिर  ना जुटे  जुटे गाॅठ  परि जाये ।
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1- भाईयों के बीच का रिश्ता खुबसूरत बनाने के लिए भाई भाई के रिश्तों को व उनके आचरण व व्यवहार को समझकर ही उसी के अनुरूप एक दूसरे को आचरण व व्यवहार करना चाहिए।
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2- परिवार के हर एक सुख दुख में परिवार के सदस्यों को भागीदार बनाने के लिए यत्न करना चाहिए।
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3- एक दूसरे की अवहेलना व उपेक्षा करने से बचना चाहिए।
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4- घर से बाहर होने पर या अन्य लोगों के बीच में होने पर भूल कर भी एक दूसरे को अपमानित व लज्जित न करें।
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5- हमेशा आपसी संबंध में मधुरता बनी रहे के निमित्त अपनी बोली व भाषा को मर्यादित व संयमित रखें।
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6- बिना तथ्य के आवेश व आवेग में आकर किसी के खिलाफ कुछ गलत कहने व फैसला करने से बचना चाहिए।
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7- अनेक बहाने खोजकर अकारण एक दूसरे के मान सम्मान व प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचाने से बचना चाहिए।
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8- अच्छा तब होता जब एक दूसरे की अच्छाईयों को अपने व उनके अपनों के बीच शेयर करें।
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9- दीगर किसी से भी अपनों की शिकायत व निन्दा करने बचें। आपको अंदाजा नहीं कि सुनने वाला बात को कैसा मोड़ देगा।
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10- सदैव संबंधों में सकारात्मक नजरिया बनाए रखें। नकारात्मकता से वैमनुष्यता बढ़ती है। नकारात्मक पूर्वाकलन से बचें।
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11- घर के छोटे छोटे विवाद को घर की चाहरदिवारी से बाहर जाने से रोकना चाहिए -
"क्योंकि बात की सच्चाई का आकलन सुनने वाला नहीं कर पाता और वह व्यक्ति सुनने मात्र से ही मन में विवाद का रंग रूप अवधारणा तैयार कर लेता है और उसी अवधारणा के अनुसार बातचित पर रिएक्ट करता जो मधुर संबंधों के लिए बहुत घातक होता है। यह कार्य इंसान को दूर तो करता ही है साथ ही आग में घी का भी काम करता है। रिश्ता कोई भी हो फिर समान्य व सहज ता उम्र नहीं हो सकता।"
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एक भूल जीवन भर का शूल,
बनें  रहे  गुल  क्यों करें भूल।
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✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)


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