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Sunday, 16 August 2020

कुंवारा बाप...

कुंवारा बाप........
🍁🍁
कोई  कहता  कुंवारा   बाप,
गर्व  हमें  इस  पर होता था।
जन्मा  नहीं  पर   प्यारा था,
बेटी का बाप बना हुआ था।
                   गर्व  से  सीना  चौड़ा  होता,
                   जब  बेटी  माँ  कह बुलाती।
                   हंसी  में   नाते  संगी  साथी,
                   माँ बाबा कह पुकारा करते।
बात  कुंवारे  पन की सच्ची,
अनोखी  लगती थी अच्छी।
परवाह   कोई   नहीं  करता,
कुंवारा  बाप  बना  फिरता।
                  जन्म  से तीन वर्ष साथ रही,
                  कुंवारा  बाप  मसहूर  हुआ।
                  आज  बेटी  बेटी  की  माँ है,
                  यादें सब उसकी भी जवाँ हैं।
नहीं  बिसरती  वो सब बातें,
जीवन   की  अनोखी  यादें।
याद  पुरानी जेहन  में आते,
खुशी से मन खिल ही जाते।
🍁🍁
✒......धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"

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