♨♨
देख परिंदा कैसे उड़ता,
बिन बंदिस के आकाश में।
मानव बस फंसा हुआ है,
खूद अपने कारावास में।
अपनी सांसों में दम घूटता,
बेबस लाचार जहान में।
हालत उसकी ऐसी हो गई,
ईर्ष्या स्वछंद उड़ान से।
प्रकृति प्रेम में जीता परिंदा,
सुखी तभी संसार में।
लोभ लालच में रचा बसा,
कुंठित मानवता जहान में।
इंसा अपने सुख के खातिर,
औरों को दुख दर्द दे जाय।
ऐसा सुख लेकर के क्या,
बेबस जिन्दगी हो जाय।
देख परिंदा कैसे उड़ रहा,
बिन बंदिस के आकाश में।
मानव ही बस फंसा हुआ है,
खूद अपने कारावास में।
♨♨
✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)
कविता का भाव:-
☛आज इस कोरोना वैश्विक महामारी काल में सम्पूर्ण मानवता डर भय व संकट में बेबस व लाचार जीवन जी रहा है। सम्पूर्ण मानवता के जीवन की स्वतंत्रता उसकी आजादी तार तार हो गई है। लोग अपने ख़ास से भी सिर्फ ऊपरी मन से अपने स्वार्थ के कारण मिल रहें हैं परन्तु सच्चाई यह है कि अन्तर्मन भयवश रोकता है।
☛आज जीव जगत में वैसे हलकान व परेशान तो सभी हैं परन्तु उनमें से सबसे ज्यादा हलकान व परेशान मानव समाज ही है। जिसके पिछे कारण यह समझता हूँ कि मानव ने ही सबसे ज्यादा प्रकृति का दोहन किया है। अपने सुख के लिए अपने ऐशो आराम के लिए किसी को भी दुख दर्द दे देता है तनिक भी अच्छे बुरे व सही गलत पर ध्यान नहीं और न ही मानवता व सभ्यता पर इसका क्या प्रभाव होगा विचार करता।
☛जीतने भी जगत जीव जन्तु हैं उनमें से अधिकाशंतः वो जो मानव पर आश्रित व आधारित नहीं हैं, वो मात्र प्रकृति स्नेह व प्रेम पर निर्भर हैं उनके ऊपर इस महामारी का तनिक भी असर नहीं है वो प्रकृति से जुड़े हैं और प्रकृति पर ही निर्भर है वो स्वच्छंद व आनन्दित होकर उड़ान भर रहे हैं। उनके अंदर लोभ लालच की कोई लालसा नहीं है आज वो स्वतंत्र व आजाद हैं।
☛इंसान अपने सुख के लिए अपने ऐशो आराम के लिए अपने प्रकृत व समाज में इतना अनर्गल कृत्य कर डाला है कि समाज में स्वच्छंद जीवन जीना मुश्किल हो गया है हर पल डर डर कर भय में जीवन जी रहा है। जीवन की अनमोल कड़ी हवा को भी स्वच्छंद होकर ग्रहण नहीं कर पा रहा है।
♨♨
✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)
No comments:
Post a Comment
Please do not enter any spam link in the comment box.