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Monday, 10 August 2020

चित मानव का..

चित मानव का..

♨♨
चित मानव  का  कैसा  होता,
त्याग अपनों  का  भूला देता।

औरों के एक  त्याग पर  कैसे,
खुशी  के आंसू  टपका  देता।

महिमा की फिर बात न पूछो,
जीवन  भर  गुणगान  करता।

अपने दुख चाहे जितना झेले,
उनका कभी  न  मान करता।

औरों के अहसान  को  समझे,
अपनों  का  क्यों  भूला  देता।

चित मानव  का  कैसा  होता,
प्यार  अपनों  का  भूला देता।
♨♨

पंक्ति का भाव:-

☛इंसान का चित उसका मन बड़ा विचित्र होता है। वह उस व्यक्ति या इंसान पर बहुत शीघ्रता से भावुक हो जाता है जो कभी उसके प्रतिकूल परिस्थितायों में या फिर मुसीबत में मददगार बन जाता है और कभी कभी स्थिति ऐसी भी उत्पन्न हो जाती कि इंसान के विह्वलता के कारण खुशी के आंसू भी टपकने लग जाता है।
☛फिर उबरने वाले इंसान के द्वारा उस व्यक्ति का महिमा उसका गुणगान करने से नहीं थकता। ऐसा होना भी चाहिए उसका आदर व सम्मान व गुणगान सहजता से प्रत्येक इंसान को करना भी चाहिए। इससे मानवता को सुदृढ़ बल व शक्ति मिलता है। जिससे हर उस संवेदनशील व्यक्ति को मानव हित में कार्य करने, मानवता की सेवा के लिए प्रेरणा स्रोत का कार्य करती है।
☛उपरोक्त तथ्यों पर दृष्टि डालने के उपरान्त यानि औरों के द्वारा अपने प्रति किए गए उक्त नेक कार्य पर उत्पन्न अपनी भावना प्यार खुशी का तुलनात्मक अध्ययन अब अपने परिजनों व अपनों के साथ करते हैं तो आप अपने हृदय पर हाथ रखकर बताए हम उनके साथ क्या कर रहे हैं?
☛तब आपका अंतःमन एकदम से विपरीत पाता तब आपको अहसास होगा कि हम उस इंसान की तनिक भी कद्र नहीं करते जो आपको बनाने के लिए संवारने के लिए अपना पूरा जीवन दाव पर लगा देता, कितने दुख दर्द झेला तमाम तरह की मुसीबतों का सामना किया। सबसे आश्चर्य जनक पहलू तो यह है कि इतना कुछ करने के बाद भी ख़ामोश रहता है।
☛वह इंसान जो जन्मदाता है जो हर प्रकार से श्रम, संघर्ष, त्याग, तपस्या व अपने जीवन का सर्वश खुशी खुशी न्योछावर कर देता है।
☛आज अपने इस समाज में कहीं कहीं देवतुल्य शख्सियत महत्वहीन होता जा रहा है। याद रहे जिस घर में इनके चेहरे पर खुशी नहीं आँखों में चमक नहीं वहाँ उस घर में कभी खुशहाली न होगी। 
☛जो अनमोल है! जो अतुलनीय है! जो श्रेष्ठ है! जो देव तुल्य है! आज वही इस समाज में कैसे तुच्छ व उपेक्षित जीवन जीने के लिए लाचार व विवश है।

कुछ उठते प्रश्न....

☛जन्मदाता का प्यार क्या प्यार नही?
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☛जन्मदाता  का  त्याग  क्या त्याग नहीं?
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☛जन्मदाता का संघर्ष उसमें तन्मयता बेमानी है?
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☛सहजता से कहने वाले भी हैं-"पने किया ही क्या?
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✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)

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