माया का जाल......
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सब कुछ है पर कुछ नहीं है
जो है सब माया जाल है।
दुनिया तो एक रैना बसेरा
आया जो चला जाएगा।
जीवन तो आनी जानी है
तनिक भरोसा नहीं इसका है।
कहीं किसी के लिए उचित तो
कहीं पर अनुचित होता है।
कहीं किसी की अर्थी उठती
कहीं पर डोली उठती है।
कहीं गमी में कोई रोता तो
कहीं सुखी में कोई हंसता।
मत इतना सोचो बन्धु तुम
जीवन ही नहीं है जब अपना।
कर्म की बोली ही मुँहबोली
बड़बोली सबकी बेकार है।
कर्म करे साकार करे जो
वही इंसान ही महान है।
सब कुछ है पर कुछ नहीं है
जो है सब माया जाल है।
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पंक्ति का भाव :-
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✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)
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