इंसान के क्रोध की कहानी तो आप सभी ने बहुत सुनी है पर आज हम अपने साथ घटित हकीकत कहानी सुनाता हूँ जिसमें एक चीटा है और हमारा शरारती दिमाग।
☛बात आज से लगभग 35 वर्ष पुरानी सच्ची घटना है जो आज साझा कर रहा हूँ। सुबह 8:00 बजे का समय था जनवरी का सर्द मौसम था। सुबह का समय और जनवरी का सर्द महीना बताने का कारण यह है कि आम तौर पर गर्मी में इंसान तो इंसान जानवर भी क्रोध व आवेश में रहते हैं। परन्तु सर्द मौसम में क्रोध व आवेश कम होता है फिर भी एक नन्हा सा चींटा किस प्रकार आक्रोशित होता चलिए सुनाते हैं :-
☛हम चारपाई पर लेटे लेटे धूप सेंक रहे थे कि एक चींटा चारपाई के बगल से जा रहा था। शरारती दिमाग ने उसके रास्ते को अवरूद्ध कर रोकने की सोची और एक दूब यानि तिनका उठाया और उसके मार्ग को अवरूद्ध करने लगा। पहली बार में चींटा अपना रास्ता बदल लिया, फिर उसके मार्ग को रोकने लगा तो फिर वह अपना मार्ग बदल लिया, फिर मैंने वही किया और फिर मार्ग को रोकने लगा, इस बार उसने थोड़ा ठीठक गया थोड़ा रूका जैसे लगा कि वह कुछ सोच रहा हो, उस तिनके के चारों तरफ परिक्रमा किया, फिर उसने अपना मार्ग बदल कर दूसरी तरफ चल दिया।
☛चींटे की हरकत देख कर अवाक रह गया इस बार उसने बहुत तेजी से भागना शुरू कर दिया। उसे कुछ दूर जाने दिया फिर हमने उसके सामने तिनके को लगा दिया। इस बार उसने तनिक भी समय नहीं लिया न रूका तिनके को अपने मुंह के कैचीनुमा दाॅत से काट दिया। फिर क्या था चींटे ने कई बार लगातार तिनके को काटते चला गया।
☛यह घटना क्रम चींटे का आवेश व क्रोध और उससे प्राप्त उत्तम संदेश आज 35 साल के बाद भी मस्तिष्क पटल पर आज भी विराजमान है।
सबक :-
☛इस घटना क्रम से यह सबक प्राप्त हुआ कि इंसान छोटा हो या बड़ा हो, कमजोर या मजबूत हो, इंसान हो या पशु हो जीव जगत का कोई भी प्राणी हो हर किसी की सहनशीलता की एक सीमा है।☛इंसान एक सीमा तक ही बात बर्दाश्त कर पाता है उसके बाद फिर वह अपने क्षमता व बुद्धि विवेक के अनुसार वार करने के लिए विवश व मजबूर हो जाता है।
☛इंसान को हमेशा अपने आचरण व व्यवहार को मर्यादित रखना चाहिए।
☛अपने बोली भाषा और कार्य का संतुलन बना कर रखना चाहिए।
☛अमर्यादित बोल व कार्य से अपने उपर सदैव संकट बना रहता है।
♨♨
✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)
☛इंसान को हमेशा अपने आचरण व व्यवहार को मर्यादित रखना चाहिए।
☛अपने बोली भाषा और कार्य का संतुलन बना कर रखना चाहिए।
☛अमर्यादित बोल व कार्य से अपने उपर सदैव संकट बना रहता है।
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✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)
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