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Tuesday, 25 August 2020

डोर टूटे बंधन की...


डोर टूटे बंधन की...
🍁🍁
ऐसी  गलती  मत  करना,
डोर  टूटे  बंधन  की....
दिल में बसने वाले अपने,
दूर दिलों से हो जाएं....2

छोटी सी गलती गर होता
राहें सबकी  रूक  जाता।
फर्ज  अगर  चाहो  करना,
हर्ज दिल को होने लगता।
ऐसी  गलती  मत  करना,
डोर  टूटे  बंधन  की....2

प्रेम प्यार की निर्मल धारा,
दिल में सदा ही बहता रहे।
अपने दिलों से दूर हो कर
दर्द दिल को होने लगता।
ऐसी  गलती  मत  करना,
डोर  टूटे  बंधन  की....2

गुल बनना गुलजार करना,
शूल नहीं गुनहगार बनना।
काँटों की राह चलना पड़े,
विवश  कभी नहीं करना।
ऐसी  गलती  मत  करना,
डोर  टूटे  बंधन  की....2

रिश्ता  सुखमय बना रहे,
प्यार  मोहब्बत जवां रहे।
धड़कते दिल की पहचान,
जिंदादिल  सब  बना रहे।
ऐसी  गलती  मत  करना,
डोर  टूटे  बंधन  की....2

शिकवा  का  दौर  नहीं है,
अब तो सीधा  फैसला है।
गलत सही का ध्यान कहां,
जब खूद ही जज बनना है।
ऐसी  गलती  मत  करना,
डोर  टूटे  बंधन  की....2
🍁🍁
✒......धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"

पंक्तियों का भाव :-
☛जाने अंजाने में इंसान आपसी संबंधों में ऐसी हरकत या ऐसी गलती कर जाता हैं कि वह हमेशा के लिए यहाँ तक की जीवन पर्यन्त तक के लिए गलत कार्य व आचरण नासूर की तरह हो जाता है। इंसान चाह कर भी उसे ठीक नहीं कर पाता है।
☛घर परिवार से लेकर समाज तक जो भी रिश्ते नाते हैं उसके जीवन्तता का उसकी खुशियों का एक मात्र आधार प्रेम प्यार से ही है परन्तु इंसान कभी कभी अपने निज स्वार्थ में अपने चंद स्वार्थ में अपनों का उपेक्षा व अनादर कर जाते हैं जिससे आपस में वैमनुष्यता, मनमुटाव व कटुता उत्पन्न हो जाती है। 
☛ऐसा करने वाला इंसान अपने द्वारा किए गए गलत कार्य तथा उससे उत्पन्न होने वाले परिणाम के बारे में दो स्थितियों में ही नहीं सोचता; पहला अगर सोचता तो ऐसा करता नहीं और दूसरा या फिर वह उस शख्स से कोई वास्ता रखना नहीं चाहता और संभवतः वह दूरी बना रहा हो।
☛घर परिवार में किसी एक के द्वारा भी कोई गलती किसी भी प्रकार से की जाती है तो इसका प्रभाव परिवार के हर एक सदस्य पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सभी पर होता है और सभी के सामान्य व्यवहार में सामंजस्य बैठाने के बाद भी बात विचार में दुर्बलता आ जाती है यानि उनके कदम स्थिर हो जाते हैं।
☛परिवार में किसी भी सदस्य का एक गलत कदम के फलस्वरूप संबंधों की डोर कमजोर पड़ने लग जाती है रिश्ते में कितनी भी प्रगाड़ता हो अंततः टूट ही जाता है।
☛यह भी कटू सत्य है कि इंसान जब अपनों के द्वारा चोट खाता है तो सबसे ज्यादा तकलीफ व असहनीय दर्द होता है।
☛आपके साथ रहने वाला हर इंसान आपके स्वभाव से वाकिफ होता वह सदैव सामंजस्य बैठाता है; महज विश्वास व धैर्य रखने की जरूरत है।
☛हर उस संबंध को जो जन्म से जुड़ी हो उसमें खासतौर पर अत्यधिक सजग रहना चाहिए।
☛हर एक फैसला व कार्य काफी सूझबुझ से व समझदारी के साथ होनी चाहिए।
☛बात व्यवहार में सरलता रखें किसी को कुछ भी कहने सुनने का मौका न दें।
🍁🍁
✒......धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"





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