दीपक तले अंधेरा होता...
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दीपक तले अंधेरा होता,
खुद प्रदीप्त के नहीं सोचता।
बिना स्वार्थ करता उपकार,
दीपक का यह जीवन होता।
बेमिसाल कर्तव्य है उसका,
संदेश बलिदानी का उसका।
जल जाता करता जग रोशन,
देव तुल्य वंदन करें उसका।
दीपक जैसे बहुत धरती पर,
देते खुशी जीवन त्याग कर।
पर उपकारी उनका जीवन,
सेवा धर्म मकसद है अधार।
हरियाली धरती की निराली,
फल फूल शुद्ध जीवन देती।
झरना नदियाँ कुआँ तलाब,
जीवजगत के प्यास बुझाती।
त्याग के इनके कौन सोचता,
शोषण खुब इंसान करता।
बिना स्वार्थ करते उपकार,
पर उपकार में जीवन रहता।
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✒......धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"
कविता का भाव:-
☛अपना सर्वस्य जन कल्याण के निमित्त त्यागने वाला सच्चे अर्थों में अगर कोई है तो वो प्रकृति ही है। प्रकृत ने इस जीव जगत को हर कुछ उसके जीवन के लिए दिया है। इस जगत के जीव-जन्तु, पशु-पक्षी तो ठीक हैं प्रकृत के साथ हैं परन्तु जगत का श्रेष्ठ बुद्धिमान कहलाने वाला प्राणी ही लोभ लालसा में इसका अनुचित तौर पर दोहन कर रहा है। जिसका गंभीर परिणाम कोरोना त्रासदी के रूप में मानवता झेल रहा है।
☛इंसान को उपरोक्त पंक्तियों के द्वारा यही बताने का प्रयास कर रहा हूँ कि एक दीपक अनवरत अपने लौव से औरों को प्रकाशित करता है और उसकी स्वंय की गति सिर्फ नष्ट हो जाना है। जबकि उसका प्रकाश उसके स्वयं के लिए भी नहीं है। दीपका का जीवन मात्र पर उपकार के लिए ही होता।
☛हम बात करते हैं धरती पर मौजुद हर भरे पेड़ पौधों का नदियां, झरना व तलाब का जिनके जीवन का मकसद सिर्फ औरों को लाभान्वित करना इसको इस तरह से समझे तो ये सभी दाता की श्रेणी में आते हैं और जगत प्राणी याचक तब हममें और उनमें श्रेष्ठ व महान कौन? जवाब दाता। एक दाता का मान सम्मान व कद्र किसी तरह करनी चाहिए या होनी चाहिए बुद्धिमान व श्रेष्ठ मानव समाज को शायद बताने की जरूरत नहीं है।
☛कुदरत की उपरोक्त दी गई नियामत के बाद अगर प्राणी मात्र में दीपक जैसा कोई जीवन जीता है तो वो इस धरती के भगवान कहे जाने वाले देव तुल्य माता पिता होते हैं जो अपना सर्वस्य अपने संतान पर न्योछावर कर देता है।
☛परिवार, समाज व संसार की खुशहाली के लिए इंसान उनके इस मर्म ममता और उनके इस प्यार के बदले उनके संरक्षण के लिए अपने कर्तव्यों एवं दायित्वों को समझे और उसके निमित्त कार्य करें।
☛प्रकृति देव तुल्य है, देव तुल्यों का संरक्षण खूद का सुखद जीवन।
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✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)
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