वीर हनुमान लंका में...
♨♨रामदूत हैं अतुलित बलधामा।
अंजनी पुत्र पवन सुत नामा।
राम जपन करते बलवीरा,
सुमिरन करें सदा रघुवीरा।
पवन वेग उड़ लंका को जाई,
मार घूसा लंकिनी लुढ़काई।
माता सिया की खोज लगाई,
प्रभू मुंदरी देह माँ पुत्र बताई।
माँ की कृपा लेई भूख मिटावा,
उपार चोथ वाटिका उजाड़ा।
अक्षय को परलोक सिधारा,
अभिमानी की लंका जारा।
रामदूत जहं जोर दिखावा,
सियाराम के काज सवारा।
भक्त विभिषण गले लगावा,
प्रभू दर्शन संदेश देई आवा।
रावण भी जोउ भय से हाँफे,
भूत पिशाच जो थर थर काँपे।
माँ निशानी लेई वापस आना,
प्रभू चरणों में शीश नवाना।
कुशल क्षेम माँ का बतलाया,
संकट मोचक नाम कहलाया।
बाँधे सेतू प्रभू सेना पहुँचाया,
युद्ध विकराल भई जहं लंका।
लक्ष्मण मूर्क्षित भए बलवंता,
सुषेन वैध घर समेत लेई आवा।
गिरी उखाड़ संजीवनी लाया,
लक्ष्मिन जी के प्राण बचाया।
नागपाश से मुक्ति दिलावाया,
गरूणराज साथ लेई आवा।
लंका फ़तह सारथी बलवाना,
प्रभू सेवक हैं भक्त हनुमाना।
शीश नवाते तेरे चरणों में,
कष्ट निवारो हे राम हनुमंता।
♨♨
✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)
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