Pages

Sunday, 23 August 2020

कर्म प्रेम से तु करता चल....

कर्म प्रेम से तु करता चल....

~~
कर्म   प्रेम  से   तु  करता  चल,
प्रेम  की  धारा तु  बनता  चल।

अपनी सोच का अपनी समस्या,
ईलाज नहीं कोई औषध करता।

लिखा करम में जो  है विधाता,
पार  न  कोई  उनसे  है  पाता।

घटे  जो  घटना   वही  घटाता,
पागल  इंसा  सोच  कर  रोता।

समय काल  हर  एक  इंसा का,
समय से आना समय से जाना।

सच्चाई   को   जो  तुम  जानो,
मन अशांत कर  दुखी न होता।

जो  अपने  बस में  नहीं  होता,
फिर काहे खूद  को उलझाना।

कर्म  प्रेम  से   तु  करता  चल,
प्रेम  की  धारा तु  बनता चल।
~~
✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)

No comments:

Post a Comment

Please do not enter any spam link in the comment box.

ससुराल मायका बहू बेटी...

ससुराल मायका बहू बेटी... 🍁🍁   ससुराल मायका बहू बेटी! दोनों जहान आबाद करती। मायके से ट्यूशन गर लिया, दुखों का जाल बिछा लेती। जहां कभ...