~ गीत ~
♨♨
मैं राहों का फूल हूँ
शूल समझ लिए क्यों तुमने।
राह बदल कर के तुमने
क्यों काँटो पर चल दिए।
मैं राहों का फूल हूँ
शूल समझ लिए क्यों तुमने।
राहें बदल कर
काँटों पर चल कर
जख्म खूद को देकर तुम
क्यों भला मुझको तड़पाते,
क्यों काँटो पर चल दिए
जख्म खूद को देकर तुम।
मैं राह का फूल हूँ
शूल समझ लिए क्यों तुमने।
नन्ही सी थी आई जीवन में
जतन किए थे जिसका हमने
जाने क्यों भूला दिये,
तमाम लम्हें खुशी का तुम।
मैं राह का फूल हूँ
शूल समझ लिए क्यों तुमने।
कभी ऐसा न सोचा था
तमाम खुशी का वो लम्हा था।
उन लम्हों को भूला कर तुमने
बेहिसाब दर्द दे गए तुम।
मैं राह का फूल हूँ
शूल समझ लिए क्यों तुमने।
♨♨
✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)
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