दुनिया है साहब...
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यही दुनिया है साहब
जीवन तो आनी जानी है
किसी के लिए उचित तो
किसी के लिए अनुचित
कहीं दुख होता,
कहीं सुख होता।
कहीं अर्थी उठती,
कहीं डोली उठती।
कहीं गमी होती तो
कहीं सहनाई बजती।
काहे सोचे तु रे बन्धु
जीवन भी अपना ही नहीं।
कर्म की बोली ही मुँहबोली,
बाकी बड़बोली बेकार है।
कर्म करे साकार करे,
वही बहुत ही महान है।
जय हिन्द! वंदेमातरम!
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✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)
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