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दिल चाहे औरों से ज्यादा!
प्यार देना उसे नहीं आया।
दिल का हाल सुने दिलवाला!
नादान हैं वो समझ न पाया।
गलत यदि जो तुम करते हो!
सही की चाहत मत करना।
मान करोगे सम्मान मिलेगा!
बोल जो सीधी तुम रखना।
लाख बुराई जो कोई करता!
बुरा कभी न तुम करना।
अगर अकड़ में तुम रहते हो!
उम्मीद नरम की मत रखना।
अपना संस्कार हम भूल गये!
औरों में ढूंढ़े संस्कार यहाँ।
मान सम्मान का भान नहीं!
अपना हित साधे हर इंसान।
सच्चाई अच्छाई मुश्किल!
गलत फरेब आसान यहाँ।
दर्द कलम की स्याही होती!
दर्द मिलते ही चल पड़ती।
दिल चाहे औरों से ज्यादा!
प्यार देना उसे नहीं आया।
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पंक्ति का भाव :-
☛इंसान में स्वार्थ की प्रवृत्ति का अपना एक स्तर होता किसी में बहुत ज्यादा होता तो किसी में बहुत कम होता तो किसी में सामान्य होता है पर यह स्वभाव हर किसी में होता ही है। इस पर परम पूज्य कविवर तुलसीदास जी की एक चौपाई है:-
सुर नर मुनि सब कै यह रीती।
स्वारथ लागि करहिं सब प्रीती।।
☛जीवन में सुखद पहलू का मुख्य सुत्रधार हर किसी के व्यवहार का समानान्तर होने से है यानि हर किसी से संबंध सहज, समान व समान निरन्तरता से है। साधारण भाषा में यह समझलें कि संबंधों का तालमेल सहज व सहने योग्य हो। कार्य व व्यवहार का तारतम्य एक दूसरे के प्रति न तो कम हो और न तो ज्यादा ही हो बल्कि समान्य हो सहज हो, अटपटा और असहज न हो।
☛हमारे कार्य व व्यवहार कुछ इस तरह का नाप तौल से होना चाहिए कि हमारी चाहत व नाचाहत हमारी इच्छा व अनिच्छा सामने वाले पर अधिरोपित न हो बल्कि एक दूसरे का ख्याल रख कर ही करें तो संभंवतः स्वार्थीपन का अहसास ही न हो और सब कुछ सहज व समान्य ही लगे।
☛इंसान के जीवन की सबसे सरल व सटिक मंत्र परम पूज्य कविवर तुलसीदास जी की चौपाई से स्पष्ट है:-
कर्म प्रधान विश्व रचि राखा ।
जो जस करहि सो तस फल चाखा।।
अर्थात -
जब हम अच्छे कर्म करते हैं तब उसका प्रतिफल भी अच्छा मिलता है और जब हम कुछ गलत कर देते हैं तब प्रतिफल में हमें भी कष्ट मिलते हैं।
☛हमारे जीवन के सुख और दुख का सबसे बड़ा व मूल आधार हमारा आचार विचार व व्यवहार ही है।
♨♨✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)
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