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Saturday, 29 May 2021

तुझ पर क्या गीत लिखूँ.....

तुझ पर क्या गीत लिखूँ.....
🍁🍁
मन  में  अनोखे शब्द नहीं
तुझ  पर  क्या  गीत लिखूँ
   जीवन  संगिनी मेरी तुम हो
        ममता मेरे  लाडलों  की हो
             प्रेरणा मेरे जीवन  की तुम
                 खुशियाँ मेरे आंगन की हो
                     खुबियों  की  मूरत  तुम हो
                  तुझ  पर  क्या  गीत लिखूँ
मन  में  अनोखे शब्द नहीं
तुझ  पर  क्या  गीत लिखूँ
   सुख दुख तुम साथ चलती
         तुझसा कोई मित प्रीत नहीं
               वचनों  की  रीत निभा सकूँ
                  शायद  यह  सत्कर्म  करलूँ
                  अच्छी  किस्मत अपनी हो
                 तुझ  पर  क्या  गीत लिखूँ
मन  में  अनोखे शब्द नहीं
तुझ  पर  क्या  गीत लिखूँ
    बस  रब  से  इतनी आरजू
        मंजिल तक संग साथ चलूँ
             खुशियाँ आईं घर आंगन में
                 आयी जब अपने जीवन में
                  मेरी  सासें  धड़कन तुम हो
                 तुझ  पर  क्या  गीत लिखूँ
मन  में  अनोखे शब्द नहीं
तुझ  पर  क्या  गीत लिखूँ
🍁🌹🍁
✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"

आओ मिलकर गीत लिखें...

आओ मिलेकर गीत लिखें"
🍁🍁 विद्या-गीत
प्रीत  रीत  मन  मीत  लिखें।
आओ  मिलकर गीत लिखें।
    खुशियाँ सबके जीवन में हो।
           दुखी  कोई  नहीं जग में हो।
              प्रीत  की  रीत चलो निभायें।
                   सुखी जीवन अपना बनायें।
  आओ  मिलकर गीत लिखें।
    प्रीत  रीत  मन  मीत  लिखें।
आओ  मिलकर गीत लिखें।
    स्वछंद आजाद जीवन अपना।
        आदर सत्कार संस्कार अपना।
             भेद भाव मन विद्वेष ना आये।
                  डर  खौफ  जहां  से  मिटाये।
                       आओ  मिलकर गीत लिखें।
प्रीत  रीत  मन  मीत  लिखें।
आओ  मिलकर गीत लिखें।
     गम की बदरी अब ना  छाये।
         खुशहाली  की  आहट आये।
               मन  से  मन के दूरी मिटाये।
                   स्वस्थ  सुखी   जहान  बनाये।
                       आओ  मिलकर  गीत लिखें।
प्रीत  रीत  मन  मीत  लिखें।
आओ  मिलकर गीत लिखें।
🍁🍁
✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"

Friday, 28 May 2021

दोहा (हंसी के)

दोहा (हंसी के)
🍁😂
लाकडाउन  क्या भयी, खतम स्व रोजगार।
लक्ष्मी  घर  आगम नही, बढ़ा  घरेलू  भार।।

झाडू  पोछा ठीक रहे, चौका बासन बढ़ाय।
इनसे जो फुर्सत मिले, तब सिर पैर दबाय।।

परम  सुख जिसमें मिले, होत बहुत खराब।
जहाँ तहाँ खुजली करे, भूले शर्म लिहाज।।

दाद खाज और खुजली, चर्म रोग की जात।
रगड़े सुख मिले अपार, बाद गजब भभात।।

हर  बात में रूदन करे, खोपड़ी ढ़िली जान।
विचार करें धीरज धरें, काम होत आसान।।
🍁🍁
✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"

Thursday, 27 May 2021

समय गुरू होता...

समय गुरू होता...
🍁🍁
समय  गुरू  होत  बलवान,
कहे  सुने  से नहीं हो ज्ञान।
सच्चा  ज्ञान  तभी होता है,
ठोकर  पाता  जब  इंसान।

ऐसी  समझ  के  कम होते,
बातें  ज्ञान की समझ पाते।
सही और अच्छी यही बात,
ठोकर  से कामयाबी आते।

जो अड़ते  हैं अड़े रहने दो,
अपने मन की कर लेने दो।
बुद्धि  शुद्ध तभी निखरेगा,
संघर्ष का बोध तो होने दो।

लिखा नसीब में वही होता,
तदनुसार  जीवन   चलता।
जीवन के महत जानने दो,
तभी  सुखद  सुन्दर होता।

अपने  करम  करते जाओ,
उसका उस पर तुम छोड़ो।
कब  तक  पीछे पड़े रहोगे,
सोच  बेचैन  अपने  रहोगे।
🍁🍁
✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"

मुक्तक.....


मुक्तक.....
🍁🍁
कहीं  दिन तो  कहीं रात है,
कहीं गम तो कहीं बरात है।
है अंत सभी के  जीवन का, 
रखिए ना मन को उदास है।
             इंसान  राम तो रावण भी है,
             मन  आंगन  में  भाव भी है।
             सोच क्रिया कलाप भी वैसा,
             इसीलिए  सुखी दुखी भी है। 
अज्ञानता  दुख  की  जननी,
ज्ञात न हो औषध से डरती।
लत  आदत  में गटके जहर,
विश्वास सहज उसमें रहती।
             मौत अटल शाश्वत है होता,
             ज्ञान की बात याद न होता।
             मृत्युलोक का इंसान वासी,
             सुभाव  अमरता  का होता।
🍁🍁
✒.......धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"

Wednesday, 26 May 2021

सालगिरह की बधाई...

सालगिरह की बधाई...
🍁🍁 
विशाल नीति  दिन रीत सगाई।
बेटे संग  ब्याह  बहू  घर आई।।
फले फूले जीवन  की  बगिया।
सालगिरह की आशीष बधाई।।
❤❤
फूलों  से  पुलकित बगिया  हो।
आशीष यही सुखी दुनिया हो।।
प्रसन्न  चित  सदा रहे दाम्पत्य।
जहाँ   कहीं  संग   साथ  रहो।।
❤❤
अचल   रहे  अहिवात तुम्हारा।
सुखी  रहे  जीवन  हो  प्यारा।।
🍁🍁
✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"

कोरोना खिन्न मन...

कोरोना खिन्न मन.....
🍁🍁
आजिज हूँ  शिकवा गिला।
तड़पा रहे  तुझे क्या मिला।
अज़ीज़  थे प्यारे वो अपने।
प्राण छिन तुझे क्या मिला।

मन  दुखी  गम  का सिला।
तोड़  मन  तुझे क्या मिला।
है सत्य  अन्त जिन्दगी पर।
बेवक्त गए तुझे क्या मिला।

बेरहम मौत का सिलसिला।
बता  सही तुझे  क्या मिला।
अमीर मन था  वो साथ था।
निर्धन  कर तुझे क्या मिला।
🙄😯
✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"

अपना विपक्ष...

अपना विपक्ष....
🍁🍁
विपदा  में  क्या जनता प्यारी,
तुम  हो  बस  मत के  पुजारी।
लोभ लालच सत्ता शासन का,
किये  किसी को मदद दुआरी।
~~
येन  केन   सत्ता  मिल  जाये,
अपनी  झोली  बस भर जाये।
जनता  की  करते यदि मदद,
खुश होकर तुमको मत करते।
~~
जन मानस से किया न यारी,
सेवा भाव तुमको नहीं प्यारी।
सत्ता  कैसे  भी   मिल  जाये,
मन  चित साजिश में तुम्हारी।
🍁🍁
✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"

Tuesday, 25 May 2021

।।चौपाई।।

।।चौपाई।।
🍁🍁
गद्दारों  का काम बस इतना।
मतलब  के  ताक में रहना।।
राष्ट्रहित का काम न करना।
संस्कृति का नाश में रहना।।
~\~
साजिशें  दिन रात है करना।
मानवता  का  गला घोंटना।।
परिणाम  साजिशों के देखो।
कोहराम  धरती  पर  देखो।।
~\~
हे  जननी  माँ  अम्बे  जागो।
संहार  करो  चुन चुन मारो।।
अविलम्ब  गद्दारों  को तारो।
सुखी वतन किजे माँ पधारो।।
🌹🙏
✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"

Sunday, 23 May 2021

मुक्तक छंद

मुक्तक छंद
🍁🍁
माना गम की आंधियाँ हैं, जाएगी जरूर। 
गम  के बाद जिन्दगी, मुस्कुराएगी जरूर।
चिन्ता बेचैनी छोड़े, जब रब हैं अपने साथ।
अपने  हक  की  खुशियाँ, आएगी जरूर।

सांसों पर जो बस नहीं, फिकर न कीजिए।
बस में है  जो अपना काम, वही कीजिए।
चिन्ता  और दुख में, सही कुछ नहीं होता।
खुश रहें  दुख सधेंगे, नाम रब के लीजिए।

माँ  की  लेखनी  होती  नन्हा नव अंकुर।
मोहब्बत  के  खून  से माँ सींचती जरूर।
भगवान  के  स्वरूप  अबोध  बच्चे होते।
जननी  ने  जना  है क्यों न हो उसे गुरूर।

शब्द  नहीं  मैं  लिखूँ श्रेष्ठ यथेष्ठ है माता।
श्रृष्टि  का  अनमोल  दूजा  नहीं है नाता।
जगह  ले  नहीं सकता  कोई मातृत्व का।
तभी  तो  ईश्वर  भी  नतमस्तक है माता।

मंत्रोचार यज्ञ हवन धूप दीप रक्षक होती।
प्रकृति  शुद्ध करती आक्सीजन बढ़ाती।
लत  बुरी  ऐसी  आधुनिकता  की  होड़।
सनातन  संस्कृति  का  सर्वनाश  करती।
🍁🍁
✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"

Friday, 21 May 2021

अपने आंगन की गौरैया....

अपने आंगन की गौरैया....
🍁🍁
गौरैया  का घर आंगन में आना होता था।
फुर्र  फुर्र उड़ना, चहकना, जाना होता था।
रसोई के दरीचा में बना रखी थी घोसला।
परिवार साथ उसका, जमावड़ा होता था।
         प्यार  मोहब्बत  से  अपने बीच रहती थी।
         घुली  मिली  थी ऐसी तनिक न डरती थी।
         सुबह  से  लेकर शाम घर था उसका डेरा।
         एकांत  दोपहरी में बोली गुजा करती थी।
थाली  देखे  हाथ, साथ परिवार आती थी।
थाली  से भात ढ़िठाई से चुग ले जाती थी।
उसके भात चुगने पर,  मिलता था आनंद।
जबतक चुग न ले जाये स्वाद न आती थी।
          पक्ष  विपक्ष का उनमें भी  खेला होता था।
          रहती  एकजुट झमेला बाहरी से होता था।
          आक्रमण  कोई  बाहरी  यदि कर देता तो।
          फिर  युद्ध  उनके बीच विकराल होता था।
बात  थी  बचपन  की, याद अपने आ गया।
उमर  के  साथ गौरैया का, पलायन हो गया।
वैसा अब न घर कोई, दौर वैसा न लोग कोई।
पशु पक्षी का छोड़े, इंसा कतराने लग गया।
🍁🍁
✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"

Monday, 17 May 2021

माँ और सासू माँ....

                           ।।माँ और सासू माँ।।
🍁🍁
दो  दिलों का मिलन हुआ,
दो   परिवार   एक  हुआ।
माँ सासू माँ, फर्क हुआ..?
                   देवी  होती  माँ  सरस्वती,
                   अन्नपूर्णा   व  पालनहार।
                      सासू माँ ही क्यों अपाढ़.?
मातृत्व  अतुलनीय होती,
दुख दर्द संतान के हरती।
सासू माँ क्या दर्द देती..?
                   ममता अनोखी माँ की होती,
                    संतान  पर न्यौछावर करती।
                     सासू माँ क्या बेजार करती.?
जहां  की  है  माँ  अनमोल,
ईश्वर   की   होती  वरदान।
सासू माँ क्या है अभिशाप.?
                   पाल पोष कर बड़ा करती,
                    हुई शादी घर आई लुगायी।
                        सासू माँ क्यों लगती परायी.?
पढ़े  लिखे ही नहीं समझते,
माँ  सासू माँ में फर्क करते।
करते न फरक सुखी रहते।
🍁🍁
✒......धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"

Friday, 14 May 2021

प्यार ही दौलत....

🍁🍁प्यार ही दौलत....
जरुरी   यह   नहीं   होता।
मदद  दौलत से ही होता।।
दो  शब्द  प्यार  से करता।
भला सबका सही  होता।।

                   जो  रहते  सादगी  से हम।
                   रहे  हंसी  खुशी  से  हम।।
                   सही  हर  काम तब होता।
                   सुखद  राजसी  से   हम।।

जहां  में  सब  तेरा अपना।
हरेक  सपना तेरा अपना।।
तेरा संस्कार तेरा व्यवहार।
बड़ी  दौलत  तेरा अपना।।

                   समझता   है   जहाँ  अपना।
                  किये जा कर्म यहां अपना।।
                   अच्छाई  का  होता सम्मान।
                   पूरा  हर  एक  यहां सपना।।

जिन्दगी में बने  तो कर्मवीर।
सुखी जीवन तभी तो"धीर।।
🍁🍁
✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"


गुगल गुरू....

।।गुगल गुरू।।
🍁🍁 
गुरूओं का गुरू बन गया
आ  गया देखो गुगल जी।
                     गुरू महत्व भी कम किया
                     मार डाट भी खतम किया।
                     हर सवाल का जवाब देता
                     बिना  फटकारे  गुगल जी।
क्या महत्व क्या गुरू अदब
क्या  जाने   विद्यार्थी   जी।
ले   कनेठी    बोरड़ी   ऐठी
कहाँ गरू अब विद्यार्थी जी।
                    ऐसा गुल खिलाया गुगल ने
                    अशिष्ट हो रहा विद्यार्थी जी।
                    नैतिक  शिक्षा,  नीतिशास्त्र
                    खतम होते शिष्टाचारी जी।
शास्त्र  बहुतेरे ज्ञान बटोरे
ले स्लाईडर मोबाईल जी।
घरेले नुस्खे बाबा दादी के
भूल  चुका  हर  कोई जी।
                   गुगल  ही  हर  नुस्खे देता
                   याद  करें  क्यूँ  कोई  जी।
                   गुरूओं का गुरू बन गया
                   आ  गया देखो गुगल जी।
गुरूओं का गुरू बन गया
आ  गया देखो गुगल जी।
🍁🍁
.✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"

Sunday, 9 May 2021

ममता जागृत रहती....

ममता जागृत रहती....
🍁🍁
माँ की ममता  जागृत रहती,
उसके  अंश  कहीं भी होती।
उठ  उठ  कर  उसे निहारती,
नींद  में  सोया  रहे  तब भी।
                        ठंड लगती माँ व्याकुल होती,
                        लाडले  को  चादर  ओढ़ाती।
                        हर  क्षण  फिकर में माँ होती,
                        दूर  व  पास  जहाँ भी रहती।
अपने  खुशियों  के  हर  पल,
हंसी  खुशी  माँ त्याग करती।
भूला  कर  पीड़ा व दुख दर्द,
ममता  पर असर  नहीं फर्क।
                       सुख की कामना लिए माता,
                       महफूज  बलाओं  से रखती।
                       स्वस्थ  रहे सुखी रहे आबाद,
                       दुआ यही माँ का आशीर्वाद।
मामता  अगर   दुखी  होती,
किस्मत अभागे की उसकी।
                       हंसी  खुशी  माँ को रहने दो,
                       दुखी  नहीं  उसको  होने दो।
🍁🍁
✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"

मच्छर और पत्नी....

मच्छर और पत्नी....
😀
रात  मच्छर, पत्नी ने धुन छेड़ दी।
यार सुबह हो गयी मेल्हते मेल्हते।।
😲
मच्छर  दूर  हुआ फैन चालू किया।
खर्राटा पत्नी  फर्राटा  भरने लगी।।
😯
दुश्मनों  में  मेरी  रात  ऐसी  फंसी।
रात  भर  नींद  मेरी तड़पती रही।।
😢
दोनों  ही  रात  में  दुश्मनी  साधते।
रात का सुख चैन जालिम ले बीते।।
🐉
मच्छरों  का ईलाज जैसे तैसे हुआ।
खर्राटे  का  ईलाज  बताओ सही।।
😀
✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"

Saturday, 8 May 2021

आपन लरकईयां.....

आपन लरकईयां.....
🍁🍁☛..... #हृदयवंदन
जवन   आपन   जमाना  रहल
याद  आपन  लरकईयां भयल
घरवा  जब बियाह पड़त रहल
खटिया  तोसक  बर्तन भड़वा
मांग  जाच  सब  आवत रहल
मांगब जाचब शोहत भी रहल
                हंसी  खुशी  सबही  करत  रहल
                बुकनी  बोर  नाम  लिखत  रहल
                ठंण्डी  क  दिनवा  आवत  रहल
                दलाने ओसारे पुवरा पलत रहल
                बाबा दादी के संगही सुतत रहल
                कहानी किस्सा खुब सुनत रहल
उधम  चौकड़ी   मचत  रहल
बुढ़ पुरनिया खिसियात रहल
हाथ  पैना  ले  धौड़ाए  रहल
हमहने बदे तब बगईचा रहल
आती पाती चोरवा क जमल
खेलही  क  अपने  धून रहल
दूसर  कवनो  न जुनून  रहल
               पुरनक  बखतिया  निक  रहल
               मउजे  मउज  हमहने  क रहल
               कवनो   नाही   समस्या   रहल
               जवन  मिले  खा  लेवे के रहल
               खा  पी  कर  सुतही  के  रहल
               जवन   आपन   जमाना  रहल
आज  हेराई  लरकईयां गयल
बाबा दादी संग भैय्या न रहल
अब  कहानी  न किस्सा रहल
जवन जमाना अब आई गयल
खेलकूद अब  मोबाईल बनल
सब   अब  आनलाईन  भयल
🍁🍁
✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"

Friday, 7 May 2021

हम जीतेंगे...

हम जीतेंगे...
🍁🍁
जंग है  जाने का गम है,
पर जीतेंगे हममें दम है।
 मौत से  है  युद्ध लड़ना,
 दर्द  को  सहना  तब  है।

हालात  ऐसे बन गये हैं,
खौफ से सब डरे गये हैं।
मानवता  दर्द  झेल रहा,
 संवेदना  से  दूर  गये हैं।

गम  में  अब नहीं डूबेंगे,
लड़ाई  खुद की  लड़ेंगे।
 जंग है  जाने का गम है,
  हममें दम है हम जीतेंगे।
                 🍁🍁
✒......धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"

इंसान की होड़....

इंसान की होड़..!!
🍁🍁
बंदी का फैसला क्या आयी,
बाजार  में  भीड़  लग गयी।
रख  सके  राशन  जुटा कर,
सब   में   होड़   लग   गयी।
                   खौफ  मौत  सिर क्या हुयी,
                   जीने  की   होड़  मच  गयी।
                   जरूरी  जिन्दगी   के  लिए,
                   आक्सीजन  फिर लूट गयी।
धीर"  मन  अपना  सोचता,
अधीर  क्यों   इंसान  होता।
धैर्य खोता न रखता विश्वास,
आस्थावान  ऐसा  न करता।
                    🍁🍁
          ✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"

Thursday, 6 May 2021

जीवन की रीत....

जीवन की रीत.....
🍁🍁
जीवन  की यही रीत सदा,
मिलना बिछड़ना होता है।
                          सुख  के  साथ  दुख होता,
                          दुख  सोच  इंसान रोता है।
सदियाँ बिती युग बिता पर,
कार्य  नहीं कोई रूकता है।
                          देखो  चाँद  और सूरज को,
                          समय  पर  आना जाना है।
दिन  ढ़ल जाता रात होती,
एक   नया   सबेरा  होता।
                           मन शांत रखना उदास नहीं,
                           धैर्य   से    राह   बनता   है।
🍁🍁
✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"

ऐसी कोई रात नहीं....

ऐसी कोई रात नहीं..
🍁🍁
ऐसी   कोई   रात   नहीं,
जिसकी  सुबह  न हुयी।
गम की अंधेरी रात बड़ी,
उगा  सूरज तो छट गयी।

सुक्रिया मेरे मालिक की,
हर  सुबह  आँख खुली।

दिन ढ़ली फिर रात हुयी,
रात   गयी   सुबह  हुयी।
प्रकृति  का  दस्तूर  यही,
धीर   धरें   अधीर  नहीं।

बात   उसकी   भी  सही,
मौत   की   सुबह   नहीं।
जिंदगी  भी  अमर  नहीं,
पर  जीवन  खतम नहीं।

जीवन  का  दस्तूर  यही,
आया  तो जाना है सही।

जो  अपने बस का नहीं,
खामोश रहना ही भली।
करो नहीं मन को अधीर,
कह रहा आपका "धीर"।
🍁🍁
✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"




ऐसे भी हालात.....

ऐसे भी हालात.....
🍁🍁              मंजर   ऐसी  बदहाली  का।      
                       साथ  नहीं कोई किसी का।।
                       जिन्दगी की सबको पड़ी है।
                       मौत  जब  सामने खड़ी है।।
लाश धरी कोई पास नहीं है।
रिश्ते  नाते  बेजान  रही है।।
देख   इंसा  मजबूर  मरा है।
मानव  मानवता से डरा है।।
                     डर  से   बेबस  दूर  खड़ा  हैं।
                     क्यों  न  रहे  जीवन  पड़ा हैं।।
                     फर्ज अदायगी दूर से करा है।
                     हालात बदल नहीं पा रहा है।।
डगमगा  रही  जीवन नैय्या।
किस  किनारे लगे रे भैय्या।।
धीर  धरें  प्रभु शीश नवैय्या।
सबके जीवन राम खेवैय्या।।
🍁🍁
✒......धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"

Tuesday, 4 May 2021

लाकडाउन में सुरा प्रेम...

लाकडाउन में सुरा प्रेम...
🍁🍁 
सुरा सोम रस  प्रेमी आशिक,
कोविड  से  वंचित  शोषित।
उखड़  रही थी अपनी साँसें,
सुस्त   काया  धुमिल  नजरें।

सही समय से घोषणा  होता,
वर्ना घर काल कोठरी होता।
सुध   लेती  अपनी  सरकार,
दुकान खुली मदिरा की यार।

सुन  स्फूर्ति  तन  मन  आई,
नींद  उड़ी जाग रात बिताई।
भोरहरिए  पैण्ट  शर्ट  चढ़ाई,
पहुँच  गया  दुकान पर भाई।

जब  नम्बर  सौवां पर लागा,
मिलने  की संभावना जागा।
शुरूर  शुरू  जेहन में अपने,
उछल कूद धड़कन में अपने।

चाहत    अपना   रंग  लाया,
हाथ  में  जब  बोतल आया।
सरकार  का  तब  गुन गाया,
छक  कर खूब जश्न मनाया।

खतम  जश्न और घर आया,
बेगम  ने  खूब  भूत  उतारा।
झाड़ू  चप्पल  हुआ  आरती,
गाली  गुफ्ता  दे गई सारथी।

मिला सोमरस भूला भारती,
क्या हुआ थोड़ा हुआ आरती।
♨♨
✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"

ससुराल मायका बहू बेटी...

ससुराल मायका बहू बेटी... 🍁🍁   ससुराल मायका बहू बेटी! दोनों जहान आबाद करती। मायके से ट्यूशन गर लिया, दुखों का जाल बिछा लेती। जहां कभ...