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Sunday, 23 May 2021

मुक्तक छंद

मुक्तक छंद
🍁🍁
माना गम की आंधियाँ हैं, जाएगी जरूर। 
गम  के बाद जिन्दगी, मुस्कुराएगी जरूर।
चिन्ता बेचैनी छोड़े, जब रब हैं अपने साथ।
अपने  हक  की  खुशियाँ, आएगी जरूर।

सांसों पर जो बस नहीं, फिकर न कीजिए।
बस में है  जो अपना काम, वही कीजिए।
चिन्ता  और दुख में, सही कुछ नहीं होता।
खुश रहें  दुख सधेंगे, नाम रब के लीजिए।

माँ  की  लेखनी  होती  नन्हा नव अंकुर।
मोहब्बत  के  खून  से माँ सींचती जरूर।
भगवान  के  स्वरूप  अबोध  बच्चे होते।
जननी  ने  जना  है क्यों न हो उसे गुरूर।

शब्द  नहीं  मैं  लिखूँ श्रेष्ठ यथेष्ठ है माता।
श्रृष्टि  का  अनमोल  दूजा  नहीं है नाता।
जगह  ले  नहीं सकता  कोई मातृत्व का।
तभी  तो  ईश्वर  भी  नतमस्तक है माता।

मंत्रोचार यज्ञ हवन धूप दीप रक्षक होती।
प्रकृति  शुद्ध करती आक्सीजन बढ़ाती।
लत  बुरी  ऐसी  आधुनिकता  की  होड़।
सनातन  संस्कृति  का  सर्वनाश  करती।
🍁🍁
✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"

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