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Thursday, 6 May 2021

ऐसी कोई रात नहीं....

ऐसी कोई रात नहीं..
🍁🍁
ऐसी   कोई   रात   नहीं,
जिसकी  सुबह  न हुयी।
गम की अंधेरी रात बड़ी,
उगा  सूरज तो छट गयी।

सुक्रिया मेरे मालिक की,
हर  सुबह  आँख खुली।

दिन ढ़ली फिर रात हुयी,
रात   गयी   सुबह  हुयी।
प्रकृति  का  दस्तूर  यही,
धीर   धरें   अधीर  नहीं।

बात   उसकी   भी  सही,
मौत   की   सुबह   नहीं।
जिंदगी  भी  अमर  नहीं,
पर  जीवन  खतम नहीं।

जीवन  का  दस्तूर  यही,
आया  तो जाना है सही।

जो  अपने बस का नहीं,
खामोश रहना ही भली।
करो नहीं मन को अधीर,
कह रहा आपका "धीर"।
🍁🍁
✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"




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