तब बोलो झगड़ा कैसा।
जब साथ नहीं रहना है,
तब बोलो झगड़ा कैसा।
कुछ नहीं लेना देना है,
तब बोलो झगड़ा कैसा।
खुद खाना खुद पीना है,
तब बोलो झगड़ा कैसा।
अगर फिर भी झगड़ा है,
झगड़ा नहीं ये रगड़ा है।
बात बिल्कुल है पक्का,
दीमाग सनका तगड़ा है।
स्वचिन्तन व मनन से हृदय की गहराईयों से उत्पन्न शब्दों को कविता व लेख से "My Heart" के माध्यम से सत्य, सार्थक, चेतनाप्रद, शिक्षाप्रद विचारों को सहृदय आपके के समक्ष प्रस्तुत करना हमारा ध्येय है। सहृदय आभार! धन्यवाद।
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