लाकडाउन में सुरा प्रेम...
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सुरा सोम रस प्रेमी आशिक,
कोविड से वंचित शोषित।
उखड़ रही थी अपनी साँसें,
सुस्त काया धुमिल नजरें।
सही समय से घोषणा होता,
वर्ना घर काल कोठरी होता।
सुध लेती अपनी सरकार,
दुकान खुली मदिरा की यार।
सुन स्फूर्ति तन मन आई,
नींद उड़ी जाग रात बिताई।
भोरहरिए पैण्ट शर्ट चढ़ाई,
पहुँच गया दुकान पर भाई।
जब नम्बर सौवां पर लागा,
मिलने की संभावना जागा।
शुरूर शुरू जेहन में अपने,
उछल कूद धड़कन में अपने।
चाहत अपना रंग लाया,
हाथ में जब बोतल आया।
सरकार का तब गुन गाया,
छक कर खूब जश्न मनाया।
खतम जश्न और घर आया,
बेगम ने खूब भूत उतारा।
झाड़ू चप्पल हुआ आरती,
गाली गुफ्ता दे गई सारथी।
मिला सोमरस भूला भारती,
क्या हुआ थोड़ा हुआ आरती।
♨♨
✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"
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