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Saturday, 19 June 2021

आम है राजा...

आम है राजा..
🍁🍁
आम  फलों  का  होता  राजा,
अइसहीं  नहीं  सब को भाता।

गुदा   तो   होता  सबसे  जुदा,
मजा  गुठली चुसने  में आता।
~~
मुँह  में  डार  निकार  चुसाता,
गजबे  स्वाद चुसने  में आता।

स्वाद  गजबे  मजा भी गजबे,
रोज  खवाता मन न अघाता।
~~
स्वाद में शहंशाह आम राजा,
गुण से अपने कहलाता राजा।

अनोखे  स्वाद का वह स्वामी,
तभी तो सबके मन का राजा।
🍁🍁
✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"

Thursday, 17 June 2021

बरसे बदरी...

बरसे बदरी...
🌧🌧
बरसे    बदरी  भोरहरी  से,
तर भयी मौसम सबही के।

ऐसी बारिस  हो रही आज,
गोताए   सबही   घरही  में।

प्रकृति  जन  खुश हैं आज,
जीव  जगत  सबको लाभ।

चाय पकौड़ा सांझ के बेला,
स्वाद  मिले खाए के आज।

गर्मी  से  राहत  मिल  जाये,
ज्येष्ठ  जोर  लगा कर बरसे।

बाद आषाढ़ की आए बारी,
उहे  सम्हारी  खेत  कियारी।
🌧🌧
✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"

Sunday, 13 June 2021

वक्त महान....

वक्त महान....
🍁🍁
         वक्त  ही  महान  होता,
         वक्त  से  जहांन होता।
         वक्त के विरूद्ध इंसान,
         बेबस   लाचार   होता।
खुशी कभी गम होता,
दिन  रात  तम  होता।
सुख दुख  परेशानियां,
दस्तूर   विधान  होता।
         हमें  आप  यह लगता,
         गलती  इंसान  करता।
         समझ  सके हम आप,
         यही  नहीं ज्ञान होता।
वक्त अगर साथ होता,
गधा  पहलवान होता।
जिन्दगी  के  राह  का,
बंदा  शक्तिमान होता।
🍁🍁
☛...#हृदयवंदन
✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"

Saturday, 12 June 2021

मान देना....

।।मुक्तक।।  मान देना....
🍁🍁
मान  देना  सरल नहीं होता,
मन  छोटा  महसूस  करता।
मुक्त होता  जो इन सोचों से,
जीवन तभी  स्वछंद  होता।

शक  शंका  होता दुखकारी,
प्यार  मोहब्बत  तोड़े  यारी।
खुशियों  के  होते हैं नाशक,
दुख  दर्द  के  वाहक  भारी।

शक  शंका  दुखी मन वासी,
सुखी  मन  रहे  दूर  उदासी।
बुद्धि विवेक साथ जो अपने,
मधुरता ऐसी जैसे मधुमासी।

दुख अपना सबसे नहीं रोना,
दर्द  और अपनी बढ़ जाना। 
रखना नहीं उम्मीद किसी से,
मिले साथ तो आदर करना।
🍁🍁☛....#हृदयवंदन
✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"

Friday, 11 June 2021

कुछ तो रहम कर दो....

कुछ तो रहम कर दो....
🍁🙏🍁
प्रभु बड़ा तरस आता, साथ  कुछ  नहीं जाता...
कुछ  तो  रहम  कर  दो,
कमाई साथ ले जाने दो।
लुटे माल साथ ले जाता,
डीजिटल  ही करवा दो।
कुछ  तो  रहम  कर  दो!
प्रभु बड़ा तरस आता, साथ कुछ नहीं जाता...
ईमान  धरम त्याग देता,
इंसान क्या नहीं करता।
चोरी  चमारी  लुट  पाट,
जलालत  झेल   जाता।
कुछ  तो  रहम  कर  दो!
प्रभु बड़ा तरस आता, साथ कुछ नहीं जाता...
बेइमान  मक्कार  बनता,
गद्दारी  तक  कर जाता।
छल  कपट  झूठ  फरेब,
सब  अपने लिए करता।
कुछ  तो  रहम  कर  दो!
प्रभु बड़ा तरस आता, साथ कुछ नहीं जाता...
जिन्दगी   भर   जुझता,
पर  हासिल क्या होता।
होता तो काल का ग्रास,
अपने साथ क्या जाता।
कुछ  तो  रहम  कर  दो!
प्रभु बड़ा तरस आता, साथ कुछ नहीं जाता...
🍁🍁
✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"

Thursday, 10 June 2021

सशक्त नेतृत्व...

विधा:- "हाइकु" (कविता)
शीर्षक:- सशक्त नेतृत्व....
🍁🍁
दौर देश का
दिशा विहीन ना हो
ध्यान में रहे।

राजनीति से
रखना होगा वास्ता
संकल्प तो लें।

चाहिए हमें
सशक्त नेतृत्व तो
विचार करें।

गलत ना हो
जाॅच परख कर 
चुनाव करें।

अधिकार है
सशक्त चुनने का
व्यर्थ ना जाए।

हरेक मत
महत्वपूर्ण होता
लोकतंत्र का।

श्रेष्ठ देश का
निष्पक्ष नेतृत्व हो
मजबूत हो।

विश्व गुरू हो
स्वस्थ सुखी देश हो
विचार करें।
🍁🍁
✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"

Tuesday, 8 June 2021

मदद....

मदद....
🍁🍁
जिस से   ईश्वर  चाहेगा,
मदद  वही कर पाएगा।
लाख  होंगे चाहने वाले,
कोई  कर  नहीं पाएगा।

            जिसका नहीं कोई होता,
            सोचो जरा कौन करता।
            करता है पालन  सबका,
            इंसा  रूप में रब करता।

काम  सबका  सब होता,
समय  चक्र  पूरा करता।
चिन्ता  छोड़ें  कैसे होगा,
रब ने भी  सोचा रखता।

            कौन  कहता  ईश्वर  नहीं,
            हममें तुम में सब में वही।
            वही सभी को संभाला है,
            नादान  मन  देखता नहीं।
🍁🍁
✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"

Saturday, 5 June 2021

पर्यावरण दिवस की बधाई...

पर्यावरण दिवस की बधाई....
🍁🍁
पर्यावरण  सुसज्जित रहे अपना,
महत्व  देखो  समझाया कोरोना।
आक्सीजन  को  जन जन तरसा,
अब तो तनिक योगदान करो ना।

खुशहाल जहां हरियाली लगाओ,
सेवा  कर  रहें  जो  मान बढ़ाओ।
चाहते  अगर सुखी स्वस्थ जीवन,
हरा  भरा  जीवन  तो  अपनाओ।

आज नन्हा पौधा  कल सुख देगा,
जो  सेवा और  विश्वास से करेगा।
फलता  फूलता  अपनी हो धरती,
तभी  तो  मजबूत  समाज बनेगा।

पर्यावरण  पर  अधिकार  बराबर,
करते  सहयोग  योगदान बराबर।
प्रकृति  अपनी  खुद  ही  सींचती,
चाहिए आदर और  प्यार बराबर।
🍁🍁
✒......धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"

Friday, 4 June 2021

कर्म मन और जज...

कर्म मन और जज...
🍁🍁
मन ही तो सच्चा  आइना  होता,
इससे  सच्चा हो सकता है क्या।

कर्मों   का   मन   आइना   होता,
मन से कोई  बच सकता है क्या।

गुनाह   दुनिया  से  छुपा  सकता,
मन से कोई छुपा सकता है क्या।

भेद  अच्छाई  बुराई  का  करता,
भेद  इंसा समझ सकता है क्या।

कर्मों  का  मन   विवेचक  होता,
विवेचना  से बच सकता है क्या।

मन  की  अदालत  बड़ी है होती,
अपील कोई कर सकता है क्या।

सजा  भी ऐसा घुट घुट के मरता,
घुटन से खुद बच सकता है क्या।

विवेचक  मन  तो जज भी होता,
निर्णय कोई टाल सकता है क्या।
🍁🍁
✒...धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"

परिस्थिति जनित हत्या....

परिस्थिति जन्य हत्या....

🍁🍁 (लेख)

"आत्महत्या परिस्थिति जनित हत्या है"

~~

☛किसी को जान से मार कर समाप्त कर देना हत्या कहलाता है परन्तू कुछ मृत्यु ऐसी परिस्थिति जन्य होती है जो हत्या समझ में नहीं आता, जबकि उसे जघन्य हत्या की श्रेणी में होना चाहिए।

☛ऐसी हत्या का सृजन अमूमन निकट संबंधों के बीच में जहाँ इंसान का ज्यादा लगाव होता है जो आपसी परिवारिक कलह से या फिर परिवार के किसी दीगर व्यक्ति द्वारा झूठे व गलत आरोप किसी के मान, सम्मान, ईज्जत व मर्यादा के खिलाफ गढ़ दिये जाने से होता है। 

☛वैसे तो हर व्यक्ति स्वाभिमानी होता है चाहे वह शारीरिक व आर्थिक रूप से कमजोर हो या ताकतवर हो। मान, सम्मान, ईज्जत व मर्यादा इंसान का स्वभाविक गुण होता है जिसका हनन इंसान को उद्वेलित व विचलित करता है। 

☛जब किसी दीगर व्यक्ति द्वारा ऐसी बात या ऐसे कार्य उस व्यक्ति के मान, सम्मान, ईज्जत और मर्यादा के खिलाफ कहा व किया जाता है या फिर कोई ऐसी गहरी चोट जो उसके मान, सम्मान, मर्यादा व ईज्जत पर आघात करता है तब व्यक्ति अपने दुख वेदना को अपने बदनामी व ईज्जत के निलाम होने से बचाने का असहज प्रयास करने लगता है। अपनी दुख और वेदना को किसी से कहने से डरने लगता है परिणामस्वरूप वह व्यक्ति अंदर ही अंदर घुट घुट कर जीने के लिए विवश हो जाता है। मान, सम्मान, ईज्जत व मर्यादा का हनन व निलाम होने के डर की वजह से अपने दुख को किसी से साझा नहीं कर पाता है। फलस्वरूप अन्त:मन में उपजा घृणा व नफरत उग्र रूप धारण करने लग जाता तत्पश्चात वह व्यक्ति धीरे धीरे असहज व विक्षिप्त रहने लग जाता है। 

☛ऐसे व्यक्तियों का एकांतवास अत्यंत ही कष्टप्रद व दुखों से भरा होता है। घटित घृणित घटनाएं उसको बेचैन करती हैं उसके चैन व सुकून की धज्जियाँ उड़ा देती है। यदि समय रहते इसका निदान नहीं हो पाए तो ऐसे व्यक्ति का जीवन उसके लिए बोझ लगने लगता। जिसका परिणाम हमेशा दुखदायी ही होता है। 

☛परिणामत: ऐसा इंसान अपनी व्यस्तता की अवधि में तो अपने साथ उक्त घटित घटना को भूला रहता है पर जैसे ही वह एकांतवास में होता है रहता है जैसे- घर में रात में बिस्तर पर या फिर बाथरूम में या फिर अपने यात्रा के दरमयान में अकेला हो तब इस प्रकार की घटना तथा घटना कारित करने वाले के प्रति घृणा व नफरत उसको प्रतिषोध की ज्वाला में इस कदर धकेलता है कि वह व्यक्ति उस क्षण बिलकुल संज्ञा शून्य हो जाता है और उसे अपने स्थितियों का आभास नहीं होता है कि वह कहाँ है और क्या कर रहा है और क्या करने जा रहा है फिर अनहोनी होना सहज व स्वभाविक हो जाता है और ऐसा व्यक्ति घटना दुर्घटना का शिकार भी हो जाता है। 

☛अधिकांशतः यह देखा भी जाता है कि आते जाते सड़क पर कोई किसी दुर्घटना का शिकार हो जाता है या फिर बाथरूम में आत्यधिक घृणा क्रोध व नफरत में ब्रेन हैमरेज या हृदयघात हो जाता है और कभी कभी इंसान घृणा के वशीभूत होकर घृणित निक्रिष्टतम कार्य यानि आत्महत्या भी कारित कर लेता है। 

☛हमको आपको यह घटना स्वभाविक प्रतित होता है कभी कोई इस तरह की घटना की गंभीरता को जानने की कोशिश भी नहीं करता पर यदि विश्लेषण करेंगे तो पाएंगे इसके पीछे जरूर उपरोक्त कोई परिस्थिति व कारण है। एक तरह से देखा जाय तो यह जघन्य हत्या की प्रकृति है। 

☛समाज में अगर इस तरह की मानसिकता है जो अपने चंद स्वार्थ में इस तरह का ठेस जाने अंजाने में दे रहा हैं ऐसे निक्रिष्ट दुरात्मा निर्बुद्धि इंसान का समाजिक बहिष्कार होना चाहिए। ऐसा व्यक्ति कानून की जद में तो नहीं आ पाता हैं परन्तु ईश्वर ऐसे निक्रिष्ट शख्स को कभी माफ नहीं करेगा।....

🍁🍁#हृदयवंदन 

✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"

Wednesday, 2 June 2021

दूरी कर लो....

दूरी कर लो....
🍁🍁
चुभने  लगे  जब कोई  किसी को,
लड़ने  से  अच्छा  है दूरी कर लो।
वैसे  भी कहर  कोरोना  है  जारी,
मास्क  लगा दो गज दूरी कर लो।
लड़ने  से  अच्छा  है दूरी कर लो।

चुभने  लगे  जब कोई  किसी को,
लड़ने  से  अच्छा  है दूरी कर लो।

तकरार  रार  से  कुछ  ना मिलेगा,
सुख  चैन खुशी अपनी ही हरेगा।
कहता  मन  धीर मन की सुन लो,
रब  से  शिकायत  हो  रब सुनेगा।
लड़ने  से  अच्छा  है दूरी कर लो।

चुभने  लगे  जब कोई  किसी को,
लड़ने  से  अच्छा  है दूरी कर लो।

समय बलवान थोड़ा सब्र कर लो,
विश्वास  अपने  रब  पर  कर लो।
देगा जवाब मुँह की खाना पड़ेगा,
धीरज  धरो  चित  शान्त कर लो।
लड़ने  से  अच्छा  है दूरी कर लो।

चुभने  लगे  जब कोई  किसी को,
लड़ने  से  अच्छा  है दूरी कर लो।
🍁🍁
✒......धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"

Tuesday, 1 June 2021

अपनी फितरत....

🍁🍁अपनी फितरत....
मुक्तक
देश  आत्म निर्भर होने लगा,
     भ्रष्टाचारियों को चुभने लगा।
            मची खलबली जब गद्दारों में,
                 साजिशे  तमाम  गढ़ने लगा।

बयां हालात यही कर रहा है,
      देश बेकसूर जंग लड़ रहा है।
           एकजुटता अपनी है जरूरी,
                 वक्त दुबारा मिलने से रहा है।

परिकल्पना  जब रूप गढ़ता,
      सहज नहीं मुश्किल है होता।
           फेर  बदल सहज कर उसमें,
                हर  कोई  विद्वान बन जाता।

आदत खुब इंसान की होती,
       काम  हो  जाये सलाह देती।
            फितरत इंसानी बड़ी जटिल,
                  समीक्षा तन्मयता से करती।
🍁🍁
✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"



ससुराल मायका बहू बेटी...

ससुराल मायका बहू बेटी... 🍁🍁   ससुराल मायका बहू बेटी! दोनों जहान आबाद करती। मायके से ट्यूशन गर लिया, दुखों का जाल बिछा लेती। जहां कभ...