🍁🍁अपनी फितरत....
मुक्तक
देश आत्म निर्भर होने लगा,
भ्रष्टाचारियों को चुभने लगा।
मची खलबली जब गद्दारों में,
साजिशे तमाम गढ़ने लगा।
बयां हालात यही कर रहा है,
देश बेकसूर जंग लड़ रहा है।
एकजुटता अपनी है जरूरी,
वक्त दुबारा मिलने से रहा है।
परिकल्पना जब रूप गढ़ता,
सहज नहीं मुश्किल है होता।
फेर बदल सहज कर उसमें,
हर कोई विद्वान बन जाता।
आदत खुब इंसान की होती,
काम हो जाये सलाह देती।
फितरत इंसानी बड़ी जटिल,
समीक्षा तन्मयता से करती।
🍁🍁
✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"
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