Pages

Friday, 4 June 2021

कर्म मन और जज...

कर्म मन और जज...
🍁🍁
मन ही तो सच्चा  आइना  होता,
इससे  सच्चा हो सकता है क्या।

कर्मों   का   मन   आइना   होता,
मन से कोई  बच सकता है क्या।

गुनाह   दुनिया  से  छुपा  सकता,
मन से कोई छुपा सकता है क्या।

भेद  अच्छाई  बुराई  का  करता,
भेद  इंसा समझ सकता है क्या।

कर्मों  का  मन   विवेचक  होता,
विवेचना  से बच सकता है क्या।

मन  की  अदालत  बड़ी है होती,
अपील कोई कर सकता है क्या।

सजा  भी ऐसा घुट घुट के मरता,
घुटन से खुद बच सकता है क्या।

विवेचक  मन  तो जज भी होता,
निर्णय कोई टाल सकता है क्या।
🍁🍁
✒...धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"

No comments:

Post a Comment

Please do not enter any spam link in the comment box.

ससुराल मायका बहू बेटी...

ससुराल मायका बहू बेटी... 🍁🍁   ससुराल मायका बहू बेटी! दोनों जहान आबाद करती। मायके से ट्यूशन गर लिया, दुखों का जाल बिछा लेती। जहां कभ...