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Wednesday, 30 September 2020

पप्पू जी की शादी....


पप्पू जी की शादी.... 

🍁🍁

शादी कर लो पप्पू जी,
करोना  भाग  जाएगी।
अध्यक्ष  बने भाभी तो,
किस्मत बदल जाएगी।

पत्नी  जल्दी  आएगी,
जिद्दी कोरोना जाएगी।
किस्मत तभी देश का,
भिया   बदल  जाएगी।

खुशी  देश में आएगी,
शहनाई  बज जाएगी।
कहते    बुढ़  पूरनियां,
भाग्य   खुल  जाएगी।

अंटी कब समझाएंगी,
शादी  कब  कराएंगी।
प्राण नाशनी कोरोना,
शादी देख के जाएगी।

भाभी  देश में आएंगी,
कोरोना चली जाएगी।
शादी कर लो पप्पू जी,
पार्टी   संवर  जाएगी।
🍁👀🍁
✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"


Sunday, 27 September 2020

अरज मृत्यु देव से.....


अरज मृत्यु देव से.....
🍁🍁 
हे मृत्यु राज तुम अरज सूनो;
जग  की  पीड़ा  सहज करो।
आप  करो  तुम अपने काज;
कोरोना एजेंट नहीं हाथ करो।

क्या पीएम मोदी तुम हो गये;
निजीकरण  पर  बल  दे रहे।
नीति  अपनाते  भीम जी की, 
आरक्षण   से   नम्बर   आते।

कोरोना  दुष्ट  प्राण  नाशिनी;
एजेण्ट  बनती  देव आपकी।
सनकी  हुई आयी  धरती पर;
दुखी  मानवता  को  कर दी।

दर्द एजेन्ट के  कुशासन की;
तेरा   ही   सुशासन   अच्छी।
जिनकी स्वभाविक थी मौत;
प्राण  हर  छवि  नष्ट कर दी।

दुखी  जलील  वह घर होता;
इसके  कारण जो भी मरता।
लिखती जा रही अपना नाम;
इंसान  के  सांसों पर तमाम।

पीड़ा  खौफ  हर मन में राम;
निरस्त करो देव उसके काम।
आराम से मानवता  रहने दो,
कोरोना  का खतम हो काम।
🍁🍁☛.... #हृदयवंदन
✒......धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"

Saturday, 26 September 2020

बचपन की यादें....

बचपन की यादें....
🍁🍁
बचपन  की   हरेक  यादें
बहुत  अच्छी   होती  थी
धूल   से   सनी  जिन्दगी
बड़ी   सच्ची   होती  थी
क्या दौर क्या जीवन था
अजादी थी अजाद रहा।
                  दुलारे    बाबा   दादी   के
                  माता पिता के धड़कन थे
                  चाचा  चाची   के  लाडले
                  नाना नानी के शरारती थे
                  मिलजुल  संग साथ रहते
                  जीवन सुखमय अपने थे।
दिन बचपन अच्छा था
प्यारा  बहुत  सच्चा था
सुन्दर  वो   संसार  था।
माता पिता, बाबा दादी
चाचा चाची, भाई बहन
संग  सुखी परिवार था।
                 मारपिट  लड़ाई   झगड़ा
                 गुत्थम  गुत्था  होता  था
                 शाम होते भूल जाता था
                 संग  सभी  सो जाता था
                 एक  दूसरे के साथ बिना
                 रह  भी  नहीं  पाता  था।
खाने  पीने के सामान में
जब  हेरा फेरी होता था।
मेरा  कम है  तेरा ज्यादा
बहस  जुबानी  होता था
माँ डांटे  चाहे डाटे बाबा
दिल पर नहीं लगता था।
                क्या  दौर क्या जीवन था
                अजादी  थी अजाद रहा।
                आंगन आंगन घूमा करते
                खुशियां  सब  बाट आते।
सपना  अपना दौर हुआ
आज बचपन डरा हुआ।
                बचपन  की   हरेक  यादें
                बहुत  अच्छी   होती  थी।
🍁🍁
✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"

Friday, 25 September 2020

मुस्कान की पहचान....

मुस्कान की पहचान....
🍁🍁
चलो हम मुस्कान से
पहचान करते हैं.....

इसकी आगाज को
आज आम करते हैं।
मुश्किल जिन्दगी को
अपनी आसान करते हैं।

चलो हम मुस्कान से
पहचान करते हैं.....

शूल कोई न हो राह में
सफर खुशगवार करते हैं।
मंजिले कामयाब हो
मुस्कान साथ रखते हैं।

चलो हम मुस्कान से
पहचान करते हैं.....

क्रोध की ज्वाला को,
पल में शीतल करते हैं।
दुख के कारण को,
जिन्दगी से दूर करते हैं।

चलो हम मुस्कान से
पहचान करते हैं.....
🍁🍁
✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)








Wednesday, 23 September 2020

विरोध निजीकरण का....

विरोध निजीकरण का....
🍁🍁
इंसान  की  आदत  यही  होए,
चाहे जियादा बिन काम किए।

निजी   न   हो    विरोध   करे,
कर्तव्य निभाए  तो काहे होए।

जिस घर के नालायक हों बेटे,
खण्डहर  होते  देर  न  लगते।

अपनी  शिक्षा और चिकित्सा,
नहीं आपनाता  सरकारी का।

नौकरी   ही   सरकारी  भाता,
निजी शोषण सोच डर जाता।

सरकारी तंत्र  पिता  के जैसा, 
निट्ठल्लों  का भी  पेट भरता।

आराम  व  सुविधा  का मारा, 
काम करे  फिर  क्यों बेचारा।

सरकारी  है अराम  का  अड्डा,
लूट  खसोट  में  लगा है  बंदा।
🍁🍁
✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)

Tuesday, 22 September 2020

कोरोना से परहेज....


कोरोना से परहेज....
🍁🍁
परहेज करतबा घरही में सब,
बाहर   नाहीं   कोरोना   हव।

लुगाई हव कोरोना कऽ नानी,
गृह  प्रवेश में  कच्चाईन हव।

बहरे  खड़े ही नहवाईब  हव,
नरखा  तुरंत कचरवाईब हव।

जर जाए नटई काढ़ा पियाई,
कवनो  नाही   सुनवाई  हव।

प्यार हव ओकर डरत रहेला,
बहरे  से  अदमी आईल हव।

सुकून  मिले जवने से ओके,
काहे  जीव  झौउवाईल हव।
😀👹
✒.......धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)

Sunday, 20 September 2020

कद से ही मान...

कद का मान...
🍁🍁
शब्दों  का सम्मान कहाँ,
कद  से ही है मान यहाँ।

ख़ामोशी  वहीं पर रहती,
रहते   हैं  विद्वान  जहाँ।

छोटा बड़ा का भेद भाव,
मन  से नहीं जाने वाला।

विद्वता  में  ऐसा  क्यों  है,
परे समझ से बिलकुल है।

शाश्वत सत्य यह होता है,
दीपक तले अंधेरा होता।
🍁🍁
✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)





Friday, 18 September 2020

जालिम मनोदशा...

जालिम मनोदशा...
🍁🍁
जालिम  है  मनोदशा,
तुच्छ व निकृष्ट होता।

हमसे  पूछा  न गया,
हमसे कहा  न गया।

यही दो वजह हुआ,
बे वजह  दूर  हुआ।

तुम अगर  पूछ लेता,
मौका न दिया होता।

तनहा होता तो नहीं,
साथ रहता तो सही।

दूर  रह  जलता  रहा,
दुखी मन राख हुआ।

अकड़ ये  कैसी होती,
मन में ही बसी होती।

बुरा तो वो बोल देता,
अच्छाई पे चुप रहता।

जालिम  है  मनोदशा,
तुच्छ व निकृष्ट होता।
🍁🍁
✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)

Thursday, 17 September 2020

युवा सपूतों....

युवा सपूतों....

🍁🍁
उठो  धरा  के युवा सपूतों,
नव युग नव निर्माण करो।

लूट  खसोट चोरी चकारी,
अपने  को  आजाद करो।

अपने अवसादों को छोड़ो,
बने सुखद जग कार्य करो।

गुलामी  की जंजीरें है सब,
इससे मोह को त्याग करो।

अपने  हद  को  पहचानो,
सुन्दर जग व्यवहार करो।

मान  सम्मान और प्रतिष्ठा,
खुद  से  नहीं बेकार करो।

हद  में  रह कर कार्य करो,
नव युग नव निर्माण करो।

विश्व  गुरू सपना देश का,
नव युग नव निर्माण करो।

उठो  धरा  के युवा सपूतों,
नव युग नव निर्माण करो।
🍁🍁
✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"

Wednesday, 16 September 2020

जीवन की रीत....

जीवन की रीत....
🍁🍁
जीवन की यही  रीत सदा,
मिलना बिछड़ना होता है।

राहें और  बहुत जीवन में,
बस सोच के इंसा रोता है।

चाहे कुछ हो जाए है यहाँ,
कार्य कोई नहीं रूकता है।

देखो  चाँद और  तारों  को,
समयपे आके ढ़ल जाते हैं।

दिन ढ़लता है रात होती है,
फिर  नया सबेरा आता है।

मन शांत रहे  उदास न हो,
रीत की प्रीत समझता हो।

जीवन की यही  रीत सदा,
मिलना बिछड़ना होता है।
🍁🍁
✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)

Sunday, 13 September 2020

ग़ज़ल

ग़ज़ल
🍁🍁
जिस  बात  पर  विश्वास न हो।
जोर देने से फिर  क्या फायदा।।

तोड़  कर  दिल  तुम  बैठे  हो।
जोड़ने  से  मेरे  क्या  फायदा।।

कायदा जीवन का सही न हो।
असूल बनाने से क्या फायदा।।

ता  उम्र  ताल्लुक कोई  न हो।
बेचैन  होने  से  क्या  फायदा।।

जिस  बात  पर  विश्वास न हो।
जोर देने से फिर  क्या फायदा।।
🍁🍁
✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)

Saturday, 12 September 2020

दिल और आईना....

दिल और आईना....

🍁🍁
दिल  और आईना मेरा,
मस्त  खुश  करीब  था।

बिम्ब व प्रतिबिम्ब जैसे,
एक  दूसरे  के  सामने।

हंसी  खुशी  में  रहते थे,
कभी दूर  न  तनहा रहे।

एक  दूजे  को निहारते,
खुशी  से  दिन  काटते।

प्यार की हर एक बातें,
प्यार  से   हम  बाटते।

प्यार   में  दगा  मिला,
असर इस कदर हुआ।

गम  का  धूल  पड़ गई,
खुशियां धुंधली हो गई।

खामोश दिल व आईना,
तनहा   मेरा   हो  गया।

हो  गए  अजनबी दोनों,
दिल  और आईना मेरा।

दिल  और आईना मेरा,
मस्त  खुश  करीब  था।
🍁🍁

✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)


Thursday, 10 September 2020

विवश है जन्मदाता.....

विवश है जन्मदाता.....

🍁🍁
जिन्दगी बिच्छू प्रजाति,
हो   रहा   इंसान   का।
चूसते  हैं   खून   अपने,
अपने  ही  माँ बाप का।

राह जिनके खुशियाँ हो,
वो   पसीना   बहा  रहे।
छाया  दुख की  ना  हो,
आशिया  वो  बना  रहे।

कर  रहें   हैं   दादागिरी,
अपने  ही  माँ  बाप से।
प्यार में  विवशता ऐसी,
खामोश  हैं नादान  से।

कैसे  कैसे  जुर्म  करता,
अपने  ही  माँ  बाप  से।
झेलते   हैं   जुर्म   सारे,
विवश होके नादान का।

चोट दिल को  दे रहा है,
मोह   की   ये   बेड़ियां।
बन   रहा  है  बाप  बेटा,
अपने  ही  माँ  बाप का।
🍁🍁
✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)




  

Wednesday, 9 September 2020

वंदना श्री गणेश ....

वंदना श्री गणेश ....

🍁🍁
जय श्री गणेशम् 
नमो नम: गणपति।
विघ्न विनाशक
भालचन्द्र कृपानिधी।

जय श्री गणेशम् 
नमो नम: भुवनपति।
बुद्धिनाथ गौरीसुत
लम्बोदर महापति।

जय श्री गणेशम्
नमो नम: मंगलमूर्ति
गजवक्र गजानन एकदंत
गजकर्ण विद्यावारिधि ।

जय श्री गणेशम् 
नमो नम: भूपति।
सिद्धिदाता सिद्धिविनायक
वक्रतुण्ड देवमहापति।

जय श्री गणेशम् 
नमो नम: गणपति।
🍁🍁
✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)

Tuesday, 8 September 2020

एक तेरा सहारा मिले...

एक तेरा सहारा मिले...

🍁🍁
मंजिले  कामयाबी की हो,
प्यार से  राह बनाके चलें।
आरजू   यही   दाता  मेरी,
एक तेरा  सहारा  मिले...

जरूरत  है सब की यही,
मन मित कृपानिधान हो।
सुख में हो या दुख में हो,
एक  तेरा सहारा  मिले...

खुशियाँ होंगी घर  बाहर,
मित  सिद्ध  महान  हो।
मुश्किलें हो मेरी आसान,
एक तेरा  सहारा  मिले..

जब  फंसे मझदार जीवन,
पार   जीवन   को   करे।
राहें  खुशियाँ की हो मेरी,
एक तेरा  सहारा  मिले...

कोई  गम  जहाँ में न हो,
नफरतों में  हम न जीए। 
जहाँ  में  अपना नाम हो,
एक तेरा  सहारा  मिले...
🍁🍁
✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)










Sunday, 6 September 2020

ससुराल मायका बहू बेटी,

🍁🍁
ससुराल मायका बहू  बेटी,
दोनों जहाँ  आबाद करती।

बेटी ट्यूशन मायके से लेती,
ससुराली दुश्मन बना लेती।

घर में ही बेटा पराया होता,
रौनक  ख़ामोश  हो जाता।

आए  नजर  अपने  दुश्मन,
दुश्मन  सरीखा भाव होता।

ससुराल मायका बहू बेटी...

जो अपने संग खुश रहते थे,
सबके  सब  अब दुख में हैं।

माँ  को  सब  सह  जाते  हैं,
सासू माँ को सह नहीं पाते।

जिसने भी  विरोध  किया है,
अदालत तक पहुँच जाता है।

जिसे मतलब फेरों का न हो,
तलाक की  डिग्री  ले आता।

संस्कार समझदारी के  होते,
ससुराल मायका सुखी होते।
🍁🍁
✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)

Saturday, 5 September 2020

सब सबके नसीब नहीं...

सब सबके नसीब नहीं...

🍁🍁 

दस्तूर जीवन का  है  यही, सब सबके  नसीब है नहीं...

प्रेम प्यार  से  खुशियाँ है,

घृणा द्वेष से सुकून नहीं।

जहां हो जैसे  खुश रहिए,

कल का कोई सगून नहीं।

दस्तूर  जीवन का है यही, सब सबके नसीब है नहीं...

आज खुशी से जी लेते हैं,

कल का आज पता नहीं।

हरक्षण हरदम खुश रहिए,

दुखद  जिंदगी खता नहीं।

दस्तूर जीवन का  है  यही, सब सबके नसीब है नहीं...

सोच  भविष्य चिन्तित हैं,

अगले क्षण का पता नहीं।

अपने अभिमान  में  रहते,

औरों के सम्मान पता नहीं।

दस्तूर जीवन का  है  यही, सब सबके नसीब है नहीं...

लूट खसोट में जीवन जीते,

मानवता  का   ज्ञान  नहीं।

खुद जल कर रोशन करते,

उनका करते सम्मान नहीं।

दस्तूर  जीवन का  है  यही, सब  सबके  नसीब है नहीं...

🍁🍁 

✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"

ससुराल मायका बहू बेटी...

ससुराल मायका बहू बेटी... 🍁🍁   ससुराल मायका बहू बेटी! दोनों जहान आबाद करती। मायके से ट्यूशन गर लिया, दुखों का जाल बिछा लेती। जहां कभ...