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Friday, 18 September 2020

जालिम मनोदशा...

जालिम मनोदशा...
🍁🍁
जालिम  है  मनोदशा,
तुच्छ व निकृष्ट होता।

हमसे  पूछा  न गया,
हमसे कहा  न गया।

यही दो वजह हुआ,
बे वजह  दूर  हुआ।

तुम अगर  पूछ लेता,
मौका न दिया होता।

तनहा होता तो नहीं,
साथ रहता तो सही।

दूर  रह  जलता  रहा,
दुखी मन राख हुआ।

अकड़ ये  कैसी होती,
मन में ही बसी होती।

बुरा तो वो बोल देता,
अच्छाई पे चुप रहता।

जालिम  है  मनोदशा,
तुच्छ व निकृष्ट होता।
🍁🍁
✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)

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