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Wednesday, 23 September 2020

विरोध निजीकरण का....

विरोध निजीकरण का....
🍁🍁
इंसान  की  आदत  यही  होए,
चाहे जियादा बिन काम किए।

निजी   न   हो    विरोध   करे,
कर्तव्य निभाए  तो काहे होए।

जिस घर के नालायक हों बेटे,
खण्डहर  होते  देर  न  लगते।

अपनी  शिक्षा और चिकित्सा,
नहीं आपनाता  सरकारी का।

नौकरी   ही   सरकारी  भाता,
निजी शोषण सोच डर जाता।

सरकारी तंत्र  पिता  के जैसा, 
निट्ठल्लों  का भी  पेट भरता।

आराम  व  सुविधा  का मारा, 
काम करे  फिर  क्यों बेचारा।

सरकारी  है अराम  का  अड्डा,
लूट  खसोट  में  लगा है  बंदा।
🍁🍁
✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)

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