।।काहे जियरा छोटा।।
<👀>
जीवन एक रैन बसेरा है!
न कुछ तेरा न कुछ मेरा है!
फिर काहे जियरऽ छोटा ?
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खाली हाथ हम आएं हैं!
खाली ही हमको जाना है!
फिर काहे जियरऽ छोटा ?
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रूपया पैसा साथ न जाई!
धरम करम ही साथ निभाई!
फिर काहे जियरऽ छोटा ?
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रामायण बाचे गीता बाचे!
मंदिर रोज भोरहरिया जाके!
फिर काहे जियरऽ छोटा ?
~~
मनवा बा पापी रे भाई!
एकर कुच्छो होए न पाई!
फिर तब्बे जियरऽ छोटा।
~~
जीवन मरण में बिते जाई!
बीचे में कुछ होई न पाई!
राम दुहाई राम दुहाई।
~~
कविता का भाव:-
☆☆इस संसार में जीतने भी जीवात्मा हैं सबको एक समय पर प्रकृति में विलीन हो जाना है। मतलब जो संसार में आया है उसे संसार से एक दिन जाना ही है। आने और जाने के अन्तराल में नियंता द्वारा प्रदत्त अपने दायित्वों व कर्तव्यों का निर्वहन रंगमंच के अदाकार की तरह अपनी अपनी अदाकारी करना है।
☆☆मानव जीवन एक रैन बसेरा है संसार में ईश्वर की मर्जी से आता है ठहरता है और उससे उसके कर्तव्यों का निर्वहन कराता और समय पर वापस बुला लेता।
☆☆इस प्रकार न जिन्दगी अपनी और न कर्तव्य व दायित्व अपना है जिसके बावजूद इस तरह से माया में जकड़े रहता और उसी के वशीभूत होकर अपना सुख चैन नष्ट कर दे रहा हैं।
☆☆संसार में इंसान का कुदरती वस्त्र में आना और जब जाना तो भी पंचतत्व में विलीन हो जाना फिर इस बीच की अवधि में क्या कुछ नहीं करता? धन दौलत की चाहत होनी चाहिए जरूरी है पर कितनी इसका मानक सेट नही कर पाता लालच और लालसा में हित व अनहित को भूला देता और हमेशा व्याकूल व अधिर रहता।
☆☆इंसान का धरम करम ही जीवन के बाद भी उसे जीवित रखता है। धरम करम का अपना एक अलग ही महत्व है पर भरोसा व विश्वास के साथ किया गया होना चाहिए।
☆☆मन का स्वभाव भी विचित्र है जीवन की सारी विधाओं का रास्ता इसी पर निर्भर है। इंसान यहाँ सजग व सहज है तो इंसान के जीवन व मरण के बीच के हर कार्य सहज व सरल अच्छे ही रहेंगे वर्ना आना तो हो चुका है मात्र जाना ही शेष ही है जो शाश्वत है चले जाना है।
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✒......धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)
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