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Saturday, 5 September 2020

सब सबके नसीब नहीं...

सब सबके नसीब नहीं...

🍁🍁 

दस्तूर जीवन का  है  यही, सब सबके  नसीब है नहीं...

प्रेम प्यार  से  खुशियाँ है,

घृणा द्वेष से सुकून नहीं।

जहां हो जैसे  खुश रहिए,

कल का कोई सगून नहीं।

दस्तूर  जीवन का है यही, सब सबके नसीब है नहीं...

आज खुशी से जी लेते हैं,

कल का आज पता नहीं।

हरक्षण हरदम खुश रहिए,

दुखद  जिंदगी खता नहीं।

दस्तूर जीवन का  है  यही, सब सबके नसीब है नहीं...

सोच  भविष्य चिन्तित हैं,

अगले क्षण का पता नहीं।

अपने अभिमान  में  रहते,

औरों के सम्मान पता नहीं।

दस्तूर जीवन का  है  यही, सब सबके नसीब है नहीं...

लूट खसोट में जीवन जीते,

मानवता  का   ज्ञान  नहीं।

खुद जल कर रोशन करते,

उनका करते सम्मान नहीं।

दस्तूर  जीवन का  है  यही, सब  सबके  नसीब है नहीं...

🍁🍁 

✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"

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