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Wednesday, 29 April 2020

कोरोना योद्धा, मुश्किल सरल।।

~:कोरोना योद्धा:~
🤗
घर में सभी आज योद्धा बन गएं है!
सीना ताने हर स्थिति से लड़ रहे हैं।
नहीं कोई ख्वाहिश नहीं है फरमाईश!
जीवन को बचाने खुद से लड़ रहे हैं।

खुशहाली वतन में रहे घर में डटे हैं!
देखो सभी आज तपस्या कर रहे हैं।
नहीं कोई शिकवा नहीं है शिकायत!
सभी आज अपने फर्ज पर खड़े हैं।

देशभक्ति है मन में सेनानी बने हैं!
रहे दूर कोरोना सतर्कता रख रहे हैं!
कर्तव्यों का अपने पालन कर रहे हैं!
तारीफ करूँ जितनी इनकी कम है।

जिसे हम मुश्किल समझ डर रहे थे!
पर जीवन आज सहज  कट रहे हैं।
कोरोना क्या आई व्यवस्था चरमराई!
परन्तु ऐसे हालात से लड़ना सिखाई।

परिवर्तन प्रकृति का नियम है भाई!
युद्ध का नया तरीका ईजाद हो आई!
ऐसे चुनौतियों को स्वीकारना पड़ेगा!
सभी को धैर्यता से लड़ना ही पड़ेगा।

कोरोना से जंग योद्धा लड़ रहे है!
आओ सब मिलकर हौसला बढ़ाएं!
संघर्ष को उनके सम्मान दिलाएं!
इनके संघर्ष को कोई न भूल पाए।
❣❣
✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)

💞💥💞💥💞

मुश्किल वक्त ही आज सरल...

💞
हमेशा भाग दौड़ में जी रहे थे!
मुश्किल वक्त में आज हम सहजता से जी रहे हैं।
~~
जीने के लिए रोजगार करते थे!
मुश्किल वक्त में आज रोजगार की चिन्ता ही नहीं है।
~~
हर क्षण का हिसाब रखते थे!
मुश्किल वक्त में आज कोई हिसाब ही नहीं है।
~~
कार्यों का फिक्र करते थे!
मुश्किल वक्त में आज कोई फिक्र ही नहीं है।
~~
ऊलझन व आवेश में हम जी रहे थे!
मुश्किल वक्त में आज हम विनम्रता व नम्रता से जी रहें है।
~~
सामान्य दौर समझ जिसे जी रहे थे!
असल में लालच व लालसा से भरा सबसे मुश्किल वक्त था!
~~
भूल थी हमारी सरल समझ रहे थे।
आज मुश्किल वक्त ही सरल लग रही है!
💞
मुश्किल वक्त में हम कितनी सहजता से जी रहे हैं।
💞
✒.........धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)

Tuesday, 28 April 2020

फेसबुक बन गई रण भूमि।

।।फेसबुक बन गई रणभूमि।।
🌎
फेसबुक बन गई रणभूमि
बने हम इसके परम योद्धा।

फेसबुक रही है फ्रेण्डभूमि;
विद्वता की मार यहाँ भी हुई।

सब फ्रेण्ड बनें एक दूसरे के;
फिर क्यूँ होए गुत्थम गुत्था।

जंग लड़ना सबको है आता;
खुद से, खुद को ही लड़ाता।

विचारों का स्वतंत्र मेल यहाँ;
हर कोई विचरण कर सकता।

उचित अनुचित भूल सदा;
क्यूँ झट खो देते हैं मर्यादा।

अपने ही बोल मान बढ़ाते;
अपने ही बोल मान घटाते।

याद आते बचपन के दिन;
बात बात में कट्टी कर लेना।

बात बात में यहाँ भी होता;
शुरू होते अनफ्रेण्ड करना।

प्यार मोहब्बत लड़ाई झगड़े;
सब वैसे ही बचपन वाले।

इस फ्रेण्डभूमि पर उभरे हैं;
मतवाले, शूरवीर कई योद्धा।

हंसी मजाक भी करने वाले;
हर पल मस्ती में डूबने वाले।

फ्रेण्डभूमि बन गई रणभूमि;
बनें हम  इसके परम योद्धा।
❣❣
 
कविता का भाव :-
☆☆फेसबुक वर्तमान में एक अनोखा ऐसा माध्यम है जिसने रिश्तों में दूरियां तो कम किया ही है साथ में उन रिश्तों को भी ढूंढ़ कर एक दूसरे से ऐसे जोड़ दिया है जैसे बचपन के दिनों में साथ रहते थे और उनके मिलने की कभी उम्मीद या संभावना ही नहीं रही परन्तु आज फेसबुक के इस अनोखे प्लेटफार्म के द्वारा आपस में जुड़ने का अवसर मिला बहुत बहुत धन्यवाद करता हूँ जिन्होने ऐसा प्लेटफार्म समाज को दिया।
☆☆समाज है यहाँ अच्छाईयां पनपती हैं तो बुराईयां भी झट पनपती है। आज फेसबुक पर ऐसे वार्तालाप हो रहे हैं जैसे न्यूज चैनल पर सभी मित्र बैठ गए हों। ऐसे बहस होने लगी है कि अगर व्यक्ति सामने हो तो उसे वाणी के साथ साथ हाथ पैर भी चल जाते। आज फेसबुक कुछ मित्रों ने इस रणभूमि भी बना दिया है और एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप के अपने चटख कमेण्ट के द्वारा परम योद्धा साबित करने में लगा हुआ है।
☆☆सभी यहाँ पर मित्रवत जोड़ से तो जुड़े हैं परन्तु अपने मर्यादाओं पर ध्यान केन्द्रित नहीं करते। अपनी अपनी विचारधारा को जबरन एक दूसरे पर थोपने पर लगे रहते हैं। हर व्यक्ति के सोच की अपनी एक सीमा होती है तत्पश्चात उसी के अनुसार उतना ही सही गलत का आकलन कर पाता और श्रेष्ठ बनने की जिद् पर अड़ा रहता जाहिर आपस में विवाद होगा।
☆☆फेसबुक अपने बचपन वाले दिनों के अच्छे बुरे सारे लम्हों को बखुबी याद करता है प्यार भी बचपन वाले दिखते हैं, हंसी ठिठोली बचपन वाले, लड़ाई झगड़े भी बचपन वाले बात बात में आपस में कट्टी कर लेना तरीका बदल गया आज अनफ्रेंड कर देना। सब बचपन वाले।
✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)

आकलन हिन्दुत्व व संस्कार।

।।आकलन हिन्दुत्व व संस्कार।।
👀👱
       हिन्दू कौम को समझने के लिए हिन्दू परिवार को; उसकी मानसिकता को; उसकी सोच को; उसकी संस्कारों को; उसकी आदतों को; व्यवहारों व उसकी गति को जानना व सझना बहुत जरूरी व आवश्यक है। 
     जब हिन्दू परिवार के सदस्य अपनों की बात सुन नहीं सकता; तो समझना उसके लिए बहुत दूर की बात है। हिन्दू परिवार में झूठे सिद्धान्तों को आधार बना कर लोगों को अकड़ में रहने के असंस्कारी गुण मिल गए है। उसमें उनको दोषी ठहराया भी नहीं जा सकता क्योंकि असंस्कारी जीवन जीना उनकी आदतों में वरासतन शुमार हो गया है।
     आज के परिवेश में हिन्दू परिवार के बच्चों को उसके अपने माँ बाप कुछ बोल कर देखलें; जबकि माता पिता की कोई भी बात बच्चों के लिए अहितकर नहीं होती परन्तु अपनी बेवकुफी व नासमझी व संस्कार विहिनता के कारण उन्हें दुश्मन समझ कर घरबार व माँ बाप को छोड़ देने का साहस कर ले रहा है; उससे हिन्दुत्व की बात करना, संस्कार व नैतिकता की बात करना उनके लिए बेईमानी व गवारपन है।
       आजकल  एकजुटता की भावना उनके संस्कारों में ही नहीं; एकांकी जीवन शैली और निकट संबंधों में बिखराव तथा किसी प्रकार से उनसे कोई तालमेल नहीं रखा जा रहा है। सब अपने ही धुन व राग में अपनी स्वयं का एकांकी जीवन जी रहा है।
     आज हिन्दू परिवार अपने नीज स्वार्थ के लिए; सुख सुविधाओं के लिए; ऐसो आराम के लिए स्वछंद जिन्दगी जीने के लिए, अपनों व अपने बुजुर्गों की अनदेखी कर उनको छोड़ दे रहा है, जिससे इसका समाज के दूसरे कौम में हमारे कौम का गलत संदेश जा रहा है। जो सर्वदा अनुचित व अहितकर है।
     आज का हिन्दू इससे कोई वास्ता सरोकार नहीं रखना चाहता सभी के जीवन का एकमात्र उद्देश्य अच्छी नौकरी पा लेना तथा नौकरी वाली पत्नी मिल जाए तो अति उत्तम सिर्फ पैसे कमाना एकाद बच्चे हो तो उनकी परवरिश कर देना। इससे अलग और उनके जीवन में कुछ भी नहीं है। समाजिक मर्यादा समाजिक जिम्मेदारी से कोई लेना देना नहीं वो इस पृथ्वी पर बस इतने ही कार्य करने के लिए ही आए हैं।
     आज हिन्दू कौम के कुछ लोग बिन्दास अपने देवी देवताओं व ऋषि मुनियों पर हास्य व्यंग पर अनेक चित्रण कर, कविताएं रच कर उपहास व ठहाके लगा रहें हैं। दूसरे कौम में इस प्रकार के कृत्य कोई करने को सोच ही नहीं सकता बल्कि अपने धर्म और कौम की रक्षा के लिए आतंकवादी तक बन जाते हैं। उनके अन्दर धर्म के प्रति इतनी कट्टरता है कि धर्म के लिए अपने अट्टूट रिश्तों व संबंधों को भी मारकर समाप्त कर देने से बाज नहीं आते। इतिहास के पन्नों में तमाम ऐसी कहानियाँ दिख जाएंगी।
       हमारे देश में अनेक धर्म है और धर्म को मानने वाले हैं, आदर करने वाले हैं; परन्तु कभी भी किसी को उनको अपने धर्म से जुड़े पैगम्बर, मोहम्मद साहब या उससे संबंधित व्यक्ति व धर्म वेत्ताओं के खिलाफ एक भी शब्द बोलते हुए न देखा व  न सुना होगा चाहे वो गलत ही क्यों न रहा हो। वर्तमान में तबलीगी जमात इसका उदाहरण है।
      परन्तु दुर्भाग्य है इस देश का हिन्दू कौम का इसने ही अपने संस्कृति व धर्म व धर्म से जुड़े धर्म योद्धाओं के खिलाफ जाकर दूसरे कौम और नीतियों के समर्थन में बिन्दास बोल रहा है। इसकी वजह हमारे बिगड़ती आदतें, हमारे बिगड़ते संस्कार, हमारे बिगड़ते व्यवहार ही मुख्य देन है। हमें हमारे कौम, हमारी संस्कृति से प्यार नहीं है।
      आज के इस परिवेश में हिन्दुत्व की बात करने वाला अगर कोई है तो हिन्दुत्व समाज के चन्द गद्दार अपने नीज स्वार्थ के लिए उनको सहयोग व मजबुत करने के बजाय उनकी आलोचना व उनको गिराने के लिए उनको जड़ मूल उखाड़ फेकने के लिए प्रयत्न कर हर संभव साजिशे रच रहा है
       कोरोना जैसी वैश्वीक महामारी काल में पुरा संसार आज हिन्दुस्तान की सनातन संस्कृति का लोहा मान रहा है तथा बहुत ही सहजता से अपना भी रहा है। आज समस्त संसार यह जान चुका है कि अच्छे संस्कार से ही अच्छा संसार बन सकता है। हमें जल्लादों व जाहिलों वाली आदतों को बदलना होगा। जबसे हम अपने धर्म व अपने कर्म का आदर व सम्मान नहीं करेंगे तबसे दूसरा कोई आदर सम्मान नहीं करेगा संसार में यदा कदा ही विरले मिलते हैं जो धर्मराज युधिष्ठीर की तरह धर्मानुसार कार्य करते हैं।
        मानव समाज का मूलभुत समस्या यह है कि वह जहाँ भी रहता है वहां के अच्छाई के लिए, मजबूती के लिए बिलकुल नहीं सोचता सिर्फ अपनी आवश्यकता व जरूरत पर ही ध्यान देता जैसे तैसे दिन गुजारता है और हमेशा निकलने की सोचता रहता। आज हमको अपने जड़ों से कोई लगाव नहीं रह गया है। आज के दौर में परिवार में अब यह देखने को कत्तई नहीं मिलता सबके हित के लिए कोई सोचता हो। हम संकीर्ण व स्वार्थी होते जा रहें हैं।
         हमारी कमियां यह है कि हम घर में तो रहते हैं पर घर के सम्मान के लिए माता-पिता व भाई-बहन, सगे-संबंधीं के मान-सम्मान, पद-प्रतिष्ठा व गरिमा के बारे में तनिक भी सोचना तो दूर उनके मन में विचार तक भी नहीं आता कि हमारी हरकतों से घर परिवार के मान सम्मान का क्या हस्र होगा? हम अपने जड़ को ही बिन्दास उखाड़ फेंक रहे हैं! क्या उम्मिद रखना चाहेंगे ऐसे लोंगो से कि वे समाज व देश के लिए, देश के लिए समर्पित हो सकते हैं कदाचित नहीं?
        विचार करें इंसान वफादार तो अपने परिवार का नहीं है; अपने अपनों का नहीं है; जो पालन पोषण करता है उसका नहीं है उसकी मान सम्मान, प्रतिष्ठा की धज्जियां उड़ा दे रहा है; वो गद्दार नहीं तो क्या है? आज ऐसे गद्दार बहुताय जनम ले रहा है और वह इस गद्दार शब्द के अलंकरण से बचने के लिए "वो सब गंवार है" जैसे शब्दों को अपना कर अपनी सोच को शुद्ध कर अपने  को पवित्र जान जी रहा है।
      देश में बहुताय धर्म है हमें आदर सभी धर्मों का करना चाहिए परन्तु अपने धर्म व संस्कार की उपेक्षा, उलाहना, निन्दा व उपहास कभी भी, कहीं भी नहीं करनी चाहिए। जब हम स्वयं उपेक्षा, उलाहना, निन्दा व उपहास करेंगे तो दूसरे कौम को लोग तो बिन्दास करने लगेंगे। हम अपना मान व सम्मान खुद बनाते व बिगाड़ते हैं।
     आज हिन्दुत्व सिकुड़ता जा रहा है नक्शे में पूर्व का हिन्दुस्तान और आज का हिन्दुस्तान से तुलना करें स्थिति स्पष्ट हो जाएगी है जिसका मुख्य वजह हिन्दू परिवार में व्यक्ति मत्यैक नहीं! धीरज नहीं! विश्वास नहीं! भरोसा नहीं! कट्टर नहीं! अडिग नहीं! यही सबसे बड़ी मूलभुत समस्या है। जो है वह बचा रहे; उसके लिए अगर कुछ हो सकता है तो अपने सोच, अपने संस्कार, अपने व्यवहार व आदतों को बदलने से ही संभव है। 
❣❣
✒.....धीरेन्द्र कुमार श्रीवास्तव (एडवोकेट)

Saturday, 25 April 2020

मित्र मेरी सूनो...?

~मित्र हो मेरी सूनो~

👱

मित्र हो तुम जरा धीरज धरो!
चलो प्यार से आज मेरी सूनो।

नेतृत्व सशक्त, भरोसे पर ठीक है!
जीत हमारी विश्वास उसी पर है।

नेतृत्व गलत है परेशान हो रहे हो!
गलत सोच कर  वेदना ले रहे हो।

गलत भी है तो कर क्या सकोगे!
लोकतंत्र पर्व का प्रतिक्षा ही करोगे।

गलत सोच में घसीटते हो सबको!
दिखा कर सबको गलत तथ्य को।

न बस में है मेरे न बस में है तेरे!
अकेले चना, कइसे भाड़ फोड़े।

रोज तुम आते जुगत लगाते हो!
उनकी नीति को गलत बताते हो।

गर्व है खुद पर मेरा भी महत्व है!
मुझे साध कर क्या सत्ता बदलोगे।

आएगा अवसर जरा धीरज धरो।
लोकतंत्र के पर्व का प्रतिक्षा करो!

नफरत है तुमको जनाधार बढ़ाओ!
आ सको सत्ता में आधार बनाओ।

मित्र हो तुम ~
राजनीतिक लफड़ों को छोड़ो!
चलो प्यार से संबंधों को साधो।
❣❣

कविता का भाव :-
☆☆एक अजीब प्रवृत्ति यह पनप रही समाज में कि अधिकांशतः लोग इस संसार में सिर्फ अपने लिए ही जी रहे हैं उनसे देश व समाज से तनिक भी लगाव नहीं है। ऐसे लोग अगर बात भी करेंगे तो सिर्फ अपने लिए इनके काम के बारे में बात करना सर फोड़ने जैसा है।
☆☆ऐसे मित्रों का स्वभाव बड़ा ही नासाज़ होता इनके रहन सहन इनके आदतों में जरा भी परिवर्तन हुआ ये तुरंत अवसाद में चले जाते और बिना विचार विमर्श व तर्क के कुतर्क कर रोना धोना व उलाहना देना शुरू कर देते।
☆☆ऐसे व्यक्ति नकारात्मकता से परिपूर्ण होते हैं इनके मन मस्तिष्क में सही सोच पनपता ही नहीं और अपनी इसी गलत सोच के कारण वही तथ्य व उदाहरण ढूंढ़ ढूंढ़ कर जाने कहाँ से ले आते हैं और उसको देखा देखा कर विलाप करते हैं और दोषी व गलत साबित करने जुट जाते हैं। ऐसे लोग समाज में बदलाव की नवीन धारा में आना नहीं चाहते।
☆☆ऐसे लोगों का औसत समाज में बहुत थोड़ा होता है। सभ्य समाज को इनसे भयभित होने की जरूरत नहीं होनी चाहिए बल्कि ऐसे लोग आपके जीवन में आपकी सोच को आपके क्षमता को और गति प्रदान करने में सहायता प्रदान करते हैं।
💥💥
✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)


जीएं भी तो कैसे ?

।।जीएं भी तो कैसे।।
👀
कोई तो बताए हम जीएं भी तो कैसे!
दुश्मन अदृश्य है लड़े भी तो कैसे।

दुखों का अपना अलग ही सबब है।
रोए मानवता देख मंजर को अब है।

दुनिया फंसी है कोरोना के जद में!
चली जा रही है बर्बादी के कब्र में।

कोई तो बताए जीएं भी तो कैसे!
दुश्मन अदृश्य है लड़े भी तो कैसे।

बेबस इंसान है मुश्किल घड़ी है!
घर में पड़ा है मौत बाहर खड़ी है।

गरीबों की हालत दुखों से भरें हैं!
बाहर भी मौत है तो घर में मरे है।

कोई तो बताए जीएं भी तो कैसे!
दुश्मन अदृश्य है लड़े भी तो कैसे।

मौत की आहट दस्तख दे रही है!
आगे बढ़ रही है जद में ले रही है।

तबाही के मंजर को रोके तो कैसे!
हुकूमत की चाह ने खुद ही गढ़ी है।

कोई तो बताए जीएं भी तो कैसे!
दुश्मन अदृश्य है लड़े भी तो कैसे।
❣❣

कविता का भाव :-
☆☆कोरोना की वैश्विक महामारी काल में पूरा संसार आज लाचार, हैरान व बेबस होकर जीवन जीने को मजबूर हो गया है। 
☆☆कोरोना जैसी महमारी अदृश्य होने के कारण बेबस इंसान कुछ कर नहीं पा रहा है। आज चारों तरफ लाचारी बेबसी का आलम है।
☆☆मानवता क्रूर से क्रूरतम यातना व वेदना झेल रहा। जो गरीब हैं, मजदूर हैं, अयोग्य असहाय हैं घर में भूख से मर रहें हैं पेट के लिए अगर बाहर निकलने की सोचे तो बाहर कोरोना हाथ पसारे खड़ा है दोनों स्थितियों में मरना अयोग्य व बेसहारों को ही है।
☆☆पूरे विश्व में कोरोना प्रकोप मौत के आकड़े बढ़ा रहा तथा मानवता को अपने जद में लिए जा रहा है। कितनों का परिवार तबाह हो गया तो कितनो का रोजगार भी समाप्त हो गया। स्थिति अनुकूल बने तब तो इंसान कुछ कर सके।
☆☆इसकी भयावता का ग्राफ दिन प्रतिदिन  बढ़ती ही जा रही। आज पूरा विश्व श्रेष्ठता की चाहत के कारण काल का शिकार बन रहा है।
💥
✒......धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)

Friday, 24 April 2020

छोटी छोटी व गूढ़ बातें।

।।छोटी छोटी व गूढ़ बातें।।
💞
पारदर्शिता बनाए रखें ~
अपने आचार, विचार, व्यवहार में पारदर्शिता के लिए जो भी बोलें या करें स्पष्ट व सत्य हो।

सहनशील बनें ~
जो आस पास के वातावरण को शुद्ध करता।

मर्यादा का ध्यान रखें ~
ऐसा सर्वांगीण शब्द है जिसका पालन आचार, विचार, व्यवहार इत्यादि अनेक सभी जगहों पर किया जाना चाहिए।

कार्य सिद्ध के लिए ~
अपने कार्य में नियमित रहें निरन्तरता ही कार्य की
सफलता में आने वाले अनेक बाधाओं को दूर करती है।

बड़ों का पद व स्थान होता ~
अपने बड़ों को उनके पद के सम्बोधन के साथ नमस्कार या प्रणाम करें।

व्यक्ति छोटा हो या बड़ा ~
आदर सूचक शब्दों का इश्तेमाल करें व सम्मान करें।

मनचाहा बोलने के लिए ~
अनचाहा सुनने की ताकत भी रखनी चाहिए।

विनम्रता से बात प्रस्तुत करें ~
सामने वाला सहज स्वीकार करने के लिए विवश होता है।

जब अपनों के बीच में हो ~
तब अपनी ही आदतों व कार्यों का गुणगान करने से बचें।

बात में सार्थक हो ~
इंसान को तर्क संगत सार्थक बातों को कहने व सुनने से उसका व्यक्तित्व प्रभावशाली बनता है।

आपसी संबंध रखना हो ~
तो फिर थोड़ा त्याग करें और छोटी छोटी बातों पर वाद विवाद करने से बचें।

आपसी संबंध न रखना हो ~
तो खामोश हो जाएं और तब वाद विवाद करने की जरूरत ही क्या है।

तारीफ की आदत बनाए ~
इंसान को जरूरत पर सामने वाले का तारीफ करना चाहिए जिससे गौरवान्वित होगा तब आपका भी मान बढ़ेगा।

उपेक्षा करने से बचें ~
किसी कार्य को करने व कराने के लिए अपनों की उपेक्षा कर कार्य का निष्पादन किसी दूसरे से कराने से बचें जिससे दुराव मनमुटाव की स्थिति बढ़ती है।

सकारात्मक सोच रखें ~
इंसान के विश्वास, आत्मबल व हौसला जैसी शक्तियों को जाग्रत कर उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है।

नकारात्मक सोच न रखें ~
इंसान की विश्वास, आत्मबल व हौसला जैसी शक्तियों को नष्ट कर पतन का मार्ग प्रशस्त करता है।

कमियों को शेयर न करें ~
अपनी कमियों को हर किसी से शेयर न करें मान सम्मान को बाद में ठेस पहुँचाती है।

शिकायत या उलाहना न करें ~
व्यक्ति कोई हो तकलीफ या परेशानी होने पर, उसे छोड़, किसी और से शिकायत या उलाहना न करें। रिश्ते सुलझने के बजाय ऊलझ जाते हैं।

श्रेय देना न भूलें ~
सेवा कार्य के करने व करवाने के उपरान्त सामने वाले को श्रेय देना आपके लिए अवश्य श्रेयस्कर है।
❣❣
✒.....धीरेन्द्र कुमार श्रीवास्तव (एडवोकेट)

Thursday, 23 April 2020

लाॅकडाउन का दंस

👱👱
  1. कोरोना जैसी घातक अप्रत्याशित वैश्विक महामारी का देश में आना तत्पश्चात लाकडाउन का होना! तमाम अप्रत्याशित समस्याओं उत्पन्न होना साथ में मजदूरों का पलायन लाकडाउन का सबसे प्रमुख दंस समाज झेलने को मजबूर व विवश है।
  2. मजदूरों का शहरों से पलायन बहुत बड़ा दुख का सबब है हम मानव हैं वेदना स्वभाविक है; इसी वेदनावश हम गुण व महत्वपूर्ण बातों को नजरअदांज कर वेदना के वशीभूत होकर विलाप करना दुखी होना वेदना प्रकट करना मानव मात्र के लिए स्वभाविक। यह घटना जनता के लिए अकस्मात ही है इस वैश्विक महामारी से लड़ने के लिए पूरा संसार भी तैयार नहीं था। सब अपनी जिन्दगी अपने तरीके जी रहे थे किसी को इसका भान तक नहीं था।
  3. विचारणीय तथ्य है कि सवा सौ करोड़ से ज्यादा की आबादी अपने देश की है; लाकडाउन ही इसका सहज सरल व प्रमुख ऊपाय था इसलिए लाॅकडाउन बहुत जरूरी था।
  4. मजदूरों के पलायन की संख्या जो सामने आ रहा था ये अधिक से अधिक लाखों की रही है पुरे देश की!
  5. लाॅकडाउन की वजह से कम से कम पुरा देश रन तो नहीं कर रहा था सड़क पर तो नहीं था; स्थिर तो था।
  6. इसे नियंत्रित करना बहुत कठीन कार्य है फिर भी राज्य सरकारें अपना कार्य कर रही थी। कुछ तो जैसे तैसे पहुँचे तो कुछ सरकारी संसाधनों से पहुँचाए गए।
  7. विचार कीजिए पुरा सवा सौ करोड़ सड़को व शहरों में रोज की तरह चलती तो क्या होता?
  8. लाॅकडाउन की घोषड़ा के उपरान्त अफवाहों, भय व असंतोष के कारण एक साथ इतने लोगों का जमावड़ा की ऐसी स्थिति हैरान व परेशान करने वाली थी खतरे का आकलन कर वेदना व भयावह स्थिति को सोच कर विलाप किया जाना संवेदनशील समाज के लिए जायज है।
  9. क्या यह विचारणीय प्रश्न नहीं था जब पुरा देश बाहर रहता सवा सौ करोड़ से ज्यादा की आबादी बाहर रहती फिर हालात क्या होता?
  10. हम ऐसी सोच व ऐसे सवाल से खुद को कमजोर व असहाय बनाने की कोशिश में लगे रहें। सशक्त फैसलों से हम भीषण तबाही से बचकर संघर्षरत हैं तथा बचाव के हर संभव प्रयास युद्ध स्तर पर किया जा रहा है।
  11. अमेरिका, इटली, फ्रांस, जर्मनी इत्यादि यूरोपीय देश अपने अर्थ व्यवस्था के चक्कर में समय से लाॅकडाउन निर्णय न ले पाने के कारण सुविधा सम्पन्न होते हुए भी मौत व संक्रमण को रोक नहीं पा रहें हैं और सही वक्त पर लाकडाउन न करके तबाही के मुहाने पर खड़े है। उनके मुकाबले हम सुदृढ़ अवस्था में हैं।
  12. गर्व है अपनी संस्कृति व संस्कार पर नेतृत्व के एक आह्वान पर पूरा लेश एकजुटता की मिशाल कायम कर रही है। एकजुटता की यही वह भावना व शक्ति है जो हमें कोरोना जैसी वैश्विक महामारी से मुक्त कराएगी।
  13. इसी प्रकार पुलिसिया कार्यवाही पर भी जो सवाल उठाए गए वह भी गलत व अविवेकी था! वो तो खुद अपनी जान हथेली पर रखकर ड्यूटी कर रहें हैं किसके लिए! उलंघन पर उनका क्रोध लाज़मी था। देश ऐसे योद्धाओं को सलाम करता है। विचार करें घर में बच्चा आपके बार बार मना करने पर भी बात नहीं मानता तो सख्ती करनी पड़ती हैं।
  14. इस गंभीर वैश्विक महामारी के दौर में किसी न किसी को त्रासदी का शिकार होना तो निश्चित है चाह के भी इसे टाला नहीं जा सकता।
  15. हमको आपको इस दंस को इस पीड़ा सहन करना ही होगा यही कड़वी सच्चाई है जिसे धैर्यता से स्वीकार करना ही पड़ेगा।
  16. जितना हो सके बस सहयोग सहयोग और कुछ नहीं। सिर्फ देखने व दिखाने से समस्या का निदान नहीं है। हमें कम से कम हौसला व हिम्मत व विश्वास बनाए रखना होगा।
  17. ✒....धीरेन्द्र कुमार श्रीवास्तव (हृदय वंदन)

मनवा बा भोगी हमार.....


मनवा बा भोगी हमार....
🍁🍁
मनवा बा भोगी हमार
जोगी हम बनाई त कइसे।
सागर क रामायण देखलेस
चोपड़ा क महाभारत।
तब्बो ओकरे समझ न आईल
हम समझाई त कइसे।

मनवा बा भोगी हमार
जोगी हम बनाई त कइसे।

जे आइल बा जइबे करी
अविनासी कुछ बटल नाही
घाट और श्मशान देखलेस
रावण कंस दुर्गती देखलेस
तब्बो ससुरा भिड़ल रहेला
हम समझाई त कइसे।

मनवा बा भोगी हमार
जोगी हम बनाई त कइसे।

हरिश्चन्दर क कथा सुनलेस
सच्चाई क पाठ भी पढ़लेस
भड़कल एकदिन कह लगलेस
जब अविनासी कुच्छो नाहीं
छोड़ा चिन्ता और फिकरिया
मस्ती में जिया हो भईया।

सुनकर ओकर ई बतिया,
भौचक्का, समझाई त कइसे।
मनवा बा भोगी हमार
जोगी हम बनाई त कइसे।
🍁🍁
✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"

तु तु मैं मैं सरबर....



   तु तु मैं मैं सरबर....

🍁🍁
                   तु तु  मैं  मैं  सरबर  राजा,
                   छोड़ दे प्यारे खुश हो जा।
याद  न  कर बुरे दिनों को,
छोड़ दे प्यारे खुश हो जा।
                   निन्दा चिंता अकड़ जकड़,
                   छोड़  दे  प्यारे खुश हो जा।
करों न  बातें  बुरे जनों की,
छोड़  दे प्यारे खुश हो जा।
                   बुरी  आदते   बुरा  बर्ताव,
                   छोड़ दे प्यारे खुश हो जा।
सोते उठते नफरत में जीते,
छोड़ दे प्यारे खुश हो जा।
                   जो भी हैं सब अपने ही हैं,
                   पकड़ के रख खुश हो जा।
भावना देख शब्दों पे न जा,
जकड़ के रख खुश हो जा।
                   तु तु  मैं  मैं  सरबर  राजा,
                   छोड़ दे प्यारे खुश हो जा।
                  🍁🍁
✒......धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"





Wednesday, 22 April 2020

वैमनुष्यता का कारण।

।।वैमनुष्यता का कारण।।
👱
वैमनुष्यता का कारण बनता अपना ही तुच्छ व्यवहार है!
छोटी छोटी बातों को अनदेखा कर दूर हो रहा इंसान है!

ईश्वर ने मानव को दो आँख, दो कान, एक मुँह दिए!
देखें ज्यादा, सुनें ज्यादा, बोले कम यही सींख दिए।

जीने के अनेक विधाएं हैं  जो सुखी जीवन बनाते हैं!
सूझ बूझ अपनाते हैं नाप तौल कर जुब़ान चलाते है।

माँ बच्चे को दूध पिलाने से पहले ताप सहे हथेली पर!
वैसे ही सोच समझ कर बोले और बोले नाप तौल कर।

वाणी में अभिमान प्रकट हो दुख का कारण बनती है!
जो यह मधुर, सरल, सहज हो सुखकारी बन सकती है।

जो बात दुखी हमको करे जाहिर औरों को दुख देगा!
इतना महसुस करें जो कोई  मसहूर जमाने में होगा।

जुब़ान से निकले वाणी में ब्रह्मास्त्र की शक्ति होती हैं!
क्रोध व आवेश में निकले तो प्राणघातक हो सकती हैं।

जुब़ान से निकले वाणी में जीवनरक्षक गुण भी होते हैं!
मधुर प्रेम से निकले तो जीवन के लिए संजीवनी होते हैं।

हर शब्द की अपनी मर्यादा है जिसको जानना जरूरी है!
द्रोपदी के अमर्यादित शब्द ने कौरव का विनाश कराई है।

अमर्यादित अभिमानी बोल ने खण्डित राज्य करा दिया!
एक से एक वीर, महात्मा होते भी हस्तिनापुर तोड़ गया।

अमर्यादित भाषा जो बोले बुद्धिमान वह हो नहीं सकता!
बातों का उत्तर दें हम प्रश्न बढ़ाएंगे, अपनी क्षति कराएंगे।

सहज होती गैरों से क्षमा याचना बात वाद समाप्त करना!
अपनों में जिन्दगी गुजर जाती, बात धरी यहीं रह जाती।

इसे भी ध्यान धरें 👇
वाद होगा, प्रतिवाद होगा, प्रतिउत्तर आएगा ही फिर
साथ साक्ष्य तमाम होगा, बात बढ़ेगा, क्षति कराएगा ही।

कविता का भाव :-
☛हमारे समाज में आपसी मतभेद व वैमनुष्यता का मुख्य कारण हमारा निम्न व तुच्छ व्यवहार है। महत्वपूर्ण व गूढ़ बातों को हम समझने व जानने से इंकार व अनसुना कर जाते हैं।
☛आज अगर हम सुखी हैं तो अपनी अच्छी आदतों से ही हैं अगर दुखीं है तो उसके पिछे हम स्वयं ही हैं जो हमें देखना चाहिए जो सूनना चाहिए वह न सूनते व न देखते हैं जहाँ बोलना चाहिए बोल नहीं पाते जहाँ नहीं बोलना वहाँ बोल जाते हैं तात्पर्य यह है कि हम समझदारी व धैर्यता नहीं रख पाते हैं परिणाम दुखदाई होती है।
☛हम अपने जीवन में जो सबसे महत्वपूर्ण है हमारे स्वयं के बात विचार जिस पर हम उचित नियंत्रण व तालमेल व सामंजस्य नहीं बैठा पाते हैं। शब्दों व उसके प्रयोग के महत्व को समझने की कभी कोशिश नहीं करते यह मात्र स्वयं के चिन्तन से ही संभव है।
☛कब कहाँ कैसे क्या बोलना है? क्या उचित व क्या अनुचित है परख नहीं पाते जिसकी वजह से क्षण में विनाश का कारक बन जाती है इतिहास गवाह है शब्दों के हेर फेर ने महाभारत रच दिया।
✒.......धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)

कोरोना काल में धीरता।

।।कोरोना काल में धीरता।।
😋
माना कि जंग अजीब आज मुश्किल घड़ी है।
समझें तो एक ओर कुँआ दूसरी ओर खाई है।

यूँ अधीर हो जाएंगे काफिर बन क्या पाएंगे।
फिर भी बच नहीं पाएंगे मारे ही तो जाएंगे।

छिड़ी जंग कोरोना से जीत तभी हम पाएंगे।
कर सम्मान योद्धाओं का मान हम बढ़ाएंगे।

धीर धरो जो उन पर, जीत तभी मिल पाएगी।
आहत करके उनको, क्या जीवन बच पाएगी।

ईश्वर बन इस धरा की, मानवता के पूजारी हैं।
मानवता का पर काटते, देखो गद्दार जमाती हैं।

इंसान बचाने ईश्वर आते, विवेकहीन जाने कैसे।
गीता कुरान पूजते हो, फिर इतना अज्ञानी कैसे।

ईश्वर को मानते हो, नियंता उसी को जानते हो।
फिर भी अविश्वास व निराशा पास में रखते हो।

सहयोग करो घर में रहो, तभी तो बचा पाओगे।
विरोध करोगे क्या पाओगे, मारे ही तो जाओगे।

याद करो उन वीर सपूतों को बनके सजग प्रहरी
सीमा पर भारत माँ की सुरक्षा में डटे रहते हैं।

यही संकल्प दोहरानी है जन जन वीर सेनानी है।
परिवार की रक्षा लिए घर में डटे रह कर बितानी है।

सामान्य वक्त में सहजता से हम जीने के आदी हैं।
नियती की मार है मुश्किल वक्त में भी दिखानी है।

व्याकुल व भयभित होकर रोजी रोटी से दूर होकर
विवशता के कारण मजदूर पलायित हो रहे आज।

जिम्मेदारी मानवता की लेते हो कसमें संविधान की!
जब आती सेवा की बारी करते गद्दारी संविधान की।

चंद मानवता के दुश्मनों ने बेबस किया मजदूरों को।
उनके धीरज बन जाते दो वख्त रोटी प्रबन्ध कराते।

बिजली पानी फिरी ही था बस निवाले चाहिए था!
मजदूर पलायन की विवशता फिर क्यों आन पड़ी।

संकट की इस बेला में किसकी समीक्षा करानी है!
सबके रचयिता राम रमईया करनी सभी बतायेंगे।

बेबस व लाचार विश्व को सहज धैर्य व खामोशी से
लड़ कर जंग जीत दिलानी है विजय पर्व मनानी है।

संस्कार सनातनी है अपना यही पहचान करानी है।

❣❣❣
✒......धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)

सोशल मीडिया का कमाल देखो....


सोशल मीडिया का कमाल देखो.....
🍁🍁
क्या बच्चे क्या बुढ़े अपने,
सबके सब खामोश देखो।
घर  में सब मिल रहते पर,
मोबाइल के आगोश देखो।
               21वीं शदी में समय से पहले,
               चल    पड़ा   समाज   देखो।
               जिनसे कभी  रूबरू  नहीं हैं,
               उन पर कर रहे  नाज  देखो।
छट्टी,  बरही,  जन्मोत्सव,
खुशियों  का बहार देखो।
राईटर, डाएरेक्टर, एक्टर,
कवियों का  शुमार  देखो।
               बहन बेटिया और जनानियाँ,
               इसपर  हो रही  सवार देखो।
               टीक  टाक  के  तिकड़म  से,
               अदाकारी का भरमार देखो।
बनते बिगड़ते सेकण्डो में,
अपने हर एक काम देखो।
नेताओं   की  दरियादिली,
एफबी  पर  तमाम  देखो।
               श्मशान के घाट से मुर्दे की,
               लाईव हो रही प्रसार देखो।
               इस  पर ज्ञान उपदेश मिले,
               गुरुजन हैं बेरोजगार देखो।
रिश्ते नाते प्यार व  मोहब्बत,
इस पर नहीं मोहताज देखो।
अपना सोशल मीडिया ऐसा,
अजूबों का है सरताज देखो।
             सोशल मीडिया का कमाल देखो...
🍁🍁
✒........धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"

हम छोटे ही अच्छे थे

🐍कोरोना🐍 ने हमें 40 वर्ष पिछे ढ़केल दिया।
मन की पुरानी ऊपज को हरा भरा कर दिया!
"छोटे ही अच्छे थे" को शब्दों में पिरोने 
के लिए विवश किया!
वैसे बचपन सभी का कुछ ऐसा रहा होगा।.....
🌺जय माता दी🌺
हम छोटे ही अच्छे थे....
हम छोटे थे तो ही अच्छे थे!
खुशियाँ थी और प्यार था।
सुन्दर अपना संसार था।
दिन भर खेल-कूद, मार-पिट
व ऊधम मचाया करते थे!
शाम होते ही भूल जाते थे।
हाथ पकड़ संग सो जाते थे।
खाने पीने की वस्तुओं में
जब हेरा फेरी होती थी
मेरा कम है उसका ज्यादा
बहस जुबानी होती थी।
माँ डांटे चाहे मारे बाबा!
भाई बहन संग गुत्थी गुत्था!
दिल पर कभी नहीं लगती थी।
💌
ब्याह हुआ जब आई जनानी
बच्चों सग परिवार हुआ
जिम्मेदारियों का ज्ञान हुआ।
भूल गए सब अपनी पुरानी!
हर बात दिलों पे लगती है।
बोली भाषा भी बदलती है।
हम छोटे थे तो ही अच्छे थे।
खुशियाँ थी और प्यार था।
सुन्दर अपना संसार था।
💌
बड़े हुए जाने क्या हुआ!
दूरियाँ देखो तमाम हुआ।
बात समझ में यह आई!
बड़ी सोच ही गलत रे भाई!
बड़े में जबर अकड़ समाई।
शब्दों में भी फर्क दिखाई!
बातों के मायने अनेक हुए!
पूरी दिक्कत इसी से आई।
चलो ऐसा अब करते हैं!
हम सब छोटे बने रहते हैं!
क्या होगा समझ के मायने!
सारी विपदा इसी से छाई!
बदल लेते हैं अपने इरादे!
हम फिर छोटे बन जाते हैं!
💌
ऐसे बड़े बनकर क्या होगा!
अकड़ में रहकर क्या होगा!
नफरत में जी कर क्या होगा!
हम छोटे थे तो ही अच्छे थे!
फिर से छोटे बन जाते हैं!
अकड़ को मार भगाते हैं!
संग प्रेम भाव से रहते हैं!
बदल लेते अपना स्वभाव!
छोटे ही बन जाते हम यार!
खुशियां व प्यार रहे सदा!
सुन्दर बना रहे अपना जहाँ!
💌
सुनो संत कबीर की वाणी
याद रहे न हो परेशानी :~
बड़े हुए तो क्या हुआ  जैसे पेड़ खजूर;
पंथी को छाया नही फल लागे अति दूर।
❣❣
✒.....धीरेन्द्र कुमार श्रीवास्तव (एडवोकेट)

।।माँ।।


💞~:माँ:~💞

जिसने हमको स्वयं लिखा!
शब्द नही जो उस पर लिखूँ।
💌
तुम लक्ष्मी हो तुम सरस्वती हो;
तुम माँ अन्नपूर्णा सी देवी हो।
तुम धरती हो तुम माता हो;
तुम ममता की विधाता हो।
💌
जननी हो तुम जनम दिया;
स्नेहयुक्त पालन पोषण किया।
खुद जागा पर हमें सुलाया;
खुद भूखा रह हमें खिलाया।
💌
हर सुख अपना न्यौछावर कर;
बने सुखी संतान कामना किया।
जन्मदाता जब भगवान हुआ!
फिर ममता कैसे लाचार हुआ।
💌
ममता को तड़पता छोड़ कैसे!
यज्ञ-हवन व जप-तप किया।
मंदिर मस्जिद फूल चढ़ाते;
याचना घण्टों तुम कर आते।
💌
ममता कलपे प्यार में तेरे;
फिर पून्य कैसे पाओगे यारे।
मूरत है जब घर में विराजमान;
फिर किस मूरत को पूजे इंसान।
💌
सुखी जीवन हो उसी का प्यारे;
मुस्कान रहे जब ममता के द्वारे।
सुकून नहीं घर में मूरत लगाने से;
घर की मूरत पूजने से है प्यारे।
💌
याद करों अपनी बाल्यावस्था
कटोरी ले पिछे दौड़ा करती थी।
न कुछ खाता न कुछ पीता;
चिन्ता में डूबी रहती थी।
💌
तेरे ही सुख की कामना लिए
देव चौखट शीश नवाती थी।
बड़े हुए अपनी अब माया;
पास कभी न बैठ तु पाया।
💌
क्या खाया क्या उसने पिया;
प्यार से कभी तु पुछ न पाया।
दूध का कर्ज तो असंभव है;
फर्ज जो तुम निभा पाओ।
💌
माता का चरण जहाँ रहे!
वहीं सर्वोच्च दरबार बने।
बाकी दरबार तो छोटा है!
क्यों न राम रहीम ही रहें।
💌
दुबारा कभी अबन मिलेगी;
माँ का आदर सम्मान करो।
माँ कैसी हो वंदनीय होती;
माँ कैसी हो पूजनीय होती।
💞💌💞

🌹माँ को समर्पित पंक्ति🌹

~~~~

ममता के सामने जग छोटा!

ब्रम्हाण्ड उसी में है बसता!

जननी से बड़ा नहीं ईश्वर है

तभी तो ईश्वर नतमस्तक है!

माँ जननी है माँ अन्नपूर्णा है।

~~

जिस घर माता सुखी रहती!

ईश्वर की कृपा वहीं बसती!

ईश्वर पिता है पालनहार है!

माँ जननी भी पालक भी है।

तभी सर्वोच्च स्थान उसका!

~~

माता का चरण जहाँ रहे!

वही सर्वोच्च दरबार बने!

बाकी दरबार तो छोटा है!

चाहे राम या रहीम की हो!

माँ चरणों में ही खुशी बसे।

~~

दुख में यदि रहती है माता!

संतान सुखी नहीं रह पाता!

परिवार सुखी नहीं रह पाता!

घर में दुखों का वास रहता!

मूर्ख इसे नहीं समझ पाता।

~~

नर में ही नारायण बसते!

इसको नहीं समझते बंदे!

घर में साक्षात ईश्वर बसते!

बिना चढ़ावा कृपा बरसाते!

अपने ईश्वर को छोड़ तड़पते!

बाहर ईश्वर खोजे रे बंदे।

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✒...धीरेन्द्र श्रीवास्तव 
(हृदय वंदन)

ससुराल मायका बहू बेटी...

ससुराल मायका बहू बेटी... 🍁🍁   ससुराल मायका बहू बेटी! दोनों जहान आबाद करती। मायके से ट्यूशन गर लिया, दुखों का जाल बिछा लेती। जहां कभ...