।।आकलन हिन्दुत्व व संस्कार।।
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हिन्दू कौम को समझने के लिए हिन्दू परिवार को; उसकी मानसिकता को; उसकी सोच को; उसकी संस्कारों को; उसकी आदतों को; व्यवहारों व उसकी गति को जानना व सझना बहुत जरूरी व आवश्यक है।
जब हिन्दू परिवार के सदस्य अपनों की बात सुन नहीं सकता; तो समझना उसके लिए बहुत दूर की बात है। हिन्दू परिवार में झूठे सिद्धान्तों को आधार बना कर लोगों को अकड़ में रहने के असंस्कारी गुण मिल गए है। उसमें उनको दोषी ठहराया भी नहीं जा सकता क्योंकि असंस्कारी जीवन जीना उनकी आदतों में वरासतन शुमार हो गया है।
आज के परिवेश में हिन्दू परिवार के बच्चों को उसके अपने माँ बाप कुछ बोल कर देखलें; जबकि माता पिता की कोई भी बात बच्चों के लिए अहितकर नहीं होती परन्तु अपनी बेवकुफी व नासमझी व संस्कार विहिनता के कारण उन्हें दुश्मन समझ कर घरबार व माँ बाप को छोड़ देने का साहस कर ले रहा है; उससे हिन्दुत्व की बात करना, संस्कार व नैतिकता की बात करना उनके लिए बेईमानी व गवारपन है।
आजकल एकजुटता की भावना उनके संस्कारों में ही नहीं; एकांकी जीवन शैली और निकट संबंधों में बिखराव तथा किसी प्रकार से उनसे कोई तालमेल नहीं रखा जा रहा है। सब अपने ही धुन व राग में अपनी स्वयं का एकांकी जीवन जी रहा है।
आज हिन्दू परिवार अपने नीज स्वार्थ के लिए; सुख सुविधाओं के लिए; ऐसो आराम के लिए स्वछंद जिन्दगी जीने के लिए, अपनों व अपने बुजुर्गों की अनदेखी कर उनको छोड़ दे रहा है, जिससे इसका समाज के दूसरे कौम में हमारे कौम का गलत संदेश जा रहा है। जो सर्वदा अनुचित व अहितकर है।
आज का हिन्दू इससे कोई वास्ता सरोकार नहीं रखना चाहता सभी के जीवन का एकमात्र उद्देश्य अच्छी नौकरी पा लेना तथा नौकरी वाली पत्नी मिल जाए तो अति उत्तम सिर्फ पैसे कमाना एकाद बच्चे हो तो उनकी परवरिश कर देना। इससे अलग और उनके जीवन में कुछ भी नहीं है। समाजिक मर्यादा समाजिक जिम्मेदारी से कोई लेना देना नहीं वो इस पृथ्वी पर बस इतने ही कार्य करने के लिए ही आए हैं।
आज हिन्दू कौम के कुछ लोग बिन्दास अपने देवी देवताओं व ऋषि मुनियों पर हास्य व्यंग पर अनेक चित्रण कर, कविताएं रच कर उपहास व ठहाके लगा रहें हैं। दूसरे कौम में इस प्रकार के कृत्य कोई करने को सोच ही नहीं सकता बल्कि अपने धर्म और कौम की रक्षा के लिए आतंकवादी तक बन जाते हैं। उनके अन्दर धर्म के प्रति इतनी कट्टरता है कि धर्म के लिए अपने अट्टूट रिश्तों व संबंधों को भी मारकर समाप्त कर देने से बाज नहीं आते। इतिहास के पन्नों में तमाम ऐसी कहानियाँ दिख जाएंगी।
हमारे देश में अनेक धर्म है और धर्म को मानने वाले हैं, आदर करने वाले हैं; परन्तु कभी भी किसी को उनको अपने धर्म से जुड़े पैगम्बर, मोहम्मद साहब या उससे संबंधित व्यक्ति व धर्म वेत्ताओं के खिलाफ एक भी शब्द बोलते हुए न देखा व न सुना होगा चाहे वो गलत ही क्यों न रहा हो। वर्तमान में तबलीगी जमात इसका उदाहरण है।
परन्तु दुर्भाग्य है इस देश का हिन्दू कौम का इसने ही अपने संस्कृति व धर्म व धर्म से जुड़े धर्म योद्धाओं के खिलाफ जाकर दूसरे कौम और नीतियों के समर्थन में बिन्दास बोल रहा है। इसकी वजह हमारे बिगड़ती आदतें, हमारे बिगड़ते संस्कार, हमारे बिगड़ते व्यवहार ही मुख्य देन है। हमें हमारे कौम, हमारी संस्कृति से प्यार नहीं है।
आज के इस परिवेश में हिन्दुत्व की बात करने वाला अगर कोई है तो हिन्दुत्व समाज के चन्द गद्दार अपने नीज स्वार्थ के लिए उनको सहयोग व मजबुत करने के बजाय उनकी आलोचना व उनको गिराने के लिए उनको जड़ मूल उखाड़ फेकने के लिए प्रयत्न कर हर संभव साजिशे रच रहा है
कोरोना जैसी वैश्वीक महामारी काल में पुरा संसार आज हिन्दुस्तान की सनातन संस्कृति का लोहा मान रहा है तथा बहुत ही सहजता से अपना भी रहा है। आज समस्त संसार यह जान चुका है कि अच्छे संस्कार से ही अच्छा संसार बन सकता है। हमें जल्लादों व जाहिलों वाली आदतों को बदलना होगा। जबसे हम अपने धर्म व अपने कर्म का आदर व सम्मान नहीं करेंगे तबसे दूसरा कोई आदर सम्मान नहीं करेगा संसार में यदा कदा ही विरले मिलते हैं जो धर्मराज युधिष्ठीर की तरह धर्मानुसार कार्य करते हैं।
मानव समाज का मूलभुत समस्या यह है कि वह जहाँ भी रहता है वहां के अच्छाई के लिए, मजबूती के लिए बिलकुल नहीं सोचता सिर्फ अपनी आवश्यकता व जरूरत पर ही ध्यान देता जैसे तैसे दिन गुजारता है और हमेशा निकलने की सोचता रहता। आज हमको अपने जड़ों से कोई लगाव नहीं रह गया है। आज के दौर में परिवार में अब यह देखने को कत्तई नहीं मिलता सबके हित के लिए कोई सोचता हो। हम संकीर्ण व स्वार्थी होते जा रहें हैं।
हमारी कमियां यह है कि हम घर में तो रहते हैं पर घर के सम्मान के लिए माता-पिता व भाई-बहन, सगे-संबंधीं के मान-सम्मान, पद-प्रतिष्ठा व गरिमा के बारे में तनिक भी सोचना तो दूर उनके मन में विचार तक भी नहीं आता कि हमारी हरकतों से घर परिवार के मान सम्मान का क्या हस्र होगा? हम अपने जड़ को ही बिन्दास उखाड़ फेंक रहे हैं! क्या उम्मिद रखना चाहेंगे ऐसे लोंगो से कि वे समाज व देश के लिए, देश के लिए समर्पित हो सकते हैं कदाचित नहीं?
विचार करें इंसान वफादार तो अपने परिवार का नहीं है; अपने अपनों का नहीं है; जो पालन पोषण करता है उसका नहीं है उसकी मान सम्मान, प्रतिष्ठा की धज्जियां उड़ा दे रहा है; वो गद्दार नहीं तो क्या है? आज ऐसे गद्दार बहुताय जनम ले रहा है और वह इस गद्दार शब्द के अलंकरण से बचने के लिए "वो सब गंवार है" जैसे शब्दों को अपना कर अपनी सोच को शुद्ध कर अपने को पवित्र जान जी रहा है।
देश में बहुताय धर्म है हमें आदर सभी धर्मों का करना चाहिए परन्तु अपने धर्म व संस्कार की उपेक्षा, उलाहना, निन्दा व उपहास कभी भी, कहीं भी नहीं करनी चाहिए। जब हम स्वयं उपेक्षा, उलाहना, निन्दा व उपहास करेंगे तो दूसरे कौम को लोग तो बिन्दास करने लगेंगे। हम अपना मान व सम्मान खुद बनाते व बिगाड़ते हैं।
आज हिन्दुत्व सिकुड़ता जा रहा है नक्शे में पूर्व का हिन्दुस्तान और आज का हिन्दुस्तान से तुलना करें स्थिति स्पष्ट हो जाएगी है जिसका मुख्य वजह हिन्दू परिवार में व्यक्ति मत्यैक नहीं! धीरज नहीं! विश्वास नहीं! भरोसा नहीं! कट्टर नहीं! अडिग नहीं! यही सबसे बड़ी मूलभुत समस्या है। जो है वह बचा रहे; उसके लिए अगर कुछ हो सकता है तो अपने सोच, अपने संस्कार, अपने व्यवहार व आदतों को बदलने से ही संभव है।
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✒.....धीरेन्द्र कुमार श्रीवास्तव (एडवोकेट)