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Saturday, 25 April 2020

मित्र मेरी सूनो...?

~मित्र हो मेरी सूनो~

👱

मित्र हो तुम जरा धीरज धरो!
चलो प्यार से आज मेरी सूनो।

नेतृत्व सशक्त, भरोसे पर ठीक है!
जीत हमारी विश्वास उसी पर है।

नेतृत्व गलत है परेशान हो रहे हो!
गलत सोच कर  वेदना ले रहे हो।

गलत भी है तो कर क्या सकोगे!
लोकतंत्र पर्व का प्रतिक्षा ही करोगे।

गलत सोच में घसीटते हो सबको!
दिखा कर सबको गलत तथ्य को।

न बस में है मेरे न बस में है तेरे!
अकेले चना, कइसे भाड़ फोड़े।

रोज तुम आते जुगत लगाते हो!
उनकी नीति को गलत बताते हो।

गर्व है खुद पर मेरा भी महत्व है!
मुझे साध कर क्या सत्ता बदलोगे।

आएगा अवसर जरा धीरज धरो।
लोकतंत्र के पर्व का प्रतिक्षा करो!

नफरत है तुमको जनाधार बढ़ाओ!
आ सको सत्ता में आधार बनाओ।

मित्र हो तुम ~
राजनीतिक लफड़ों को छोड़ो!
चलो प्यार से संबंधों को साधो।
❣❣

कविता का भाव :-
☆☆एक अजीब प्रवृत्ति यह पनप रही समाज में कि अधिकांशतः लोग इस संसार में सिर्फ अपने लिए ही जी रहे हैं उनसे देश व समाज से तनिक भी लगाव नहीं है। ऐसे लोग अगर बात भी करेंगे तो सिर्फ अपने लिए इनके काम के बारे में बात करना सर फोड़ने जैसा है।
☆☆ऐसे मित्रों का स्वभाव बड़ा ही नासाज़ होता इनके रहन सहन इनके आदतों में जरा भी परिवर्तन हुआ ये तुरंत अवसाद में चले जाते और बिना विचार विमर्श व तर्क के कुतर्क कर रोना धोना व उलाहना देना शुरू कर देते।
☆☆ऐसे व्यक्ति नकारात्मकता से परिपूर्ण होते हैं इनके मन मस्तिष्क में सही सोच पनपता ही नहीं और अपनी इसी गलत सोच के कारण वही तथ्य व उदाहरण ढूंढ़ ढूंढ़ कर जाने कहाँ से ले आते हैं और उसको देखा देखा कर विलाप करते हैं और दोषी व गलत साबित करने जुट जाते हैं। ऐसे लोग समाज में बदलाव की नवीन धारा में आना नहीं चाहते।
☆☆ऐसे लोगों का औसत समाज में बहुत थोड़ा होता है। सभ्य समाज को इनसे भयभित होने की जरूरत नहीं होनी चाहिए बल्कि ऐसे लोग आपके जीवन में आपकी सोच को आपके क्षमता को और गति प्रदान करने में सहायता प्रदान करते हैं।
💥💥
✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)


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