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Wednesday, 22 April 2020

।।माँ।।


💞~:माँ:~💞

जिसने हमको स्वयं लिखा!
शब्द नही जो उस पर लिखूँ।
💌
तुम लक्ष्मी हो तुम सरस्वती हो;
तुम माँ अन्नपूर्णा सी देवी हो।
तुम धरती हो तुम माता हो;
तुम ममता की विधाता हो।
💌
जननी हो तुम जनम दिया;
स्नेहयुक्त पालन पोषण किया।
खुद जागा पर हमें सुलाया;
खुद भूखा रह हमें खिलाया।
💌
हर सुख अपना न्यौछावर कर;
बने सुखी संतान कामना किया।
जन्मदाता जब भगवान हुआ!
फिर ममता कैसे लाचार हुआ।
💌
ममता को तड़पता छोड़ कैसे!
यज्ञ-हवन व जप-तप किया।
मंदिर मस्जिद फूल चढ़ाते;
याचना घण्टों तुम कर आते।
💌
ममता कलपे प्यार में तेरे;
फिर पून्य कैसे पाओगे यारे।
मूरत है जब घर में विराजमान;
फिर किस मूरत को पूजे इंसान।
💌
सुखी जीवन हो उसी का प्यारे;
मुस्कान रहे जब ममता के द्वारे।
सुकून नहीं घर में मूरत लगाने से;
घर की मूरत पूजने से है प्यारे।
💌
याद करों अपनी बाल्यावस्था
कटोरी ले पिछे दौड़ा करती थी।
न कुछ खाता न कुछ पीता;
चिन्ता में डूबी रहती थी।
💌
तेरे ही सुख की कामना लिए
देव चौखट शीश नवाती थी।
बड़े हुए अपनी अब माया;
पास कभी न बैठ तु पाया।
💌
क्या खाया क्या उसने पिया;
प्यार से कभी तु पुछ न पाया।
दूध का कर्ज तो असंभव है;
फर्ज जो तुम निभा पाओ।
💌
माता का चरण जहाँ रहे!
वहीं सर्वोच्च दरबार बने।
बाकी दरबार तो छोटा है!
क्यों न राम रहीम ही रहें।
💌
दुबारा कभी अबन मिलेगी;
माँ का आदर सम्मान करो।
माँ कैसी हो वंदनीय होती;
माँ कैसी हो पूजनीय होती।
💞💌💞

🌹माँ को समर्पित पंक्ति🌹

~~~~

ममता के सामने जग छोटा!

ब्रम्हाण्ड उसी में है बसता!

जननी से बड़ा नहीं ईश्वर है

तभी तो ईश्वर नतमस्तक है!

माँ जननी है माँ अन्नपूर्णा है।

~~

जिस घर माता सुखी रहती!

ईश्वर की कृपा वहीं बसती!

ईश्वर पिता है पालनहार है!

माँ जननी भी पालक भी है।

तभी सर्वोच्च स्थान उसका!

~~

माता का चरण जहाँ रहे!

वही सर्वोच्च दरबार बने!

बाकी दरबार तो छोटा है!

चाहे राम या रहीम की हो!

माँ चरणों में ही खुशी बसे।

~~

दुख में यदि रहती है माता!

संतान सुखी नहीं रह पाता!

परिवार सुखी नहीं रह पाता!

घर में दुखों का वास रहता!

मूर्ख इसे नहीं समझ पाता।

~~

नर में ही नारायण बसते!

इसको नहीं समझते बंदे!

घर में साक्षात ईश्वर बसते!

बिना चढ़ावा कृपा बरसाते!

अपने ईश्वर को छोड़ तड़पते!

बाहर ईश्वर खोजे रे बंदे।

💗
✒...धीरेन्द्र श्रीवास्तव 
(हृदय वंदन)

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