ओढ़कर धानी चुनरिया...
🍁🍁
उमड़ रही कारी बदरिया,
धरती खुश नाची बदरिया।
सज गयी अपनी वसुंधरा,
ओढ़ कर धानी चुनरिया।
जुट गये खेतवा केयरिया,
गउवां में बिटिया जननिया।
छोटे बड़े सभी खुश मगन,
खुशी मन करे किसनिया।
चल रही सावनी बयरिया,
उमड़ घुमड़ बरसे बदरिया।
मगन अपनी प्रकृति हुई है,
ओढ़ कर धानी चुनरिया।
पड़ गये अमवा की डरिया,
झूल रहीं सखियां सहेलियां।
हंसी ठिठोली कर रही है,
ओढ़ कर धानी चुनरिया।
सुकून मिले देखे नजरिया,
रच गयी मेहंदी हथेलिया।
खिल रहा खेतों में फसल,
ओढ़ कर धानी चुनरिया।
🍁🍁
✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"
स्वचिन्तन व मनन से हृदय की गहराईयों से उत्पन्न शब्दों को कविता व लेख से "My Heart" के माध्यम से सत्य, सार्थक, चेतनाप्रद, शिक्षाप्रद विचारों को सहृदय आपके के समक्ष प्रस्तुत करना हमारा ध्येय है। सहृदय आभार! धन्यवाद।
Saturday, 31 July 2021
Wednesday, 28 July 2021
सोच का फरक....
सोच का फरक....
🍁🍁
इंसान का सोच जैसा रहता,
जीवन उसका वैसा रहता।
सही और गलत सब अपना,
असर उसी के जैसा रहता।
"जाकी रही भावना जैसी,
प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।"
रामायण में अपने लिखी है,
याद रखिये चौपाई तुलसी।
जनम मरण दाता का लेखा,
बना नहीं अमरता का लेखा।
जाना एक दिन सभी को है,
काट न पाये मौत का लेखा।
सोच सदा इस बात का हो,
बात सुन्दर सकारात्मक हो।
सुखद जिन्दगी का आधार,
संदेश अच्छा व काम का हो।
🍁🍁
✒......धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"
Friday, 23 July 2021
मेरे मन की यह अभिलाषा...
मेरे मन की यह अभिलाषा......!!
🍁🍁
मेरे मन की यह अभिलाषा।
सुखद सुंदर हो बोली भाषा।
प्यार जहाँ रहे खुशियाँ वहाँ।
जीव जन्तु मानस की भाषा।
मेरे मन की यह अभिलाषा.....!!
करते त्याग आये बड़कपन।
सुख शांति भर जाये जीवन।
जीवन अपने सरल हो जाए।
सुख अपने घर आये आंगन।
मेरे मन की यह अभिलाषा.....!!
स्वस्थ सुखी समाज हो जाए।
प्यार मोहब्बत नाज हो जाए।
दुखी जीवन कोई भी न हो।
खुशियों के आगाज हो जाए।
मेरे मन की यह अभिलाषा.....!!
अकड़ गरूर के भाव न हो।
सुभाव सरल मन घाव न हो।
सहज संबंध मधुर हो जाए।
विनम्रता मन रहे ताव न हो।
मेरे मन की यह अभिलाषा.....!!
सुखद सुंदर हो बोली भाषा।
🍁🍁
✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"
Thursday, 22 July 2021
शादी का घर.... 😀
शादी का घर....
😀
जमा हुआ था घर परिवार,
सगे संबंधी प्यारे रिश्तेदार।
वाद्ययन्त्र रहे सबके साथ,
जिसका ज्ञान नहीं थे यार।
भाग दौड़ का समय होता,
रात को ही बिस्तर पड़ता।
कम जगह लोग जियादा,
5, 6 लोग कमरे में सोता।
वाद्ययंत्र चालू सबके रहते,
सुर लय ताल में रहे बजते।
हैरान हुये सुन गजबे धुन,
लाचारी में हम रहे सुनते।
खर्राटा गजबे सब छोड़े,
रगड़ते जैसे सील पे लोढे।
भों भा भाड़ के आवाज,
जैसे जंग में छोड़ते गोले।
नासिका निकासिका बोले,
सोया नहीं रात पुरा डोले।
रोते दुखड़ा अपना किससे,
सो रहे सब छान कर गोले।
जाग रहा फिर सोते कैसे,
हम भी जिद्दी बड़े थे ऐसे।
रात बिताने की तब ठानी,
लिख डाले दर्द जैसे तैसे।
😍
✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"
Tuesday, 20 July 2021
प्यार की राह...
प्यार की राह...
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प्यार से गर
यार साथ चलते
सुखी रहते।
समझे नहीं
बरक्कत प्यार के
दुखी रहते।
रार से कुछ
नहीं हासिल सिवा
नफरत के।
नफरत से,
जाने क्यूँ हलकान,
वो हैं रहते।
हरेक काम
मुश्किल न लगते
सहज होते।
गर प्यार है
विश्वास है साथ है
खुशी है तभी।
हरेक राह
कामयाबी के होते
प्यार के होते।
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✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"
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