शादी का घर....
😀
जमा हुआ था घर परिवार,
सगे संबंधी प्यारे रिश्तेदार।
वाद्ययन्त्र रहे सबके साथ,
जिसका ज्ञान नहीं थे यार।
भाग दौड़ का समय होता,
रात को ही बिस्तर पड़ता।
कम जगह लोग जियादा,
5, 6 लोग कमरे में सोता।
वाद्ययंत्र चालू सबके रहते,
सुर लय ताल में रहे बजते।
हैरान हुये सुन गजबे धुन,
लाचारी में हम रहे सुनते।
खर्राटा गजबे सब छोड़े,
रगड़ते जैसे सील पे लोढे।
भों भा भाड़ के आवाज,
जैसे जंग में छोड़ते गोले।
नासिका निकासिका बोले,
सोया नहीं रात पुरा डोले।
रोते दुखड़ा अपना किससे,
सो रहे सब छान कर गोले।
जाग रहा फिर सोते कैसे,
हम भी जिद्दी बड़े थे ऐसे।
रात बिताने की तब ठानी,
लिख डाले दर्द जैसे तैसे।
😍
✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"
No comments:
Post a Comment
Please do not enter any spam link in the comment box.