ओढ़कर धानी चुनरिया...
🍁🍁
उमड़ रही कारी बदरिया,
धरती खुश नाची बदरिया।
सज गयी अपनी वसुंधरा,
ओढ़ कर धानी चुनरिया।
जुट गये खेतवा केयरिया,
गउवां में बिटिया जननिया।
छोटे बड़े सभी खुश मगन,
खुशी मन करे किसनिया।
चल रही सावनी बयरिया,
उमड़ घुमड़ बरसे बदरिया।
मगन अपनी प्रकृति हुई है,
ओढ़ कर धानी चुनरिया।
पड़ गये अमवा की डरिया,
झूल रहीं सखियां सहेलियां।
हंसी ठिठोली कर रही है,
ओढ़ कर धानी चुनरिया।
सुकून मिले देखे नजरिया,
रच गयी मेहंदी हथेलिया।
खिल रहा खेतों में फसल,
ओढ़ कर धानी चुनरिया।
🍁🍁
✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"
स्वचिन्तन व मनन से हृदय की गहराईयों से उत्पन्न शब्दों को कविता व लेख से "My Heart" के माध्यम से सत्य, सार्थक, चेतनाप्रद, शिक्षाप्रद विचारों को सहृदय आपके के समक्ष प्रस्तुत करना हमारा ध्येय है। सहृदय आभार! धन्यवाद।
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