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Friday, 26 February 2021

नमन हे माँ...

 नमन हे माँ...

💝

ममता  सुखी  घर  मंदिर होती।

ममता  दुखी घर जंजाल होती।

त्याग सुख किसके लिये जीती।

समझ  तुझे नहीं  इसकी होती।

अपने  सुख  दुख  भूली रहती।

तेरे   नींद   सोती   माँ  जगती।

दिन को दिन  न रात समझती।

अहसास  नहीं भावना उसकी।

था अबोध तुझे ज्ञान न उसकी।

रहे सुखी  हर जतन माँ करती।

ममता की देवी कामना करती।

नमन  सभी  ममता को "धीर"।

कभी  दुखी  माँ  हो  न अधीर।

🙏🙏

✒......धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"

Thursday, 18 February 2021

जहां में सब तेरा अपना...



जहां में सब तेरा अपना...
💝
जरुरी   यह   नहीं   होता।
मदद दौलत  सही  होता।।

ज़ुबा  तारीफ कह  जाता।
भला  समझो  हो  जाता।।

जो  रहते  सादगी  से हम।
मिलजुल के  हंसी  खुशी।।

तभी हर काम  सच होता।
पहुँच अंजाम  तक होता।।

जहां  में  सब  तेरा अपना।
हरेक सपना  तेरा अपना।।

तेरा व्यवहार तेरा संस्कार।
कम  दौलत   नहीं  होता।।

खुद  महसूस  नहीं  होता।
कदर पारखी नज़र होता।।

करे जा कर्म  सही अपना।
पूरा  हर एक  हो  सपना।।

महसूस कर रहा है "धीर"।
जिन्दगी में बन कर्म वीर।।
💝
✒......धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"

Tuesday, 16 February 2021

घरवाली हो नौकरी वाली...

घरवाली हो नौकरी वाली..
🍁🍁
शादियाँ  नौकरी  से  हो रही,
हो  घरवाली  नौकरी  वाली।
प्यार  यार  ठनठन  गोपाला,
आए घरवाली रूपया वाली।
        नयी  संस्कृति नया जमाना,
         फैशन में बिक रहा सयाना।
          आधुनिकता के जामा पहने,
            संस्कारी को गवार समझना।
भूला  रहा  आदर  सत्कार,
वक्त  कहाँ दे पाये संस्कार।
कामवाली  ले कर के मोल,
बिगाड़ रही बच्चों के बोल।
        नौकरानी  विवश  में होती,
         बोल विवश के है सीखाती।
          माँ  का नहीं कोई  विकल्प,
           माँ  व्यस्त  नौकरी में होती।
माँ   सबसे   सर्वोच्च  होती,
प्रथम   गुरु  घर   माँ  होती।
रुपया  की  लगी ऐसी होड़,
जिन्दगी   की   ऐसी   तैसी।
         संस्कारी की मत रख आशा,
          रुपये  का  हर  जन  प्यासा।
           चिन्ता भविष्य का होता, पर
            रब पर विश्वास ना आस्था।
नयी  संस्कृति  बहुत गम्भीर,
माथा  पकड़ सोचता "धीर"।
🍁🍁
✒......धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"

Tuesday, 2 February 2021

ईगो खुद का शत्रु...

ईगो खुद का शत्रु...
🍁🍁
ईगो का जो मान करेगा,
सिंहासन  आसन  देगा।
खुद  का क्षति कराएगा,
अपना  मान   गिराएगा।

ईगो  ईगो  से टकराएगा,
सुखी  कहाँ  रह पाएगा।
इससे  जो जकड़ा होगा,
बैठा  अंगारों  पर होगा।

ईगो से जो  दुखी करेगा,
खुद ही वो ढ़ह जाएगा।
पतन  कारण खुद होगा,
इंसा  नहीं  तो रब होगा।

आज नहीं तो कल होगा,
निश्चित  व  अटल होगा।
बुरा के कारण बुरा होगा,
अच्छा  तो अच्छा होगा।

राम  रावण  जैसा होगा,
कृष्ण  कंस  जैसा होगा।
इंसा का शत्रु  ईगो होता,
खुद को दूर सदा रखना।
🍁🍁
.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"

ससुराल मायका बहू बेटी...

ससुराल मायका बहू बेटी... 🍁🍁   ससुराल मायका बहू बेटी! दोनों जहान आबाद करती। मायके से ट्यूशन गर लिया, दुखों का जाल बिछा लेती। जहां कभ...