वो भी क्या दिन थे....?
🍁🍁
उन दिनों की बात थी,
घर में ऐसी शाम थी।
रिश्तों में थी जिंदगी,
जिंदगी खुश हाल थी।
किलकारियां थी शोर था,
बच्चे बुढ़ों का दौर था।
स्नेह प्यार लगाव का,
ऐसा सशक्त डोर था।
ऐसा नया दौर हुआ,
मायने ही और हुआ।
कड़वाहट नफरतों का
जिंदगी में ठौर हुआ।
सबके सब अपने में है,
सबके सब सपने में है।
हंसती खेलती जिंदगी,
अब तो बस सुुनने में है।
🍁🍁
✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"
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उन दिनों की बात थी,
घर में ऐसी शाम थी।
रिश्तों में थी जिंदगी,
जिंदगी खुश हाल थी।
किलकारियां थी शोर था,
बच्चे बुढ़ों का दौर था।
स्नेह प्यार लगाव का,
ऐसा सशक्त डोर था।
ऐसा नया दौर हुआ,
मायने ही और हुआ।
कड़वाहट नफरतों का
जिंदगी में ठौर हुआ।
सबके सब अपने में है,
सबके सब सपने में है।
हंसती खेलती जिंदगी,
अब तो बस सुुनने में है।
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✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"
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