जाने नज़र को क्या हुआ...?
🍁🍁
अबोध बचपना जब होती थी।
माँ दुनिया जिंदगी होती थी।।
दहल जाता था घर रुदन से।
माँ नज़रों से ओझल होती थी।।
अब नजर वैसा नजर कहां है।
बदल गया वैसा असर कहां है।।
बेबस दुखी लाचार हुई ममता।
दुख इससे और इतर कहां है।।
सर्वस त्याग पालन करे जिसका।
आज वही अपमान करे उसका।।
माँ जननी वरदान ईश्वर की।
क्या आदर ऐसा करे उसका।।
सृष्टि की मां आधार होती है।
ईश्वर की मां अराध्य होती है।।
धरम करम बेकार होगा करना।
जब उपेक्षित तिरस्कार होती है।।
🍁🍁
✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"
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अबोध बचपना जब होती थी।
माँ दुनिया जिंदगी होती थी।।
दहल जाता था घर रुदन से।
माँ नज़रों से ओझल होती थी।।
अब नजर वैसा नजर कहां है।
बदल गया वैसा असर कहां है।।
बेबस दुखी लाचार हुई ममता।
दुख इससे और इतर कहां है।।
सर्वस त्याग पालन करे जिसका।
आज वही अपमान करे उसका।।
माँ जननी वरदान ईश्वर की।
क्या आदर ऐसा करे उसका।।
सृष्टि की मां आधार होती है।
ईश्वर की मां अराध्य होती है।।
धरम करम बेकार होगा करना।
जब उपेक्षित तिरस्कार होती है।।
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✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"
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