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Monday, 27 September 2021

योग दिवस....

योग दिवस....
🍁🍁
रखती सबकी निरोगी काया,
योग  को  जिसने  अपनाया।
स्वस्थ  सुखी समाज बनाती,
धन  होने  नहीं  देती  जाया।

चाहिए  हमें गर रोगों से दूरी,
योग  से  करनी  भक्ति  पूरी।
खाया  पिया  सहज  पचाया,
स्वस्थ  पाचन से शक्ति पूरी।

आधुनिकता की माया अंधी,
मन तो मन करे  काया गंदी।
श्रम  शक्ति पर कर रही वार,
होत आलसी मानुष समाज।

योग जीवन सुख का आधार,
बच्चा  बुढ़ा  सब पाए  लाभ।
स्वस्थ शरीर बने तेज दिमाग,
जन जन तभी बने खुशहाल।
🍁🍁
✒......धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"

Friday, 24 September 2021

मुक्तक

 मुक्तक

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उड़ान भावना का  विधान पर न जाइए।
होगी  जरूर गलती  हमें  आप बताइए।।
पेशे  से वकील  करोना ने बनाया कवि।
अबोध, आप दिग्गजों में  समझ जाइए।।

जिन  पर  कृपा राम रघुराई,
पत्थर  भी सागर में उतराई।
राम नाम जीवन का आधार,
भवसागर  पार  राम कराई।

प्रेम  की  धारा  बहे  दिल  में।
चर्चा उनके होते महफिल में।।
सुन्दर मन विवेक उनके होते।
चहेते बन  रहते  हर दिल में।।

हिन्दुत्व का है सशक्त आधार।
सनातन संस्कृति व संस्कार।।
धरम करम से अगर कतराए।
खतम होगें हिन्दुत्व जनाधार।।

अच्छा बर्ताव में संकोच होता।
बुरा बर्ताव  नि:संकोच होता।।
इंसान गलत आदत में रमा है।
सुकून  उसी में  संतोष होता।।
परिवार में खुशियां प्यार से है।
तकरार  से  नहीं  त्याग से है।।
नहीं समझता  इंसान  इसको।
दूर  त्याग  और  प्यार  से  है।।

चुभने लगे जब कोई किसी को,
लड़ने से अच्छा है दूरी कर लो।
तकरार  रार से  कुछ न मिलेगा,
सुख  चैन  अपनी खुशी  हरेगा।

खुद में ही खुशियों का सादर,
दर  दर  भटके  लेकर गागर।
इंसान   का   स्वभाव  यही है,
जैसे  कस्तूरी  ढ़ूढ़े मृग बाहर

राम को पूजा  कृष्ण को पूजा,
आयी  नवरात्रि  माँ  को पूजा।
अपनी जननी जनक उपेक्षित,
फल  क्या  देगा तुम को पूजा।
🍁🍁
✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव"धीर"

कवि मन....

 कवि मन...

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न पूछो  कवि मन कहां कहां है,
पहुँचे  न रवि जहां वहां वहां है।
सुक्ष्म से सुक्ष्म  शिखर से ऊपर।
सोच न पाये कोई जहां जहां है।

न पूछो  कवि मन कहां कहां है,
पहुँचे  न रवि जहां वहां वहां है।

जीवन के अनछुए अनकहे पल,
शब्दों को सूत्र में  गढ़ता है पल।
अच्छाई सच्चाई और सुख दुख,
उजागर करता वो हर एक पल।

न पूछो  कवि मन कहां कहां है,
पहुँचे  न रवि जहां वहां वहां है।
🍁🍁
✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"

Sunday, 19 September 2021

जाने नज़र को क्या हुआ...?




जाने  नज़र  को  क्या  हुआ...?
🍁🍁
अबोध  बचपना  जब होती थी।
माँ  दुनिया  जिंदगी   होती थी।।
दहल  जाता  था  घर  रुदन से।
माँ नज़रों से ओझल होती थी।।

अब  नजर  वैसा नजर कहां है।
बदल गया वैसा असर कहां है।।
बेबस दुखी लाचार  हुई ममता।
दुख इससे और इतर  कहां है।।

सर्वस त्याग पालन करे जिसका।
आज वही अपमान करे उसका।।
माँ  जननी   वरदान  ईश्वर  की।
क्या  आदर  ऐसा  करे उसका।।

सृष्टि  की  मां  आधार  होती  है।
ईश्वर  की  मां अराध्य  होती है।।
धरम करम बेकार  होगा  करना।
जब उपेक्षित तिरस्कार होती है।।
🍁🍁
✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"





Sunday, 12 September 2021

वो भी क्या दिन थे...?

वो भी क्या दिन थे....?
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उन दिनों की बात थी,
घर  में  ऐसी शाम थी।
रिश्तों में  थी  जिंदगी,
जिंदगी खुश हाल थी।

किलकारियां थी शोर था,
बच्चे बुढ़ों का दौर था।
स्नेह  प्यार  लगाव का,
ऐसा  सशक्त  डोर था।

ऐसा  नया  दौर  हुआ,
मायने  ही और  हुआ।
कड़वाहट नफरतों का
जिंदगी  में  ठौर हुआ।

सबके  सब अपने में है,
सबके सब  सपने में है।
हंसती खेलती  जिंदगी,
अब तो बस सुुनने में है।
🍁🍁
✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"

ससुराल मायका बहू बेटी...

ससुराल मायका बहू बेटी... 🍁🍁   ससुराल मायका बहू बेटी! दोनों जहान आबाद करती। मायके से ट्यूशन गर लिया, दुखों का जाल बिछा लेती। जहां कभ...