कवि मन...
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न पूछो कवि मन कहां कहां है,पहुँचे न रवि जहां वहां वहां है।
सुक्ष्म से सुक्ष्म शिखर से ऊपर।
सोच न पाये कोई जहां जहां है।
न पूछो कवि मन कहां कहां है,
पहुँचे न रवि जहां वहां वहां है।
जीवन के अनछुए अनकहे पल,
शब्दों को सूत्र में गढ़ता है पल।
अच्छाई सच्चाई और सुख दुख,
उजागर करता वो हर एक पल।
न पूछो कवि मन कहां कहां है,
पहुँचे न रवि जहां वहां वहां है।
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✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव "धीर"
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