
बुजुर्गियत को समझें.....
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☛जीवन में जन्म व मृत्यु के बीच की अवधि में इंसान के अंदर उसके बात, विचार, स्वभाव व कार्य में हर समय बढ़ती अवस्था के अनुसार तमाम परिवर्तन होता है।
☛हर अवस्था का अपना एक स्वभाव बात विचार व कार्य होता है जिसको समझना एक विरले इंसान के लिए ही संभव है। हर किसी के बस की बात भी नहीं है फिर भी हमें इसे समझने का प्रयास अवश्य करना चाहिए।
☛यदि ऐसा संभव हो गया तो परिवार में अपने बुजुर्गो को लेकर होने वाले वाद विवाद और परिवारिक कलह से उत्पन्न होने वाले असंतोष व दुखद वातावरण सुख में बदल सकता है।
☛हर इंसान को बखूबी ज्ञान होता है कि जो भी व्यक्ति इस संसार में आया है उसे अपने कर्म भोग पूरा कर मृत्युलोक से चले जाना है। यह भी परम सत्य है कि इंसान सब कुछ तो सोच लेता है पर इस सत्य को नहीं सोचता।
☛इंसान की ऐसी प्रवृत्ति है कि वह अपने जीवन पर आने वाले मृत्यु कारक संकट से डरता है और हर डरने वाले करको को नजर अंदाज करता है और उसके बारे बात करना तो दूर सोचता भी नहीं है।
☛उपरोक्त बातों का असल में अहसास बुजुर्गियत में समझ आता है। इसकी प्रमाणिकता इससे समझा जा सकता है जब कोई बुजुर्ग बिमारी से मरता है तो लोगों द्वारा अक्सर यह कहा जाता कि उनको अपने मरने का आभास हो गया था।
☛जबकि सच्चाई यह है कि एक बुजुर्ग जो अपनी पूर्ण अवस्था में है और बीमार है तो ऐसा बुजुर्ग शारीरिक प्रतिकूलता/अश्वस्थता पर हर क्षण अपने मृत्यु को सोचता है। स्वभाविक भी है कि मृत्यु एक शाश्वत गति है।
☛अक्सर हम अपने बुजुर्ग के ऐसी स्थिति को समझ नहीं पाते कारण हम उनकी अवस्था और अवस्था के अनुसार उनकी सोच तक अपने आपको रख नहीं पाते, सामंजस्य बना नहीं पाते जिसके परिणाम स्वरूप नाना प्रकार के परिवारिक उलझनें व समस्याएं उत्पन्न हो जाती जो परिवार के लिए दुखकारी कभी कभी विघटनकारी भी हो जाती है।
☛एक बुजुर्ग अपने संतान का कभी सपने में अहित नहीं सोचता। गलती तो हम संतानों से होती है जो उनकी सोच उनके प्यार और उनके तौर तरीकों को समझ नहीं पाते और न हीं कोशिश करते हैं। परिणामतः गलत धारणा मन में बना कर अपना बात विचार व्यवहार और कार्य करते हैं जो परिवार के लिए हानिकारक होता।
☛बुजुर्गियत की हर समय स्थिति को समझें!
☛ उनके प्यार व डर के पीछे के कारण समझें!
☛उनके भावना व अधिकार को मान दें समझें!
☛कुछ कहने सुनने से पहले जगह बदल कर सोचें!
☛सोचें! मनन करें! अपने आधार से जुड़ कर रहें!
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जिन्दगी को डर सताता है,
भावुक इंसान हो जाता है।
भावुकता में बुजुर्ग अपना,
फिक्र अपने परेशां होता है।
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~~ : धन्यवाद! बहुत बहुत आभार! :~~
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✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)