Pages

Thursday, 19 November 2020

करे बाल काली......

करे बाल काली......
😀😆
बाल में काली  मोंछ पे काली।
किसे दिखाऊँ बोल घरवाली।।

तेरे  शिवा  नहीं  कोई  भाता।
जीवन  सात  जनमों  वाला।।

सात  जनम  के बाद सोचना।
इधर  उधर  पहले न देखना।।

सबके दिल और मान रखता।
रिश्तों  पर हम जान फूंकता।।

मंशा  बदनाम  फेरे न करता।
वचन  फेरों  के याद रखता।।

इसी  लिए  रहता  हम सादा।
नहीं   पोतता  काला  वाला।।

कुछ  तो  खोट  जरूर  दादा।
खुब पोतते जो काला वाला।।
😀😆
✒......धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)

Wednesday, 18 November 2020

दूर से प्यार ....


दूर से प्यार.....
🍁🍁
दूर  से   वो   प्यार  दिखाते।
पास  होने पर नज़र घुमाते।।
गणित समझदारी का करते।
दूसरों  को  मुरख  समझते।।

कदर  सदा जरूरत पे करते।
चलाकियां इस कदर करते।।
मान   फितरत  उनके  करते।
समझते  पर  मौन ही रहते।।

मतलब  हरेक शह के रखते।
सयाना खुद को हैं समझते।।
मेरी ख़ामोशी  पर वो अपने।
विद्वता  का  दंभ जो भरते।।

नासमझी कर खुश भी रहते।
गति उनकी, नज़र से गिरते।।
फितरत  ऐसे  जहाँ  में  होते।
दुख  है,  वो  समझेंगे  कैसे।।
🍁🍁
✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)

Tuesday, 17 November 2020

बुजुर्गियत को समझें.....(लेख)

बुजुर्गियत को समझें.....

🍁🍁

☛जीवन में जन्म व मृत्यु के बीच की अवधि में इंसान के अंदर उसके बात, विचार, स्वभाव व कार्य में हर समय बढ़ती अवस्था के अनुसार तमाम परिवर्तन होता है।
☛हर अवस्था का अपना एक स्वभाव बात विचार व कार्य होता है जिसको समझना एक विरले इंसान के लिए ही संभव है। हर किसी के बस की बात भी नहीं है फिर भी हमें इसे समझने का प्रयास अवश्य करना चाहिए। 
☛यदि ऐसा संभव हो गया तो परिवार में अपने बुजुर्गो को लेकर होने वाले वाद विवाद और परिवारिक कलह से उत्पन्न होने वाले असंतोष व दुखद वातावरण सुख में बदल सकता है।
☛हर इंसान को बखूबी ज्ञान होता है कि जो भी व्यक्ति इस संसार में आया है उसे अपने कर्म भोग पूरा कर मृत्युलोक से चले जाना है। यह भी परम सत्य है कि इंसान सब कुछ तो सोच लेता है पर इस सत्य को नहीं सोचता। 
☛इंसान की ऐसी प्रवृत्ति है कि वह अपने जीवन पर आने वाले मृत्यु कारक संकट से डरता है और हर डरने वाले करको को नजर अंदाज करता है और उसके बारे बात करना तो दूर सोचता भी नहीं है। 
☛उपरोक्त बातों का असल में अहसास बुजुर्गियत में समझ आता है। इसकी प्रमाणिकता इससे समझा जा सकता है जब कोई बुजुर्ग बिमारी से मरता है तो लोगों द्वारा अक्सर यह कहा जाता कि उनको अपने मरने का आभास हो गया था।
☛जबकि सच्चाई यह है कि एक बुजुर्ग जो अपनी पूर्ण अवस्था में है और बीमार है तो ऐसा बुजुर्ग शारीरिक प्रतिकूलता/अश्वस्थता पर हर क्षण अपने मृत्यु को सोचता है। स्वभाविक भी है कि मृत्यु एक शाश्वत गति है।
☛अक्सर हम अपने बुजुर्ग के ऐसी स्थिति को समझ नहीं पाते कारण हम उनकी अवस्था और अवस्था के अनुसार उनकी सोच तक अपने आपको रख नहीं पाते, सामंजस्य बना नहीं पाते जिसके परिणाम स्वरूप नाना प्रकार के परिवारिक उलझनें व समस्याएं उत्पन्न हो जाती जो परिवार के लिए दुखकारी कभी कभी विघटनकारी भी हो जाती है।
☛एक बुजुर्ग अपने संतान का कभी सपने में अहित नहीं सोचता। गलती तो हम संतानों से होती है जो उनकी सोच उनके प्यार और उनके तौर तरीकों को समझ नहीं पाते और न हीं कोशिश करते हैं। परिणामतः गलत धारणा मन में बना कर अपना बात विचार व्यवहार और कार्य करते हैं जो परिवार के लिए हानिकारक होता।

☛बुजुर्गियत की हर समय स्थिति को समझें!

☛ उनके प्यार व डर के पीछे के कारण समझें!

☛उनके भावना व अधिकार को मान दें समझें!

☛कुछ कहने सुनने से पहले जगह बदल कर सोचें!

☛सोचें! मनन करें! अपने आधार से जुड़ कर रहें!
~~
जिन्दगी  को डर सताता है,
भावुक  इंसान हो जाता है।
भावुकता  में बुजुर्ग अपना,
फिक्र अपने परेशां होता है।
~~
~~ : धन्यवाद! बहुत बहुत आभार! :~~

🍁🍁

✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)

Monday, 16 November 2020

खटपट एक्सप्रेस ट्रेन फेमिली

खटपट एक्सप्रेस ट्रेन फेमिली..
🍁🍁
खटपट एक्सप्रेस ट्रेन फेमिली।
सोच, सेलफोन, ईधन उसकी।।
सरपट  दौड़  खटपट  कराती।
ब्रेक दिमाग, जो नहीं लगाती।।

झटपट  रिश्तों  में पैठ बढ़ाती।
जोड़ती  नहीं, ज्यादा तोड़ती।।
आपसी  खटपट  ट्रेन  कराती।
कर  सवारी  मन  खोजे चैन।।

दुखद  ट्रेन  का  गन्तव्य स्थल।
अपनों  के  बीच दौड़ा करता।।
इसका   समय  न   रूट होता।
अदृश्य  होती खटपट यह ट्रेन।

चार   परानी   तेरे   और  मेरे।
जिसमें  दो  तीन बाहर रहते।।
जर  जमीन  व मान को लेके।
एक  दुसरे  से  विवाद  होते।।

कौन  कहा  क्या  बात  कहा।
क्रोध  आवेश  के  भेंट चढ़ा।।
सही  भूला  गलत  याद रखा।
गलत  बैठ अपनों तक गया।।

जो  चश्मदीद गवाह न होता।
गलतियां दूसरे की बतलाता।।
अपनी   गलती  नहीं  बताता।
गलत तथ्य उनके मन आता।।

खटपट  ट्रेन नफरत दे जाता।
रिएक्सन भी ऐसा पहुँचाता।।
फिर  रिश्तों  को  झेप आता।
मिलने  से  जी  है  कतराता।।

एक  दूसरे  में विवाद बढ़ाता।
ट्रेन संचालन बंद करो भ्राता।।
सुखद   ट्रेन   चलाओ  दादा।
प्यार मोहब्बत सब्र से पाता।।
🍁🍁

✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)

Sunday, 15 November 2020

फितरत कैसे कैसे....

फितरत कैसे कैसे....

🍁🍁
पास  होने  पर  नज़र घुमाते।
दूर  से   वो  प्यार   दिखाते।।
योग  समझदारी  का  करते।
दूसरों  को  मुरख हैं बनाते।।

कदर  सदा जरूरत पे करते।
चलाकियां इस कदर करते।।
तेरे  फितरत का मान रखते।
समझते पर हम मौन रहते।।

मतलब हरेक शह का रखते।
सयाना खुद को हैं समझते।।
मेरी ख़ामोशी  पर वो अपने।
विद्वता  का  दंभ  हैं भरते।।

नासमझी कर खुश भी रहते।
लेकिन गति नज़रों से गिरते।।
फितरत  खूब  जहाँ  में  ऐसे।
दुख  की  यह समझेंगे कैसे।।
🍁🍁
✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)



Tuesday, 10 November 2020

प्रबल प्रहरी नेता हमारे....


प्रबल प्रहरी नेता हमारे....
🍁🍁

प्रबल  प्रहरी   नेता   हमारे।
अपनी  जड़ें  सिंचते प्यारे।।
अपने  जेब  पे ध्यान रखते।
देश सेवा का ख्याल किसे।।

नेम फेम तंत्र और भी होते।
राजनीति में ही क्यों आते।।
झूठ फरेब  एजेण्डा बनाते।
कुर्सी प्रलोभन सहारे पाते।।

असल राजनीति जन सेवा।
सच  में  होती उनकी मेवा।।
असल संघर्ष जनता करती।
उनके मेवा का स्तंभ होती।।

देकर  के मुफ्त का लालच।
जन जन  कुंठित कर देता।।
कामचोर तो काम न करते।
मुफ्त पे नज़र लगाये रहते।।

चाहत  सत्ताशीन  होने का।
येन  केन  हथिया लेने का।।
घोषणा   ऐसी  कर  लूटता।
राष्ट्र  कोष  खाली  करता।।

दुरगामी परिणाम न सोचते।
देश   खोखला  कर  जाते।।
लाखों नौकरी दस्तखत देते।
शिक्षा मित्र  बना वोट पाते।।

लूटा  खजाना  जन नायक।
कामचोरों के होते रहनूमा।।
बंदर बाट में निशदिन रहते।
सेवा भाव से प्रेम न रखते।।

ईमान की  रोटी खाने वाला।
देश की  सेवा करने वाला।।
जुझता उसको क्या मिलता।
बेईमान अपना देश लूटता।।

नीति  निर्धारक  नियंता भी।
विधान बना ना  रोक पाते।।
राजनीति  के  ही  चट्टे बट्टे।।
सब ख़ामोश  हो  जाते पट्ठे।

जनता  हित  से  पहले जो।
अपने  हित  को श्रेष्ठता दे।।
ऐसे  जन  नायक  नेता को।
शत शत हम प्रणाम करते।।
🍁🍁

✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)


Wednesday, 4 November 2020

करवाचौथ की बधाई....

करवाचौथ की बधाई...

❤🍁❤

करवाचौथ की बधाई प्यारा।
मातृशक्ति को नमन हमारा।।

संस्कृति  सुन्दर   यह   रीति।
हर रिश्ते  का  मान बढ़ाती।।

नारी  के   ही   जिम्मे  होती।
जीवंत रिश्ते को कर जाती।।

करवाचौथ पूजा छट करती।
पति पुत्र पे जान छिड़कती।।

रिश्ते नातों का मान बढ़ाती।
नारी  ही घर  स्वर्ग बनाती।।

सुखी तुझसे है चमन हमारा।
मातृशक्ति को नमन हमारा।।
❣❣
.✒....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)

ससुराल मायका बहू बेटी...

ससुराल मायका बहू बेटी... 🍁🍁   ससुराल मायका बहू बेटी! दोनों जहान आबाद करती। मायके से ट्यूशन गर लिया, दुखों का जाल बिछा लेती। जहां कभ...