फितरत कैसे कैसे....
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पास होने पर नज़र घुमाते।
दूर से वो प्यार दिखाते।।
योग समझदारी का करते।
दूसरों को मुरख हैं बनाते।।
कदर सदा जरूरत पे करते।
चलाकियां इस कदर करते।।
तेरे फितरत का मान रखते।
समझते पर हम मौन रहते।।
मतलब हरेक शह का रखते।
सयाना खुद को हैं समझते।।
मेरी ख़ामोशी पर वो अपने।
विद्वता का दंभ हैं भरते।।
नासमझी कर खुश भी रहते।
लेकिन गति नज़रों से गिरते।।
फितरत खूब जहाँ में ऐसे।
दुख की यह समझेंगे कैसे।।
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✒.....धीरेन्द्र श्रीवास्तव (हृदय वंदन)
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